12 जनवरी 1998 का दिन किसानों की स्मृति पर अमिट छाप छोड़ गया क्योंकि इस दिन मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने अतिवृष्टि से फसल नष्ट हो जाने के कारण मुआवजा और फसल बीमा की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे अहिंसक किसानों पर बर्बर गोलीचालन किया था जिसमें 24 किसान शहीद हुए और 150 किसानों को गोली लगी थी। 250 किसानों पर 67 फ़र्ज़ी मुकदमे दर्ज किए गए थे।
ऐसा नहीं है कि मुलताई का गोलीचालन पहला या आखिरी गोलीचालन था परंतु सुनियोजित षड्यंत्र कर किसानों के नरसंहार की यह अभूतपूर्व जघन्य घटना थी। मुलताई गोलीकांड की खास बात यह है कि 12 जनवरी को गोली चालन कराने का षड्यंत्र करने वालों को सजा नहीं हुई, तीन मुकदमों में मेरे साथ-साथ तीन अन्य आंदोलनकारियों को आजीवन कारावास की सजा हुई। नेतृत्व करने के कारण मुझे 54 वर्ष की सजा सुनाई गई।
मुलताई किसान आंदोलन राज्य की हिंसा और आंदोलनकारियों को सजा दोनों को भुगत रहा है जिसका मकसद आंदोलन को कुचलना था। लंबे समय तक पुलिस प्रताड़ना चलती रही। मुझे याद है पूर्व सांसद सुरेंद्र मोहन जी के साथ जब मैं ऐनस किसान महापंचायत में पहुंचा था, तब पूरे गांव में हर घर के सामने पुलिस तैनात थी तथा सड़क से तीन किलोमीटर तक पैदल चलकर आने वाले किसानों को पुलिस पीटकर जेल में बंद कर रही थी। मुझे यह भी याद है जब आष्टा में महापंचायत हुई थी तब सरकारी जमीन पर भी महापंचायत नहीं करने दी गई थी तथा स्वामी अग्निवेश जी को खेत में महापंचायत करनी पड़ी थी। मुझे यह भी याद है जब बाबा महेंद्र सिंह टिकैट परमंडल गांव आए थे तब उन्होंने मंच से कहा था कि इतनी पुलिस मैंने जीवन में कभी नहीं देखी थी। मुझे यह भी याद है कि एक महापंचायत को संबोधित करने पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जी एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव जी पहुंचे थे तब कांग्रेसियों ने उन्हें काले झंडे दिखाए थे तथा उनके वाहन को सड़क पर चलने नहीं दिया था। तब शरद यादव जी ने अपने अंदाज में दो-दो हाथ करने की चेतावनी तक दे डाली थी। ऐसे ही एक बार 12 जनवरी के कार्यक्रम में जैन मुनि विनय सागर आए थे जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में पहुंचा दिया था।
एक बार कांग्रेस की सरकार बदलने के बाद जब 12 जनवरी आई तब तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती जी ने विधानसभा में शहीद स्तंभ के निर्माण तथा शहीद परिवारों को नौकरी के संबंध में पूछे जाने पर मुलताई गोलीचालन को देश के इतिहास में काला धब्बा बतलाते हुए मुकदमे वापस लेने का आश्वासन दिया था। आश्वासन पूरा कर पाती उसके पहले भाजपा ने उन्हें हटा दिया तथा बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बना दिया। जब उन्हें मैं शहीद स्तंभ निर्माण कराने का ज्ञापन देने के लिए वल्लभ भवन, भोपाल में मिला। उन्होंने मुझे गिरफ्तार करवा दिया। तब मैं 7 दिन सिवनी मालवा की जेल में रहा जबकि बाबूलाल गौर ने हमारे साथ विपक्ष में रहते हुए कई आंदोलन किये थे।
24 किसानों का शहीद स्तंभ मुलतापी में आज तक नहीं बन सका है। गोलीचालन के बाद सरकार द्वारा किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए रातोंरात मुलताई बस स्टैंड पर किसान स्तम्भ बनाया लेकिन शहीद स्तंभ के लिए आज तक सरकार ने भूमि आवंटित नहीं की गई। मैंने कई बार विधानसभा में इस संबंध में सवाल उठाया जवाब मिला कि बस स्टैंड के सामने का स्थान छोटे झाड़ का जंगल है इसलिए शहीद किसानों के स्तंभ के लिए भूमि आवंटित नहीं किया जा सकती जबकि किसान स्तंभ आज भी वहां खड़ा है। टाइल गिर रही हैं, अब वह स्थान किसान संघर्ष समिति के संस्थापक सदस्यों में से एक ग्राम परमंडल के रामदयाल चौरे के शहीद जवान बेटे मनोज चौरे के नाम पर आवंटित कर दी गई है।
यही कारण है कि पिछले 24 वर्षों से किसान संघर्ष समिति शहीद किसान स्तंभ का शिलालेख किसान स्तंभ पर ले जाकर श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित करती है, आयोजन समाप्त होने के बाद शिलालेख वापस किसान संघर्ष समिति कार्यालय में लाया जाता है।
मुलताई किसान आंदोलन से किसानों ने तमाम सकारात्मक परिणाम निकाले थे। 1998 के पहले मध्य प्रदेश में अनावरी तय करने की इकाई तहसील थी जिसके कारण मुलताई में मुआवजा नहीं दिया जा रहा था लेकिन आंदोलन के बाद सरकारों को इकाई बदलकर पटवारी हल्का करनी पड़ी जिसके चलते राजस्व का मुआवजा पहले की तुलना में कहीं अधिक किसानों को मिलने लगा।
मुलताई किसान आंदोलन की बड़ी उपलब्धि फसल बीमा का भुगतान के तौर पर सामने आयी। फसल बीमा का प्रीमियम देशभर में किसानों से 1985 से काटा जा रहा था परंतु पहली बार फसल बीमा का भुगतान बैतूल जिले में 1998 में हुआ। तब से लेकर आज तक फसल बीमा का मुद्दा सभी सरकारों के लिए अहम मुद्दा बना हुआ है, हालांकि जिस तरह से फसल बीमा योजना चलाई जा रही है उससे बीमा कंपनियां लाखों करोड़ रुपये कमाकर मालामाल हो गई है परंतु पहले की तुलना में किसानों को अधिक फसल बीमा देने के लिए बीमा कंपनियां आज मजबूर हो गई है। किसान संघर्ष समिति आजकल सन 2020 का सोयाबीन की फसल का मुआबजा देने के लिए आंदोलन चला रही है।
कल ही एसडीएम और जिलाधीश के माध्यम से ज्ञापन सौंपा गया है।
मुलताई के किसान आंदोलन के परिणामस्वरूप सरकार को इल्ली प्रकोप तथा गेरुआ रोग को राजस्व आचार संहिता में शामिल करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिसके चलते किसानों को पहले से अधिक मुआवजा मिल रहा है। मुलताई किसान आंदोलन के किसानों के चक्रवर्ती ब्याज की लड़ाई 15 वर्ष पहले लड़नी शुरू की थी। चक्रवर्ती ब्याज खत्म कर बिना ब्याज के किसानों को ऋण देने हेतु संघर्ष शुरू किया था। आज तमाम राज्यों में कम से कम 50,000 रूपये का अल्पकालीन ऋण बिना ब्याज पर किसानों को दिया जाने लगा है। किसान संघर्ष समिति में एक नहीं दो बार किसानों की कर्जा माफी कराई है। इसी तरह बिजली बिल माफ कराने में भी मध्यप्रदेश में किसान संघर्ष समिति सफल हुई है। मुलताई में किसान संघर्ष समिति ने टेस्ट रिपोर्ट का बढ़ाकर लिया जाने वाला पैसा आंदोलन कर किसानों को वापस कराया है।
फिलहाल 100 गांव में 1 जनवरी 2022 से 12 जनवरी 2020 तक किसान संघर्ष समिति द्वारा एमएसपी की कानूनी गारंटी दो यात्रा निकाली जा रही है। समिति ने मध्य प्रदेश में एमएसपी की कानूनी गारंटी दो यात्रा करने का ऐलान किया है। किसान संघर्ष समिति ने देश में किसानों की एकजुटता बनाने और बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष के तौर पर मुझे लगता है कि मुलताई के किसानों के द्वारा शुरू किया गया आंदोलन का विस्तार आज पूरे देश में हो चुका है तथा किसानों की एकजुटता 12 जनवरी 1998 की तुलना में बहुत मजबूत हुई है। मैंने मुलताई किसान आंदोलन के बारे में इसलिए यह लेख लिखा ताकि पाठक यह समझ सकें कि संयुक्त किसान मोर्चा की ताकत किसान संघर्ष समिति जैसे 550 किसान संगठनों की एकजुटता से बनी है। यही कारण है कि मोदी की महाबली सरकार को तीन कानून रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।