इधर एक राष्ट्र सुधारक हैं। वे देश को विश्वगुरु बनाना चाहते हैं। इसके लिए वे विमर्श की जुगाली करते हैं। जुगाली उनके स्वास्थ्य का पैमाना है। जुगाली बंद हो जाती है, तो संकेत मिल जाता है- तबीयत नासाज़ चल रही है।
एक बार नये विमर्श का अकाल पड़ गया। अकाल के दौरान उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। बीमारी के दौरान वे ‘चुप्पा’ हो गए थे। सबसे अच्छे डॉक्टर और शुभचिंतकों की तीमारदारी, महँगी दवाओं, प्रोटीन-विटामिंस से भरपूर ‘डाइट चार्ट’ और ‘फिटनेस चार्ट’ की कसरतों के बावजूद, उनका स्वास्थ्य लुढ़कता गया। उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो रहा था। शुभचिंतकों के मन में डॉक्टरों की डिग्री पर शंका पैदा होने लगी। उनकी शंका दूर की एक पशु डॉक्टर ने।
पशु डॉक्टर के पास अनुभव की डिग्री थी। अनुभव की डिग्री से इलाज का लाइसेंस नहीं मिलता। तो डॉक्टर ने दूरस्थ शिक्षा से इलाज की डिग्री की भी ले ली थी। वो डॉक्टर मेडिकल कॉलेज सिर्फ परीक्षा देने जाता। दूरस्थ शिक्षा में भी विद्यार्थी परीक्षा वाले दिन ही परीक्षा केंद्र पर जाता है। पढ़ाई का अनुभव वो पशुओं का इलाज करके पहले ही ले चुका था।
अनुभव का धनी वो पशु डॉक्टर जानता था, पगुरी बंद होना बीमारी का संकेत है। डॉक्टर के अनुसार- पगुरी के माध्यम से पशु संकेत देते हैं कि वे चंगे हैं। समूह में रहने वाले पशु पगुरी के संकेतों के माध्यम से एक-दूसरे से बात करते हैं। जो पशु अकेले होते हैं, वे पगुरी के माध्यम से खुद से बात करते रहते हैं- क्या हाल चाल है? फिट हूँ। पगुरी चल रही है।
आदमी उनके संकेतों को नहीं समझ पाता। इसलिए उनकी बातचीत को सिर्फ पगुरी कहता है।
सुधारक की बीमारी की ‘केस हिस्ट्री’ जानने के लिए पशु डॉक्टर ने उनके कमरे का गहन निरीक्षण किया। एक-एक तमगे और प्रमाणपत्र पर अंकित तिथि का अध्ययन किया। अंतिम तिथि दो महीने पूर्व की थी। डॉक्टर को रोग का कारण समझ में आ गया। डॉक्टर ने उनके शुभचिंतकों को विमर्श की दवा बताई- स्वातंत्र्योत्तर भारत की तरक्की में बाधक तत्व। हालाँकि दवा का नाम नया नहीं था, पर अकाल में डूबते स्वास्थ्य के लिए तिनके का सहारा काफी था।
विमर्श आयोजित हुआ। क्रमानुसार सुधारक के बोलने का नंबर तीसरा था। पहले वक्ता ने बोलना शुरू किया। वो बोलता गया। संचालक द्वारा भेजी गयी ‘आपका समय समाप्त हुआ’ की ‘चिट’ को नजरंदाज कर, वो बोलता ही गया। उधर अपने क्रम के इंतजार में बैठे सुधारक की तबीयत बिगड़ती जा रही थी। शुभचिंतक इससे बे-खबर थे।
पहले वक्ता का कथन समाप्त होने के पहले ही राष्ट्र सुधारक कुर्सी से लुढ़क गए। उनकी दशा देख शुभचिंतकों में खलबली मच गई। तुरंत ही पशु डॉक्टर को खबर दी गई। डॉक्टर आया। केस हिस्ट्री जानने के लिए उसने विमर्श के दौरान बोलने वाले वक्ताओं के क्रम का अध्ययन किया। उनके लुढ़कने का कारण डॉक्टर ने पकड़ लिया। डॉक्टर ने शुभचिंतकों को दवा बताई- विमर्श में पहले वक्ता के रूप में इन्हें बोलने का अवसर दो। साथ ही चंगा होने का संकेत देने वाले लक्षण भी बताए।
कुछ दिन बाद विमर्श आयोजित हुआ- विगत सत्तर वर्षों में देश की तरक्की में बाधक तत्व। डॉक्टर ने दवा का नाम बदल दिया था, ‘कम्पोजीशन’ वही थी।
पहले वक्ता के रूप में जैसे ही सुधारक ने माइक थामी, लगा जेठ की दोपहर में तपते वन पर रिमझिम-रिमझिम, रुमझुम-रुमझुम होने लगी। बारिश के इंतजार में भूमिगत हुए दादुर टर्राते हुए बाहर आ गए।
सुधारक ने बोलना शुरू किया। बोलते गए। बोलते-बोलते थूक झाग बनकर थूथन से टपकने लगा। चंगा होने के टपकते लक्षण को देख शुभचिंतकों ने एक-दूसरे से कहा- फिट हो गए।
अपने चंगे होने का लक्षण टपकाते-टपकाते उन्होंने विमर्श का स्वास्थ्य बिगाड़ दिया। विमर्श को दस्त लग गई। शुभचिंतक विमर्श की सेवा-सुश्रूषा में लगे हुए हैं। कोई नैपी बदल रहा है। कोई ओआरएस घोल पिला रहा है। कोई दवा खिला रहा है।
विमर्श के इलाज के लिए भी पशु डॉक्टर से सम्पर्क किया गया। उसने हाथ खड़े कर दिए- बौद्धिक रोगों के इलाज का अनुभव उसके पास नहीं है। ‘डॉक्टर ऑफ इंटेलेक्चुअलिटी’ से सम्पर्क करें।
कवर तस्वीर Penn Political Review से साभार