यौन हिंसा और राजकीय दमन के खिलाफ महिलाएँ (WSS) उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर बढ़ रही यौन हिंसा पर चिंता व्यक्त करती है। पिछले दिनों हाथरस और बलरामपुर में दलित लड़कियों के साथ हुए बलात्कार और हाथरस के पूरे मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन की लापरवाही और बलात्कारियों को फायदा पहुंचाने वाली कार्यवाही, जिसमें रातों रात पीड़िता के शव को जलाना भी शामिल है, की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं।
हाथरस के जघन्य बलात्कार और हत्या की घटना पर WSS मानती है कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं और उसमें भी दलित समुदाय की महिला की कोई सुनवाई नहीं है। हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में पिछले 2 साल में महिलाओं और दलितों पर होने वाली हिंसा में इजाफा हुआ है। महिला हिंसा और दलित उत्पीड़न के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर पहुंच गया है। बच्चियों के साथ होने वाले अपराध में भी उप्र सबसे ऊपर है। इन आंकड़ों के सामने आने के साथ ही हाथरस में वाल्मीकि समाज की लड़की के बलात्कार और हत्या ने इसकी बानगी भी रख दी है।
यह किसी भी सभ्य समाज को हिला देने वाली घटना है, जिससे साबित होता है कि यहां पर मनुवादी पितृसत्ता खुलेआम कायम है। ऐसा न होता तो हाथरस पुलिस इस घटना की एफआईआर दर्ज करने में एक सप्ताह का समय न लगाती। यह घटना 14 सितंबर की है और एक ट्वीट द्वारा हाथरस एसएसपी को इसकी सूचना 17 को पक्के तौर पर हो गई थी, लेकिन जब इसके खिलाफ प्रदेश भर से आवाज उठी तब पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया और बुरी तरह घायल लड़की का इलाज शुरू कराया। आरोपितों की गिरफ्तारी भी तब संभव हुई जब लोगों के बीच यह खबर फैल गई।
पुलिस प्रशासन इस मामले में दोषियों को बचाने का प्रयास कर रही है, यह उसकी तमाम गैरकानूनी हरकतों से साफ जाहिर हो रहा है। लड़की की सफदरजंग हस्पताल में मौत के बाद कभी वह कह रही है कि बलात्कार हुआ ही नहीं, कभी कह रही है कि जीभ नहीं काटी गई बल्कि दम घुटने से लड़की की मौत हुई। जब लड़की ने अपने साथ हुए बलात्कार की बात मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज करा दी है, तो पुलिस द्वारा ऐसे बयान देना अपने आप में अपराध है। यह उसकी मंशा पर सवाल खड़े करता है। और तो और कानून का उल्लघंन करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस ने लड़की का शव अस्पताल से गायब कर रात में ही उसे जला दिया जबकि लड़की के घर वाले उसे मांगने और दाह संस्कार सुबह करने के लिए मन्नत करते रहे। यह बेहद अमानवीय और गैर कानूनी काम है।
शुक्र है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वत संज्ञान लेते हुए कहा है कि पुलिस द्वारा ऐसा करना संविधान के आर्टिकल 21, जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। जीवन के अधिकार में व्यक्ति के मृत शरीर का सम्मान भी शामिल है। हाथरस के पुलिस प्रशासन ने इसकी अवहेलना कर मृत शरीर और उसके परिवार के खिलाफ गैर-कानूनी काम किया है। इसकी भी हम कड़ी निंदा करते हैं। गांव के सवर्ण अपराधियों को बचाने के लिए सरकार एक के बाद एक आपराधिक कृत्य करती ही जा रही है। वह बलात्कारियों हत्यारों के खिलाफ कार्यवाही न कर पीड़िता के घर वालों पर दमनात्मक कार्यवाही कर रही है। मीडिया द्वारा जारी वीडियो दिखाते हैं कि DM खुलेआम पीड़िता के परिवार को धमका रहे हैं। परिवार से मिलने की कोशिश करने वाली ABP की पत्रकार से भी वहाँ तैनात पुलिस ने बदतमीजी की, यहाँ तक कि पीड़ित परिवार की वकील को भी उनसे मिलने नहीं दिया गया।
बेटी बचाओ का नारा लगाने वाली सरकार चाहे हाथरस के सवर्ण आरोपी हों, चाहे चिन्मयानंद हो, बलात्कारी को ही बचाने में लगी रहती है। इस पुलिस व्यवस्था से न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है? लड़की की लाश को गुपचुप तरीके से जलाए जाने वाले दिन ही उत्तर प्रदेश के ही बलरामपुर जिले से भी एक दलित लड़की के साथ जघन्य बलात्कार और हत्या का मामला सामने आया, जिसमें अपराधियों ने लड़की का हाथ पैर तोड़ कर रिक्शे पर लाद कर घर भेज दिया। घर पहुंचने के बाद लड़की की मौत हो गई। आजमगढ़ जिले से भी एक बलात्कार की खबर आ रही है। ये घटनाएं प्रदेश में महिलाओं के प्रति सरकार के नजरिए को बयान कर रही हैं।
आखिर क्या वजह है कि सभी बलात्कार और हत्या में ये समान तथ्य है कि पुलिस सवर्ण बलात्कारियों के साथ खड़ी दिखाई दे रही है? अम्बेडकर का नाम जपने वाली सरकार में आखिर दलितों और महिलाओं के खिलाफ क्यों बढ़ गई है? दरअसल, यह इस सरकार के नजरिए को दिखाती है कि वह दलित, महिला, आदिवासी और अल्पसंख्यक विरोधी सरकार है। WSS सरकार के इस रवैए की कड़े शब्दों में निंदा करती है। इस पूरे मामले को टालने दबाने और रातोंरात लाश को जलाने वाले पुलिस आला अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की मांग करती है। साथ ही महिलाओं, दलितों अल्पसंख्यकों के साथ गैर-बराबरी की राजनीति करने वाले मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट सरकार के इस्तीफे की मांग करती है।
WSS माननीय उच्च न्यायालय से गुज़ारिश करती है कि चूँकि उन्होंने पीड़िता के शव को गैर कानूनी तरह से जलाने के मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है, अतः मामले की गंभीरता और पुलिस का आचरण देखते हुए वह इस मामले की जाँच अपनी देखरेख में करवाएँ। WSS माँग करती है कि किसी तरह की छेड़छाड़ से बचाने के लिए पीड़िता का मजिस्ट्रेट के सामने दिया धारा 164 का बयान माननीय उच्च न्यायालय में जमा किया जाए, जब तक कि मुकदमे में उसकी ज़रूरत न पड़े।