हत्या के फर्जी मुकदमे से बरी होने और मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर छत्तीसगढ़ शासन से मुआवजा पाने वाले सभी छह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उम्मीद जाहिर की है कि उनकी तरह ही प्रताड़ित आदिवासियों और ऐसे सभी नागरिकों को, जो झूठे आरोपों में फंसाकर जेलों में डाले गये हैं, को शीघ्र इंसाफ मिलेगा। उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एक पत्र लिखकर तत्कालीन आइजी एसआरपी कल्लूरी के खिलाफ कार्यवाही की भी मांग की है।
मुख्यमंत्री को लिखे पत्र को मीडिया के लिए आज माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने जारी किया है। पत्र में मुआवजा राशि की प्राप्ति की सूचना देते हुए मुख्यमंत्री बघेल को सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग के निर्देशों का अनुपालन करने के लिए धन्यवाद दिया गया है और आशा जाहिर की गयी है कि मानवाधिकार हनन से प्रताड़ित हजारों आदिवासियों और नागरिकों को भी न्याय मिलेगा।
अपने पत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. नंदिनी सुंदर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रो. अर्चना प्रसाद, माकपा के छग राज्य सचिव संजय पराते व प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े साहित्यकार-बुद्धिजीवी विनीत तिवारी ने संयुक्त रूप से कहा है कि उन्हें शामलाल बघेल की हत्या के मामले में फंसाने की साजिश में तत्कालीन आइजी कल्लूरी की भूमिका रही है, इसलिए उनके कार्यकाल में बस्तर में हुई मुठभेड़ों और गिरफ्तारियों आदि की सघन जांच करवायी जाए। इन कार्यकर्ताओं ने अपने पत्र में जोर देकर कहा है कि अपने पद का दुरुपयोग करने वाले ऐसे अधिकारियों को पूर्ववत सामान्य तरह से काम जारी रखने नहीं दिया जाना चाहिए।
“हम यह भी आशा करते हैं कि इस तरह के झूठे आरोप लगाकर हमें परेशान करने वाले पुलिस अधिकारियों की गहराई से जांच और कार्यवाही होगी। यह मामला पूरी तरह से झूठी और विद्वेष की भावना से की गयी एफआइआर का था, जिससे हमें तकलीफ पहुंचायी जा सके और इस पूरी साज़िश की पृष्ठभूमि में तत्कालीन पुलिस आइजी एसआरपी कल्लूरी की अहम भूमिका रही है। हमारा अनुरोध है कि उनके कार्यकाल में बस्तर में हुई मुठभेड़ों और गिरफ्तारियों आदि की सघन जाँच करवायी जाए। अपने पद का दुरुपयोग करने वाले ऐसे अधिकारियों को पूर्ववत सामान्य तरह से काम जारी रखने नहीं दिया जाना चाहिए।”
उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2016 में नंदिनी सुंदर के नेतृत्व में 6 सदस्यीय शोध दल ने बस्तर के अंदरूनी आदिवासी इलाकों का दौरा किया था और भाजपा प्रायोजित सलवा जुडूम में आदिवासियों पर हो रहे दमन और उनके मानवाधिकारों के हनन की सच्चाई को सामने लाया था। जैसे ही तत्कालीन भाजपा सरकार को इस शोध दल के दौरे का पता चला, बस्तर पुलिस द्वारा उनके पुतले जलाये गये थे और तत्कालीन आइजी एसआरपी कल्लूरी द्वारा “अबकी बार बस्तर में घुसने पर पत्थरों से मारे जाने” की धमकी दी गयी थी।
5 नवम्बर 2016 को सुकमा जिले के नामा गांव के शामनाथ बघेल नामक किसी व्यक्ति की हत्या के आरोप में इस शोध दल के सभी छह सदस्यों के खिलाफ आइपीसी की विभिन्न धाराओं, आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत फर्जी मुकदमा गढ़ा गया था। तब सुप्रीम कोर्ट के संरक्षण से ही इस दल के सदस्यों की गिरफ्तारी पर रोक लग पायी थी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही वर्ष 2019 में एक एसआइटी जांच में इन्हें निर्दोष पाया गया था और मुकदमा वापस लिया गया था। उल्लेखनीय है कि मानवाधिकार हनन के इस मामले में राष्ट्रीय आयोग द्वारा समन किये जाने के बावजूद कल्लूरी आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए थे। पिछले माह ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को इस प्रकरण में पीड़ितों को हुई मानसिक प्रताड़ना के लिए एक-एक लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश जारी किया था।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते सहित इन सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मुआवजे के रूप में राज्य शासन से प्राप्त इस राशि का उपयोग आदिवासी क्षेत्रों में जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे लोगों और आंदोलनों की मदद के लिए करने का फैसला किया है। इससे जुड़ी खबर नीचे पढ़ें।