देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू शिक्षण संस्थानों को आधुनिक भारत का मंदिर और मस्जिद कहा करते थे, लेकिन ये हमारा दुर्भाग्य है कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है ऐसे समय में शिक्षण संस्थानों की भूमिका भी बदल गयी है और नयी पौध को देश का गौरवशाली इतिहास तोड़-मरोड़ कर एक एजेंडे के तहत पढ़ाया जा रहा है।
तरना स्थित नवसाधना कला केंद्र में ‘भारत की परिकल्पना और नेहरू’ विषयक ‘प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण’ कार्यक्रम के प्रथम दिवस नेहरू जी की पुण्यतिथि पर आयोजित संगोष्ठी में उक्त विचार व्यक्त किये गये।
इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट, सेंटर फार हार्मोनी एंड पीस एवं राइज एंड एक्ट के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में प्रो. दीपक मलिक ने कहा कि साल 1952 में फूलपुर लोकसभा चुनाव के दौरान ही नेहरू ने कहा था कि तानाशाही बहुसंख्यकवाद के जरिये आएगी। आज देश न सिर्फ़ वह दौर देख रहा बल्कि महसूस भी कर रहा है। आजादी के बाद नेहरू ने खुश्क जमीन पर आधुनिक भारत के निर्माण का नींव रखा था। वह स्वपनदर्शी थे। उन्हें बटवारे के बाद जिस तरह का भारत मिला था। उस दौर में साम्प्रदायिकता और जातिवाद चरम पर था। ऐसी दशा में सरकारी संस्थाओं का निर्माण करते हुए उन्होंने किस तरह इन चुनौतियों का सामना किया, इसे जानने के लिए हमें नेहरू पर लिखी पुस्तकों को पढ़ना चाहिए।
आईआईटी बीएचयू के प्रो.आर.के. मंडल ने कहा कि नेहरू महात्मा गांधी की तरह ही धर्म को राजनीति से जोड़ने के विरोधी थे। वह इसे सबसे बड़ा अपराध मानते थे। आज दौर उलट गया है। जब हम नेहरू को पढ़ते हैं तो पता चलता कि वह किन कारणों से देश के नायक थे और वह कौन से कारण है जिसके चलते आज उन्हें एक एजेंडे के तहत खलनायक बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
पत्रकार एके लारी ने कहा कि नेहरू की वैचारिकी को खत्म करने का काम कांग्रेस ने ही शुरू किया। वह नेहरू की वैचारिकी से दूर होते गये। जब तक कांग्रेस नेहरू की रीत-नीति को नहीं अपनाएगी तब तक उसका समाज के विभिन्न तबकों से मेलजोल मुमकिन नहीं है।
कार्यक्रम के आयोजक डॉ. मुहम्मद आरिफ ने विषय स्थापना करते हुए कहा कि नेहरू बेहद संजीदा इंसान थे। वह न सिर्फ आधुनिक भारत के निर्माता थे बल्कि वह जनता से बेहद प्यार करते थे। उस दौर की सरकारों में बनी नीतियां इस बात की परिचायक हैं। आज के दौर में हमें इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि वह कौन से कारण थे जो आज की मौजूदा सत्ता को परेशान करते है और वह लगातार इस बात का प्रयास कर रही है कि नेहरू की विचार और पहचान को ही खत्म कर दिया जाए।
जरूरत इस बात की है कि हम नेहरू की लिखी और उन पर लिखी गयी किताबों को पढ़ें। सत्य और तथ्य के आधार पर ऐसे लोगों को जवाब दें जो उनकी छवि को दागदार बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
संगोष्ठी में डॉ. राजेन्द्र फुले,अजय शर्मा,राम जनम,अयोध्या प्रसाद,दौलत राम सहित देश के विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधियों ने विभिन्न विषयों पर भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में वानु परवा, पुष्पा, अंकेश, विकास, युद्धेष बेमिसाल, मनोज कुमार, संजय सिंह, रामकिशोर, मोहम्मद असलम, अर्शिया खान, हरिश्चंद्र, रबीउल हक़, शमा, प्रबीन्द्र राय सहित तमाम प्रतिभागी मौजूद रहे। संचालन डॉ राजेन्द्र फुले और संजय सिंह ने किया।
(डॉ. मोहम्मद आरिफ द्वारा जारी)