लाइट की चकाचौंध और दीवारों के रंगरोगन के पीछे बिलखता हरिद्वार का कुम्भ


विश्वविख्यात हरिद्वार हिंदुओं की आस्था के प्रतीक के रूप में जाना जाने वाला शहर है. वैसे तो यहां मेले लगे ही रहते हैं, लेकिन विश्व का सबसे बड़ा मेला कुम्भ (जिसका वर्णन हमारे पुराणों आदि में भी मिलता है) जो हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है, जिसका केवल एक मात्र महत्व ही गंगा स्नान का है, यहां लगता है.

इस मेले की खास बात यह है कि गंगा में सबसे पहले वह साधु संत स्नान करते हैं जो अखाड़ों में नागा सन्यासी के रूप में रहते हैं. कोई सन्यासी विश्व में कहीं भी हो (वह जैसे भूखा बच्चा भूख लगने पर भोजन की आस में माँ के पास पंहुच जाता है) हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए पहुंच जाते हैं और गंगा जी में स्नान कर अपने अनुयायियों व भक्तों को आशीर्वाद प्रदान कर अपनी साधना के स्थानों पर लौट जाते हैं. साधु संतों को हमारे समाज में देवतुल्य माना जाता है.

कुम्भ हरिद्वार में 12 साल में एक बार आता है और समयानुसार यह 11 साल बाद भी आयोजित होता है. ऐसा हमारे तिथि पंचांग से हमें समझ आ जाएगा. जब भी कुम्भ आने वाला होता है तो इसकी तैयारियां भी इसी हिसाब से की जाती हैं और समय पर सब कार्य पूरा हो इस बात का ध्यान रखा जाता है. इस वर्ष कुम्भ मेला आयोजित होना था, तो तैयारियां भी उसी समय अंतराल से की जानी चाहिए थी, लेकिन हरिद्वार मेला प्रशासन ने समय रहते कोई भी ठोस कदम नहीं उठाये. जो कुम्भ 4 महीने तक चलता था वह मात्र 30 से 40 दिन में सिमट कर रह गया.

कुम्भ में क्या क्या होता रहा है:

1. पूरे शहर की छोटी से छोटी गली व नालियां तोड़ कर पुन: बनाई जाती थी.

2. पूरे मेला क्षेत्र में पथ प्रकाश की पूरी सुविधा होती थी.

3. मेला क्षेत्र में आने वाली सरकारी संपत्तियों पर रंगरोगन किया जाता था.

4. मेला क्षेत्र में प्रदेश के पर्यटन व मेले को बढाने हेतु प्रदर्शनिया लगाई जाती थीं, जिनमें नई-नई तकनीकों व लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता था.

5. मेले व पर्यटन को बढ़ाने के लिए अनेकानेक कार्य शासन-प्रशासन द्वारा किये जाते थे.

6. मेला क्षेत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रमों को कराया जाता था जिससे प्रदेश व समाज की संस्कृति को दूसरे प्रदेशों से आने वाले यात्रियों से साझा किया जा सके.

7. साधु संतो के लिए टेंट की सुविधा प्रशासन द्वारा की जाती थी.

8. मेला क्षेत्र में जगह-जगह हस्तनिर्मित वस्तुओं के स्टाल आदि लगाये जाते थे.

9. मेला क्षेत्र में स्नान के लिए पूरी व्‍यवस्‍था की जाती थी.

10. मेला क्षेत्र में सफाई व्यवस्था का पूरा ध्यान रखा जाता था.

11. अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग संगीत सुनने को मिलता था. मानो हरिद्वार जैसे संगीत नगरी बन गया हो.

शहर हरिद्वार उन 4 महीनों में संतों, यात्रियों व व्यापारियों से भरा रहता था, किंतु 2021 का कुम्भ सिर्फ एक स्वप्न बनकर ही रह गया. ऊपर बताये हुए कार्यों में से एक भी कार्य हुआ ही नहीं या सिर्फ नाम मात्र का होकर रह गया.

असल में कुम्भ के स्नान मकर संक्रांति पर्व से शुरू हो जाते थे, लेकिन इस बार प्रशासन ने स्नान ही बंद कर दिया!

इस कुम्भ में जो कार्य हुए ही नहीं उनकी तो बात ही खत्म हो गयी, लेकिन जो कार्य हुए हैं उनकी गुणवत्ता की जाँच यदि हो जाये तो मेला प्रशासन को जवाब देना भारी होगा या यूँ कहें की कोई जवाब है ही नहीं.

इस मेले में जो कार्य हुआ वह मुख्य कार्य ही सड़क निर्माण का है, जो कि उन मार्गों पर हुआ जहाँ पर पहले से ही कोई कार्य चल रहा था.

आप हरिद्वार से रात को किसी सड़क से गुज़रे और सुबह पाते हैं कि वहाँ नई सड़क डाली जा चुकी है. इसके बाद हैरानी तब होती है वही सड़क दो दिन बाद पुन: कहीं-कहीं से खोदी जा चुकी है! ऐसा किसी एक स्थान पर नहीं पूरे मेला क्षेत्र में कई जगह पर हुआ है. ऐसा होने का कारण बिजली, पानी व सीवर के लिए डाली जाने वाली लाइन का कार्य है जो पहले से उन सड़कों पर चल रहा था और अभी तक पूरा नहीं हुआ और पूरा करने के लिए सड़क दोबारा खोदनी पड़ी.

मेला प्रशासन को तो शहरवासियों और यात्रियों को होने वाली असुविधा से कुछ लेना-देना है ही नहीं. इसी के साथ शहर के तथाकथित नेता लोग भी मुंह में दही जमाये बैठे हैं और आम आदमी अपना जीवन इसी तरह से जीना स्वीकार कर चुका है.

सड़कों की गुणवत्ता का पता आपको उन पर चलकर हो जाएगा. जब अचानक सड़क पर चलते-चलते ऐसा लगता है जैसे बाइक या गाड़ी किसी दीवार पर चढ़ गई हो.

मेला प्रशासन जब सभी कामों को करने में नाकाम हो गया तो साधु संतों के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाया और मेले को 2022 में करने की गुहार करने लगा, लेकिन संतों के न मानने पर सूक्ष्म में मेले को सम्पूर्ण करने की बात साम, दाम, दंड, भेद (तथाकथित लालच देकर) से मनवा ली गयी!

मेला सूक्ष्म में करने की बात तय हो जाने से बाहर से ज्यादा संख्या में आने वाले साधुओं व यात्रियों पर रोक लगा दी गयी!

इस सब के बाद मेला प्रशासन अपने ख़राब हुए कार्यों पर पर्दा डालने की कोशिश करने लगा जिस वजह से सम्पूर्ण मेला क्षेत्र की दीवारों को रंगने का कार्य जोर-शोर से किया जाने लगा और मुख्य क्षेत्र हर की पौड़ी के आसपास लाइट की इतनी व्यवस्था कर दी गयी, मानो जैसे वहां आधी रात को भी सूरज निकल रहा हो या उस स्थान पर सूरज अस्त ही न हुआ हो.

दीवारों के रंग और लाइट की रौशनी में कुम्भ दिखा कर कुम्भ के गहरे घावों को छुपाने का प्रयास प्रशासन व सरकार द्वारा किया जा रहा है. रंग और रौशनी में असल कुम्भ के रंग और कुम्भ में प्राप्त होने वाली ज्ञान की रौशनी को छुपा दिया गया है और यह कुम्भ एक बालक की तरह बिलख कर रह गया है.


लेखक हरिद्वार स्थित अधिवक्ता हैं


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