UP: लॉकडाउन ने तोड़ दी फूल उत्पादन की समूची आपूर्ति श्रृंखला और किसानों की कमर


भारत सरकार ने लॉकडाउन की शुरुआत करने से पहले एक दिन के ‘जनता कर्फ्यू’ का अभिनव प्रयोग किया जिसमें यह दावा किया गया कि यदि देश की जनता इसका पालन करेगी तो कोरोना की चेन अपने आप टूट जाएगी। हुआ इसका उल्टा। कोरोना संक्रमण की चेन तो नहीं टूटी, लेकिन सामाजिक संरचना की चेन जरूर टूट गई।

टूट चुकी इस सामाजिक संरचना में सबसे पहले नज़र आये मजदूर। वे लगातार सड़कों पर दृश्य हैं। इस बीच किसान भी नज़र आये। बेमौसम आंधी तूफान से तबाह फसलों का ज़िक्र आया, लेकिन सब आधा-अधूरा। हर किसान अनाज नहीं उगाता। ठीक वैसे ही, जैसे हर मजदूर मकान नहीं बनाता। हमारे दिमाग में बने स्टीरियोटाइप ने उन तबकों को नज़र से ओझल कर डाला है जिन पर इस लॉकडाउन की मार सबसे ज्यादा पड़ी है लेकिन जो खुद अपना हाल बयां कर पाने में सक्षम नहीं हैं। इन्हीं में एक आबादी है फूलों की खेती करने वाले किसानों की, जो प्रत्यक्ष रूप से तो हमारा पेट नहीं भरते लेकिन धार्मिक स्थलों से से लेकर धार्मिक-सामाजिक आयोजनों तक फूलों की समूची आपूर्ति श्रृंखला में लगे लोगों की आजीविका ज़रूर चलाते हैं।

गृह मंत्रालय द्वारा लॉकडाउन-1 के बीच में सूचना जारी कर के खेती-किसानी से जुड़ी आबादी को छूट दी गयी थी लेकिन फूलों की खेती से जुड़े किसानों के लिए यह छूट किसी काम नहीं आयी क्योंकि फूलों की उपज से लेकर अंतिम उपयोग तक एक स्थापित चेन है। फूलों की खेती करने वाले किसानों को तभी लाभ मिल सकता है जब खेत से फूल धार्मिक स्थलों, बाजार और शादी-विवाह में पहुंच सकें। चूंकि तालाबंदी में पूरा समाज ठप हो गया, तो चेन टूट गयी। फूल खेतों में मुरझा गये। किसान तबाह हो गये।

नाजुक फूलों के पीछे उदास चेहरे

फ़िल्म ‘प्रेम कहानी’ में आनंद बक्शी का लिखा और मुकेश-लता का गाया एक गीत है, “फूल आहिस्ता फेकों, फूल बड़े नाज़ुक होते हैं”। आज देश के गांवों, कस्बों, शहरों में उगने वाले फूल केवल फेंके जाने को ही नहीं, बल्कि सड़ाये-गलाये और नष्ट किये जाने के लिए अभिशप्त हो चुके हैं जबकि इन्हें पैदा करने वालों की हालत बेहद नाजुक हो चुकी है।  

उत्तर प्रदेश के गांवों में फूल पैदा करने वाले किसान इन दिनों अपने घर पर खाली बैठे हैं। इनके चेहरे पर बेबसी और फुर्सत में घर बैठने की चिंता साफ झलकती है। मोतीलाल माली (60) बताते हैं, “जन्मजात हमारा यही (फूलों का) धंधा है। यही एक सहारा भी है परिवार चलाने का। हम लोग कभी घर नहीं बैठे। खेत में या मंदिर के सामने फूल बेंचते मिलते हैं, लेकिन तालाबंदी में घर पर बैठे हैं। फूल कहीं ले जा सकते नहीं, इसलिए हमने फूल लगे खेत की जुताई करा दिया। जो फूल बचे हैं उनकी सेवा करना भी बंद कर दिया।”

मोतीलाल के घर के बगल में फूलों के खेत जो हमेशा घासमुक्त होते थे, वहां अब घास के बीच खिले फूल नजर आ रहे हैं। यह तस्वीर है सुल्तानपुर जिले के खरमुजुही गांव की, जहां फूल की खेती करने वाले कुछ किसान रहते हैं। माली समाज या फूल के व्यापार से जुड़े लोगों पर लॉकडाउन का प्रभाव देखने के लिए हमने उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों की दो सौ किलोमीटर लंबी यात्रा की। जहां हम नहीं पहुंच पाए वहां हमने फोन से बात की।

देवेंद्र कुमार माली, खरमुजुही

सुल्तानपुर के ही राजू माली बताते हैं कि इस बार लगन का जितना बयाना मिला था, सब वापस हो गया। लगभग 15 बयाना कैंसिल कर दिया गया। एक लगन में कितनी कमाई हो जाती है? पूछने पर पास बैठे देवेंद्र माली रुकने को बोलते हैं और घर से एक एलबम मंगाते हैं। एलबम दिखाते हुए शादी-विवाह में दूल्हा गाड़ी, सेज और जयमाल स्टेज सजाने की कीमत बताने लगते हैं। देवेंद्र माली कहते हैं कि एक सामान्य दूल्हा गाड़ी सजाने का भी हमें पांच हजार मिल ही जाता है।

“बहुत अच्छी सजावट हम बीस हजार तक करते हैं, लेकिन इस बंदी में नवरात्र से ही कोरोना फैलने की डर से लोग घर पर भी फूल लेने से मना कर दिए।”

इसी जिले के जाटूपुर गांव की किसान शकुंतला माली (43) ने डेढ़ बीघा में गेंदे के फूल की फसल पैदा की है। शकुंतला के परिवार में दस सदस्य हैं। पति लम्भुआ बाजार में चाय की दुकान लगाते हैं और शकुंतला बच्चों के साथ फूल की खेती करती हैं। लॉकडाउन की वजह से शकुंतला का पूरा परिवार घर पर बैठा और खेत में खिले गेंदे के फूल सूख रहे हैं।

शकुंतला उदास मन से खेत की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, “जिस खेत में हम हमेशा फूलों की सेवा करते थे अब उधर देखने का भी मन नहीं होता। डेढ़ बीघा फूल पैदा करने में कम से कम बीस हजार रुपये लगे हैं, मेहनत छोड़कर, लेकिन अब तो सब बर्बाद हो गया।”

शकुंतला माली का पुत्र रंजीत, जाटूपुर गांव

लगन के सीज़न में मातम

फूल की आवश्यकता लोगों को साल भर पड़ती है। इसलिए फूलों की खेती साल में तीन शिफ्ट में होती है। शिफ्ट में फसल उगाने के पीछे कई कारण है, जिसमें मौसम, त्योहारों और लगन का ध्यान रखा जाता है जिसमें हिन्दू रीति रिवाजों के तहत शादी विवाह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। पहली शिफ्ट में जनवरी में फूल की रोपाई की जाती है और जून-जुलाई तक फूल बाजार में जाने लगता है। दूसरी शिफ्ट में जून में फूल की रोपाई की जाती है और सितंबर से दिसम्बर तक फूल बाजार में जाने लगता है। तीसरे शिफ्ट में दिसम्बर में फूल की रोपाई की जाती है और उसका फूल मार्च से मई तक बाजार में जाने लगता है।

शिफ्ट में की जाने वाली फूलों की खेती के पीछे का कारण लगभग पैंतालीस साल से हिन्दू कर्मकांड से शादी-विवाह करा रहे जगदीश मिश्रा की बातों से समझा जा सकता है। मिश्रा बताते हैं कि साल भर शादी-विवाह नहीं होता। उसके लिए पंचांग में कुछ महीने तय हैं। अप्रैल, मई और जून में लगन तेज रहता है। जुलाई में भी लगन रहता है, लेकिन बहुत कम। उसके बाद नवम्बर-दिसम्बर में लगन रहता है।

मोतीलाल माली (60), खरमुजुही

जगदीश मिश्रा के हिसाब से यह शादी विवाह का सीज़न है। लिहाजा फूल उपजाने वाले किसानों के लिए अपनी फसल बाज़ार में लाने का भी सीज़न है लेकिन लॉकडाउन की वजह से अप्रैल से जून के बीच होने वाली शादियां टाल दी गयी हैं।

कुछ जगहों पर सरकारी अनुमति लेकर जहां शादियां हो भी रहीं हैं, वहां लोग सिंथेटिक या कागज़ के फूलों का इस्तेमाल कर रहे हैं। कहीं से भी फूलों की मांग नहीं आ रही है। आजकल नेताओं की रैलियां, सम्मेलन, स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों में गोष्ठियां भी ऑफलाइन से ऑनलाइन स्वरूप ग्रहण कर चुकी हैं। नतीजतन, फूलों की खेती से जुड़े किसान एक महीने से अधिक समय से खेत से फूलों को लाना बंद कर चुके हैं। अब वे फूल लगे खेतों को जोतने को मजबूर हैं।

इलाहाबाद के झूँसी क्षेत्र के रहने सुनील माली कहते हैं कि गंगा-यमुना के संगम क्षेत्र में फूलों की बड़ी मात्रा में खपत होती थी, लेकिन इन दिनों पर्यटकों, श्रद्धालुओं की आमद मुश्किल से हो रही है इसलिए फूल दिन भर रखे-रखे सूख जा रहे हैं और उनका दाम नहीं मिल पा रहा है। वे कहते हैं, “घर में छह लोग खाने वाले हैं, इस समय घर चलाना बहुत कठिन होता जा रहा।” 

बनारस के बैरवन मे गेंदे की खेती

वाराणसी, बैरवन क्षेत्र के किसान अनिकेश पटेल बातचीत की शुरुआत में ही कहते हैं, “हमारा बचा ही क्या है? सब बर्बाद हो गया। गेंदा का फूल पांच बिस्वा आज जुता दिया। नर्सरी में जो पौधे हैं लॉकडाउन की वजह से ज्यादा बड़े हो जा रहे हैं, अब उसे फेंक देना पड़ेगा। कम से कम दो लाख का नुकसान हुआ है। मेहनत जो हुई है उसकी कोई बात ही नहीं।”

अनिकेश कहते हैं यह तो अभी का नुकसान है आने वाले कल में भी बाजार में फूल की कमी होगी क्योंकि लॉकडाउन की वजह से किसान रोपाई नहीं कर पा रहे हैं।

न मुआवजा, न बीमा

गेंदे की सूख चुकी फसल

उत्तर प्रदेश सरकार के उद्यान और प्रसंस्करण विभाग के पोर्टल पर लिखा है कि प्रदेश की लगभग 92 फीसद छोटी जोत के किसानों के लिए बागवानी फसलें आय, रोजगार एवं पोषण उपलब्ध कराने में सक्षम हैं। हकीकत यह है कि लॉकडाउन में बड़े स्तर पर फूल की बर्बाद हुई फसलों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से अभी तक किसी अनुदान या हर्जाने का ऐलान नहीं किया गया है। दूसरी ओर, इन फसलों की किसान बीमा भी नहीं करवाते कि नुकसान से बच जाते।

अंग्रेजी से बीए की पढ़ाई कर चुके राजाउमरी गांव के किसान विकास माली हमें बताते हैं कि फूल उगाने वाले किसान तीन महीने की खेती का कोई बीमा नहीं कराते। इसके पीछे भी तीन शिफ्ट में खेती करने का चलन ही जिम्मेदार है। आने वाले महीने में फूल की रोपाई करने का सीज़न है लेकिन लॉकडाउन की वजह से आवागमन बिल्कुल ठप है।

इलाहाबाद, सुल्तानपुर, फैज़ाबाद और वाराणसी के किसान वाराणसी के उन गांवों में नहीं पहुंच पा रहे हैं जहां कलकत्ता से फूल की बेरन मंगाई जाती है और फूल की नर्सरी लगाई जाती है। इसलिए किसान आने वाले समय के लिए फूल की रोपाई भी नहीं कर पा रहे हैं।

सुल्तानपुर के जिला उद्यान अधिकारी रणविजय सिंह मानते हैं कि फूल से जुड़े किसानों के सामने समस्या है। इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एडवाइजरी जारी कर दी है कि किसान अपने फूलों को सुखाएं, बाद में अगरबत्ती और गुलाल बनाने वाली कम्पनियों को दे दें। रणविजय सिंह कहते हैं जहां तक रही मुआवजे और अनुदान की बात, तो सरकार इस पर विचार कर रही है।

वाराणसी के जिला उद्यान अधिकारी बताते हैं कि अभी किसानों का प्रारंभिक सर्वे हुआ है। “हमारे पास चार सौ किसानों का डाटा है। हमारे जिले में लगभग पांच सौ हेक्टेयर फूल की खेती होती है। बाकी लॉकडाउन के बाद सर्वे होगा। हमारे इंस्पेक्टर गांव-गांव तक जाएंगे। वर्तमान स्थिति के बारे में हमने लखनऊ सूचित कर दिया है।”


गौरव गुलमोहर इलाहाबाद स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं


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5 Comments on “UP: लॉकडाउन ने तोड़ दी फूल उत्पादन की समूची आपूर्ति श्रृंखला और किसानों की कमर”

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