तिर्यक आसन: ठगी को भी रोजगार का दर्जा दिया जाए!


साधो, एक बार केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने दावा किया था कि सरकार 2020 तक पाँच करोड़ लोगों को रोजगार देगी। वादों और दावों पर भाजपा सरकार के ‘रिकॉर्ड’ को देखते हुए बंडारू दत्तात्रेय के दावे पर विपक्ष ने भरोसा नहीं किया। दावे पर भरोसा कायम रखवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहली बार मीडिया को इंटरव्यू देना पड़ा। इंटरव्यू के दौरान प्रधानमंत्री ने बंडारू दत्तात्रेय के दावे पर मुहर लगाते हुए कहा- ‘’पकौड़े का ठेला लगाने वाला दिन भर में दो सौ रुपये कमा लेता है। ये रोजगार हुआ कि नहीं?’’

साधो, इसी तरह प्रधानमंत्री प्रतिवर्ष एक करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा निभा रहे हैं। रोजगार के वादे को सरकारी या रोजगार की परिभाषा की कसौटी पर कसने वाले ये नहीं देख पाएंगे कि प्रधानमंत्री किस तरह अपना वादा निभा रहे हैं। रोजगार का वादा निभाने के लिए सिर्फ कपड़ा पहनाने की देर है। 

साधो, हाल ही में दिल्ली गया था। एक जगह पकौड़े का ठेला लगा हुआ था। महिला पकौड़े बना रही थी। महिला ने कौशल विकास योजना के तहत पकौड़ा बनाने का स्किल पैदा करने वाला कपड़ा पहना हुआ था। उस कपड़े पर ध्यान गया, तो रास्ते में वही कपड़ा खोजता। कदम-कदम पर वो कपड़ा मिलता। सब्जी बेचने वाले ने पहन रखा है। नूडल्स बनाने वाले ने पहन रखा है। ऑटो चलाने वाले ने पहन रखा है। अचार बेचने वाले ने पहन रखा है।

साधो, ‘मेरे खून में व्यापार है’ वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भावनाओं के कुशल खिलाड़ी हैं। भावनाओं के सफल सौदागर हैं। 2014 के पहले चाय्ये गरम चाय्ये करते हुए उन्होंने चाय वालों को भावनाओं की कड़क चाय पिलायी। फिर पकौड़े गरमा गरम पकौड़े करते हुए पकौड़े वालों की भावनाओं को तल दिया। मोदी विरोध के नाम पर चाय और पकौड़े वालों का उपहास करने वाले नरेंद्र मोदी का ही प्रचार करते हैं। अपने उपहास से वे चाय और पकौड़े वालों को और मजबूती से नरेंद्र मोदी के पक्ष में लामबंद करते हैं। 

साधो, भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ भावना प्रधान देश भी है। भावनाओं का बाजार जैसे-जैसे बढ़ रहा है, कृषि का क्षेत्रफल वैसे-वैसे घटता जा रहा है। भावनाओं के बाजार की बढ़ती रफ्तार से वो दिन दूर नहीं, जब ये देश कृषि प्रधान की जगह सिर्फ भावना प्रधान देश हो जाएगा।

साधो, प्रतिदिन बढ़ते भावनाओं के सेंसेक्स से कृषि का क्षेत्रफल सिकुड़ता जा रहा है। जैसे एक खेत में कई प्रकार की फसलें उगायी जाती हैं, उसी प्रकार बाजार में अनेक प्रकार की भावनाओं के पोस्टर बैनर लगे हुए हैं। कुछ भावनाओं का सीधा प्रसारण भी होता है। कुछ भावनाएँ डेली सोप्स की शक्ल में चौबीस घण्टे टीवी स्क्रीन पर उफनती-बहती-सुबकती रहती हैं। कुछ भावनाएं टीआरपी के प्राइम टाइम में चर्चा-परिचर्चा के रूप में हंगामा भी खड़ा करती हैं।

साधो, बढ़ती आबादी और बढ़ते शहरीकरण से कृषि क्षेत्रफल कम होने लगा तो विकसित बीटी फसलों और बोनसाई पौधों का जमाना आ गया। पौधे छतों और बॉलकनी में उगाये जाने लगे। छोटे-छोटे पौधों को मिल रहा भाव देख भावनाएं भी बौनी होने लगीं। बढ़ती महंगाई के साथ बौनी हो चली भावनाओं का भाव भी बढ़ा। अब भावनाएं ‘जागृत’ नहीं होतीं, ‘भड़कती’ हैं। भड़कने वाली भावनाओं का भाव बढ़ाने के लिए ब्रेक नाम का एक पुल तैयार किया गया है। इस पुल से भावना के सौदागरों की मालगाड़ियां गुजरती हैं। इस पुल पर वसूला जाने वाला टोल टैक्स मालगाड़ी में रखे भावना के प्रकार, समय और टीआरपी के अनुसार वसूला जाता है। ब्रेक के दौरान सरकार जागो ग्राहक जागो कहती है। उसके बाद भावना के सौदागरों के विज्ञापन आते हैं। जागो ग्राहक जागो सुनकर तीस सेकेंड के लिए जगा ग्राहक फिर सो जाता है।

साधो, अस्पताल में एक नवजात या छोटा बच्चा भर्ती होता है। उसकी तीमारदारी के लिए परिवार के दो-तीन लोग लगे रहते हैं। दवा की खुराक के बाद बच्चा सोया है। अचानक बच्चा रोने लगता है। कोई कहता है दूध पिला दो। कोई कहता है पानी पिला दो। डॉक्टर ने कुछ भी देने से मना किया है, तो कोई कहता है कि बस दो चम्मच ही पिला दो। डॉक्टर की सलाह पर भावना हावी हो जाती है और बच्चे को दो की जगह कई चम्मच पिला दिये जाते हैं। साधो, भावनाओं के सौदागर इसे विज्ञापन बनाकर पेश करते हैं।

टीवी पर कुकिंग ऑयल का एक विज्ञापन आ रहा है। चालीस-पचास वर्ष का एक बड़ा सा बच्चा अस्पताल में भर्ती है। दादी उसके लिए टिफिन लेकर पहुंचती हैं। नर्स मना करती है, लेकिन दादी के बार-बार ‘बस दो चम्मच, बस दो चम्मच’ कहने से नर्स हार मान लेती है। नर्स दादी को दो चम्मच पिलाने की इजाजत दे देती है। फिर वही होता है, जो अस्पताल में भर्ती नवजात बच्चे के साथ होता है। दादी दो चम्मच की जगह पूरी टिफिन पिला देती है। साधो, भावना के इस विज्ञापन का भाव ये है कि आपके दिल की सेहत के लिए ये तेल अनिवार्य है।

साधो, दादी को नर्स के सामने गिड़गिड़ाने की जरूरत ही नहीं थी। दादी नर्स से बता देतीं कि ये भावनाओं के फलां सौदागर की कम्पनी का तेल है, तो नर्स क्या डॉक्टर साहब भी दादी को रोकने की हिम्मत नहीं कर पाते। साधो, डॉक्टर साहब जानते हैं कि जब भावनाएं कमजोर हो जाएं, तो दिल की सेहत कोई नहीं सुधार सकता।    

साधो, नरेंद्र मोदी लंदन दौरे पर गये तो डाक्टरों को कमीशनखोर बता मरीजों की भावनाओं पर मरहम लगाया। प्रधानमंत्री द्वारा कड़वी दवा दिये जाने से डॉक्टर और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन नाराज हुई। साधो, मुट्ठी भर डॉक्टरों को नाराज करने का जोखिम अनगिनत मरीजों को सिर्फ बयान से चंगा कर मिलने वाले लाभ के आगे नगण्य है। वैसे भी डॉक्टर कितने दिन नाराज रहेंगे? किसी दिन प्रधनामंत्री इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के लिए सेल्फी समारोह आयोजित कर देंगे। अस्पताल में टँगा प्रधानमंत्री के साथ सेल्फी का ‘फ्लैक्स’ डॉक्टर की नाराजगी दूर कर देगा। साधो, अपनी सरकार से नाराज होने वालों को मनाने के लिए नरेंद्र मोदी की जबान के जखीरे में रामबाण हथियार हैं। जिनका वार न जाए खाली। इसलिए प्रधानमंत्री कड़वी दवा देने से हिचकते नहीं हैं। 

साधो, चाय की दुकान पर सुबह-सुबह चर्चा छिड़ी हुई थी। चर्चा का विषय था- धर्म और राजनीति। चर्चा करने वालों को चाय देते हुए चाय वाला भी चर्चा सुन रहा था। चर्चा का विषय ऐसा था, हमेशा की तरह जिसका अंत नहीं होना था। कोई परिणाम भी नहीं निकलना था। अंतत: चाय वाले ने कहा- महाभारत की कथा में भीष्म पितामह के सामने एक पात्र को खड़ा कर दिया जाता है। उस पात्र को सामने खड़ा देख भीष्म पितामह लाचार हो जाते हैं। लोकतंत्र की राजनीति, जनता के सामने धर्म को खड़ा कर देती है। धर्म को सामने खड़ा देख जनता के सभी अस्त्र-शस्त्र, जो संवैधानिक अधिकार के नाम पर मिले हैं, कार्य करना बंद कर देते हैं। और जनता मृत्यु शैय्या पर पड़ जाती है।     

साधो, युवाओं को पकौड़ा रोजगार की तरफ प्रेरित करने के लिए प्रधानमंत्री की आलोचना हुई। साधो, प्रधानमंत्री को पकौड़ा रोजगार की जगह एक गुप्त रोजगार के लिए प्रेरित करना चाहिए था। गुप्त रोजगार के माध्यम से उनके पक्ष में मजबूती से लामबंद होने वालों की संख्या विश्व की सबसे बड़ी पार्टी को और बड़ी पार्टी बना सकती है। स्व-रोजगार के नये विकल्प के तहत बताना चाहिए कि स्व-रोजगार का एक गुप्त जरिया आइपीएल जैसी फटाफट क्रिकेट लीग भी हैं। रोजगार को बढ़ावा देने के लिए इस स्व-रोजगार को गृह उद्योग या कुटीर उद्योग के रूप में मान्यता दी जा सकती है। इस रोजगार की परिभाषा भी आसान है- एक मोबाइल, नेट पैक (अनिवार्य नहीं) और दुनिया भर में होने वाली ट्वेंटी और टेन क्रिकेट लीग। 

साधो, जुआ भी गृह उद्योग बन गया है। पूरा परिवार लगा हुआ है। जुआ उद्योग में बाप-बेटों के बीच सम्मान का सामंजस्य देखते ही बनता है। एक बेटा कहता है- पापा! मैं पीपल के नीचे वाली फड़ पर रहूंगा। आप वहां मत आइएगा। दूसरा बेटा कहता है- पापा! मैं पोखरे वाली फड़ पर रहूंगा। आप उधर मत आइएगा। बाप कहता है- बच्चों! मैं बसवारी वाली फड़ पर रहूंगा। तुम लोग उधर मत आना।

साधो, एक और वादा, जिसके लिए विपक्ष अक्सर नरेंद्र मोदी को घेरता है- पंद्रह लाख का वादा। ये वादा वे लोकसभा चुनाव-2014 के नतीजों वाले दिन ही पूरा कर चुके हैं। ये जानकारी मुझे आजमगढ़ से मिली। वहां सामाजिक न्याय का सम्मेलन हो रहा था। वक्ता मनुवाद, ब्राह्मणवाद, फासीवाद से होते हुए 15 लाख के वादे पर आये। उनकी बात सुन श्रोता दीर्घा में बैठे एक श्रोता ने बगल वाले श्रोता से कहा- ये वादा नरेंद्र मोदी पूरा कर चुके हैं। दलितों-पिछड़ों के रूप में कालाधन वे अपनी पार्टी के खाते में डाल चुके हैं। 

साधो, उस आदमी का दलितों-पिछड़ों को कालाधन कहना, नस्लभेद और रंगभेद की टिप्पणी हो सकती है पर उसने जो कहा वो गोरों का अश्वेतों के प्रति वैश्विक नजरिया रहा है। दलितों-पिछड़ों का बौद्धिक वर्ग उस आदमी की बात से नाराज न हो। मेरी बात सुनें- हीरा, कोयले की खदान से भी निकलता है। 

साधो, खाते में पंद्रह लाख न सही, दो-चार लाख आये हैं। पंद्रह लाख के वादे की याद दिलाने वाले भी खाते में आयी रकम नहीं देख पा रहे हैं। जैसे रोजगार का वादा याद दिलाने वाले रोजगार के आँकड़ों को नहीं देख पा रहे हैं। 

साधो, खाते में पचास हजार रुपये आने की जानकारी भाजपा की आइटी सेल के प्रवक्ताओं ने दी थी। उनके अनुसार यूनेस्को के एक सर्वे के अनुसार भारत में 2014 के बाद शौचालय बनवाने वालों ने प्रति वर्ष औसतन पचास हजार रुपये की बचत की है। बचत, खुले में शौच से होने वाली बीमारियों से बचने के कारण हुई। इस तरह तीन वर्ष में खाते में डेढ़ लाख रुपये आये और छह वर्ष में तीन लाख। अब खाते से तीन लाख निकालना आपकी जिम्मेदारी। 

साधो, खाते में आयी रकम रोजगार और विकास के आँकड़े तैयार करने वाले सेलेब्रिटी अर्थशास्त्रियों के ऑडिट की देन है। सेलेब्रिटीज के पास कई स्व-रोजगार होते हैं। समय-समय पर वे उसका प्रदर्शन करते हैं। फिल्म आलोचक बॉलीवुड द्वारा हॉलीवुड की नकल करने के सबूत देते रहते हैं। ये भी बताते हैं कि बॉलीवुड वाले भोंडी नकल करते हैं। फिल्म की नकल के अतिरिक्त बॉलीवुड सेलेब्रिटीज, हॉलीवुड सेलेब्रिटीज की बौद्धिक नकल करने की कोशिश भी करते हैं। इस नकल के दौरान अधिकांश हास्यास्पद हो जाते हैं। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद बॉलीवुड सेलेब्रिटीज अर्थशास्त्री बन गये। 

साधो, नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद भले ही देश की विकास दर में कमी हुई हो; पर सेलेब्रिटी इकॉनॉमिस्ट बढ़ने की विकास दर में इजाफा हुआ है। अर्थशास्त्र का नोबल प्राप्त करने वालों, रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और कई अर्थशास्त्रियों पर गौतम अडानी, बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर, अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर, अक्षय कुमार जैसे पूँजी के दुलरुआ सेलेब्रिटी इकॉनॉमिस्ट भारी पड़े। अर्थशास्त्री नोटबंदी को संगठित लूट बताते रहे। सेलिब्रिटी इकॉनॉमिस्ट नोटबंदी को विकास की राह में मील का पत्थर कहते रहे। 

साधो, नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद देश के अमीरों की संपत्ति का विवरण आया। विवरण से पता चला कि नोटबंदी को विकास की राह में मील का पत्थर बताने वाले संगठित लूट के हिस्सेदार थे। देश में बेरोजगारी बढ़ गयी, छोटे और मँझोले उद्योग चौपट हो गये; पर सेलिब्रिटी इकॉनॉमिस्ट की संपत्ति बेतहाशा बढ़ गयी। दूसरी तिमाही में अपनी संपत्ति बढ़ाने के लिए करन जौहर ने भी विकास दर का अनुमान लगाया है- दूसरी तिमाही में विकास दर बढ़ेगी। दोहरी नागरिकता वाले राष्ट्रवाद के अभिनेता अक्षय कुमार को करन जौहर से सावधान हो जाना चाहिए। राष्ट्रवाद का निर्देशक बनने के लिए करन जौहर ‘कमोड एक क्रांति’ नामक फिल्म बना सकते हैं।

साधो, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के तत्काल बाद कहा था- वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं को आगे बढ़ाएंगे। अपने वादे के अनुसार वे रोजगार का कपड़ा पहनाने वाली योजना को आगे बढ़ा भी रहे हैं। 

साधो, उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा था कि कौशल विकास योजना के तहत चौदह हजार युवाओं में बाल काटने का स्किल पैदा कर उन्हें रोजगार देगी। बाल काटने का स्किल पैदा करने की जिम्मेदारी जावेद हबीब निभाएंगे। योजनानुसार बाल काटने का स्किल सीखने वाले युवाओं की नियुक्ति गाँव और कस्बों के चट्टी-चौराहों पर खुलने वाली जावेद हबीब के ‘सलोन’ में होगी जहां कौशल विकास योजना का कपड़ा पहन बाल काटे जाएंगे।

साधो, परम्परानुसार ये तय है कि सरकार द्वारा रोजगार के तुष्टिकरण के लिए इतना कुछ किये जाने के बाद भी सरकार विरोधी संतुष्ट नहीं होंगे। सरकार विरोधियों को संतुष्ट करने के लिए कौशल विकास योजना में एक और स्किल को शामिल किया जाना चाहिए। रोजगार के आँकड़ों में उछाल के साथ वोट प्रतिशत भी बढ़ेगा। सरकार को अपने अधिकृत प्रवक्ताओं तथा आइटी सेल प्रवक्ताओं को और अधिक तर्कशील बनाने के लिए कौशल विकास योजना के तहत ठगी का भी स्किल निखारना चाहिए जिसके तहत ठगी के आरोपों में गिरफ्तार आरोपितों का स्किल निखारा जाए। स्किल निखारने के तहत उन्हें ठगी करने के बाद भी बेदाग रहना सिखाया जाए। रोजगार के आँकड़ों को और मजबूत बनाने के लिए ठगी को भी रोजगार का दर्जा दे दिया जाए।

साधो, इस रोजगार को लागू करने में एक समस्या हो सकती है- ठगों का स्किल निखारने की जिम्मेदारी किसे दी जाए। दावेदार कई हैं, इसलिए योजना शुरू होने में विलम्ब हो सकता है।

साधो, भावनाओं की टोपी सँभलकर पहनना।



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