आर्टिकल 19: UN में गमकता महिला सशक्‍तीकरण का गजरा हाथरस में सूखकर बिखर गया है!


कहते हैं जब रोम जल रहा था तो नीरो बंसी बजा रहा था। पूरी दुनिया में राष्ट्राध्यक्षों के जनता की तरफ से बेपरवाह हो जाने के संदर्भ में यह सबसे प्रचलित मुहावरा है, जो हिंदुस्तान में इन दिनों एकदम सच साबित हो रहा है। हाथरस जिले का सबसे बड़ा अफसर खुलेआम पीड़िता के परिवार को धमका रहा है कि न्याय हमारे जूते के तल्ले के नीचे है। तुम वही बोलो जो हम चाहते हैं। मीडिया वाले आज हैं, कल नहीं रहेंगे।

निकम्मी पुलिस तब कहीं नहीं थी जब गांव के मवाली उसे छेड़ते थे। निकम्मे अफसर कहीं नहीं थे जब उसका गला घोंट दिया गया और उसकी जुबान काट दी गयी। निकम्मी सरकार तब कहीं नहीं थी जब बेटी बचाओ के फरेबी झंडे में लपेटकर उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गयी। लेकिन दुनिया में जब नि‍रीह लोगों पर जुल्म की तस्वीरों पर सत्ताधीश और सम्राट के लौह पुरुष और युग पुरुष होने का मुर्दा तिलिस्म टूटकर चकनाचूर हो जाता है, तो खाकी और खादी मिलकर रौंदने में जुट जाते हैं उसकी आवाज़ को। उसकी आजादी को।

पीड़िता का भाई बताता है कि बहन को खत्म करने के बाद योगी आदित्यनाथ की पूरी पुलिस, प्रशासन और सरकार पूरे परिवार के अस्तित्व को मिटा देने पर आमादा है। सहमा हुआ बच्चा आरोप लगाता है कि अफसर परिवार के लोगों को कमरे में बंद करके उनकी छातियों की पसलियों को तोड़ देना चाहते हैं। वे हमें घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे। हमारे मोबाइल जब्त कर लिए गये हैं। हम न किसी से मिलने जा सकते हैं और न ही कोई घर में आ सकता है।

बीच-बीच में सायरन बजाती पुलिस की कोई गाड़ी इस गांव की ओर मुड़ती है। किसी बच्चे, किसी औरत, किसी बुजुर्ग को धमकाकर चली जाती है। खबरदार, जो जुबान खोली। गुंडों, मवालियों, बलात्कारियों को ऐसी सरपरस्ती हासिल हो तो बेटियों के हिस्से में जोर, जुल्म और ज्यादाती के सिवा कुछ बचता नहीं है।

नरेंद्र मोदी ने 2017 में उत्तर प्रदेश की एक रैली में पूछा था कि क्या कारण है उत्तर प्रदेश में बेटियां शाम ढलने के बाद घर से बाहर नहीं निकल पातीं, क्या कारण है। आज तो हालत ये है कि उत्तर प्रदेश में बेटियां दिन के उजाले में भी नहीं निकल सकतीं। अपना काम नहीं कर सकतीं। खाकी वाली पलटन सरकार की गुंडा ब्रिगेड में तब्दील हो चुकी है। एडीएम उन गुंडों के सरदार में। जब परिवार की मदद करने दिल्ली से गयी एक नामी वकील उसकी बेहूदगी से गुजरती है तो सिहर उठती है।

एक पूरी दलित बस्ती पुलिस, प्रशासन और सरकार की बंधक बनी हुई है। बाकायदा कानूनी तौर पर। सवाल है कि पीड़िता के परिवार को बंधक बनाकर किसे बचाना चाहते हैं योगी आदित्यनाथ। औरत होने के अर्थ की ऐसी तौहीन पर लहराता हुआ गेरुआ दलित बस्ती की तरफ देखकर सिसकता है। योगी की गुंडा पलटन न महिला पत्रकारों को छोड़ रही है, न वकीलों को और न सांसदों को।

ऐसा लगता है जैसे हाथरस का बूलगढ़ी गांव किसी और देश का हिस्सा है जहां भारत का कानून लागू नहीं होता। राहुल गांधी को पुलिसवाला धक्का देकर गिरा देता है। चंद्रशेखर आजाद को रोक लिया जाता है। समाजवादी पार्टी की टीम को भी पहुंचने नहीं दिया जाता। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन पहुंचते हैं तो एक बदमिजाज मजिस्ट्रेट उन पर हाथ उठा देता है। उनके साथ गयी एक महिला के साथ बदसलूकी करता है।

दरअसल, बात गुंडा राज से आगे निकल चुकी है। जंगल राज से भी आगे। रावणराज में भी महिलाओँ के साथ ऐसा गंदा, घटिया और बदतर सलूक नहीं होता होगा। जहां न महिला पत्रकार सुरक्षित हैं, न महिला वकील, न सांसद और न नेता। इन सभी का अपराध केवल इतना है कि उनके जाने से बीजेपी सरकार की हकीकत बेपर्द हो जाती। एबीपी और न्यूज24 की महिला पत्रकारों के साथ बाकायदा पुलिस ने धक्कामुक्की की है।

जिस भाई ने अपनी बहन की कुचली हुई जीभ और तोड़ी गयी हड्डियां देखी हैं वो बहुत मुश्किल से घर से बाहर निकलकर खेतों के रास्ते छिपता-छिपाता पत्रकारों के पास पहुंचता है और कहता है कि हमारे घर चलिए, हमें पुलिस छोड़ेगी नहीं। पीड़िता की भाभी कहती है कि अब हम यहां नहीं रह पाएंगे। खुद डीएम आता है और धमकाकर जाता है। डीएम की गुंडागर्दी की हालत तो ये है कि जो पिता घर से बाहर नहीं निकल सकता उसके सामने टाइप की हुई चिट्ठी रख देता है और उससे हस्ताक्षर करवा लेता है कि हम योगी जी के रामराज में अमन चैन से हैं, हम पर उनका अहसान है, हमको हमारे हाल पर छोड़ दीजिए।

पीड़िता के भाई को बयान देता देख पुलिस वालों के हाथ-पांव फूल जाते हैं। वो उसे खदेड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन पत्रकारों के कैमरे देखकर वो अपनी गुंडा संस्कृति पर काबू कर लेते हैं। इस बच्चे का बयान एक ऐसी टिप्पणी है जिससे गुजरते हुए रोआं सिहर उठता है। लोकतंत्र को कुचलने का ये दुर्दांत उदाहरण किसी गुंडा मवाली ने नहीं, भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने स्थापित किया है।

एक तस्वीर में डीएम धमकी दे रहा है। एक तस्वीर में एडीएम धमकी दे रहा है। एक तस्वीर में थानेदार धमकी दे रहा है। पूरे गांव के बाहर रस्सी से बैरिकेडिंग कर दी गयी है। इतनी सख्ती तो भारत पाकिस्तान सीमा पर भी नहीं। ये सारी तस्वीरें बहुत बेचैन करने वाली हैं। बहुत भयावह हैं। बहुत परेशान करने वाली हैं।

इन तस्वीरों के बीच संयुक्त राष्ट्र में भाषणबाजी हो रही है कि हम महिलाओं को ताकवतवर बना रहे हैं। स्मृति ईरानी ने कहा है कि भारत महिलाओं के आत्मसम्मान को नयी ऊंचाई पर ले गया है और ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है। पता नहीं स्मृति ईरानी को इस भाषण के बाद नींद कैसे आयी होगी।

याद कीजिए, मैडम के घर के बाहर नारेबाजी हो गयी थी तो अपनी बेटी का नाम लेकर नैतिकता का अखबार छाप दिया था, लेकिन आज एक बेटी को जान से मार डाला गया, उसके पूरे परिवार को उजाड़ दिया गया और अब उन्हें घर में बंद करके पीटा जा रहा है तो इनकी नैतिकता का गजरा सूखकर बिखर गया है।



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