हफ़्ता वसूल: ‘एरियल सर्वे’ में जुटे अख़बार मज़दूरों पर अदालत की टिप्पणी तक दबा गये
हफ्ते भर के अंग्रेज़ी, हिंदी और उर्दू अख़बारों की समीक्षा
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हफ्ते भर के अंग्रेज़ी, हिंदी और उर्दू अख़बारों की समीक्षा
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हैरानी इस बात की है कि वे ख़बरों से ग़ायब क्यों हैं. वह भी उस वक़्त में जब देशभर में करोड़ो श्रमिक कोरोना से ज़्यादा भूख से तड़प रहे हैं
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सरकार के प्रति ‘सकारात्मक’ सुर्खी लगाने में अंग्रेजी अख़बार हिंदी समाचारपत्रों से बहुत पीछे नहीं थे
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हिंदुत्व की ताकतों ने ‘हिन्दूफोबिया’ और ‘काफिरोफोबिया’ जैसे शब्द गढ़ लिए हैं जिनका इस्तेमाल वह एक “शस्त्र” की तरह कर रही हैं!
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महाराष्ट्र के पालघर में साधुओं की मॉब लिंचिंग और सोनिया गांघी की तथाकथित “चुप्पी” वाले विवाद में तो उन्होंने पत्रकारिता की सारी मर्यादाओं को तार-तार कर दिया है
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भारत का कितना आर्थिक और राजनीतिक नुकसान होगा यह तो अभी विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता मगर देश की बदनामी हो रही है, जिसके लिए सिर्फ वे लोग ज़िम्मेदार हैं जिनको लगता है कि मुसलमान को नीचा दिखा कर उनका स्थान ऊंचा हो जाएगा.
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यह बयान अल्पसंख्यकों के खिलाफ जल रही आग में घी डालने का काम तो नहीं करेगा और जाने अनजाने हिंदुत्व के लिए मददगार साबित हो जायेगा?
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