किसानों को दिल्ली की सीमा पर बैठे एक साल हो रहा है। इस एक साल में बहुत कुछ बदला, सिवाय किसानों की मांग के। वे कह रहे हैं कि भई नहीं चाहिए हमें कोई नया कानून! मत बनाओ नया कानून हमें किसान से मजदूर बना देगा…! इनके सुर दिग्गजों के कानों में पड़ते इसके पहले सरकार ने मजदूरों के लिए भी नया कानून लाने की तैयारी कर ली। ये कानून है उद्योग की नई पौध तैयार कर रहे हरियाणा राज्य के लिए। यहां भी मजदूर यही कह रहे हैं, कि भई नहीं चाहिए कोई नया कानून! मजदूर से हमें बंधुआ मजदूर मत बनाओ? पूर्ण बहुमत का इतना गुबार सरकार के सर पर चढ़ा है कि वो ना किसानों की सुन रही ना ही मजदूरों की।
हरियाणा श्रम मसौदा 2021 जो कायदे से अक्टूबर 2021 में लागू होना चाहिए था पर कुछ माह रुक कर उसे पूरे राज्य में लागू कर दिया जाएगा। सरकार ने मसौदा पेश करते हुए कहा कि इससे मजदूरों के हितों की रक्षा होगी, वे ज्यादा कमाई कर सकेंगे, उनका रोजगार सुरक्षित होगा। कुल मिलाकर वही झुनझुने बजाए जा रहे हैं जो कृषि कानून लाते समय बजाए गए थे। दिक्कत ये है कि जब से मसौदे की बारीकियां श्रमिकों के कानों में पड़नी शुरू हुई हैं तब से बस विरोध हो रहा है।
किसानों और खेतिहर मजदूरों की खुदकुशी: पंजाब की जमीनी हकीकत बनाम सरकारी आँकड़े
मोबाइलवाणी के साझा मंच पर बीते एक माह में 80 से ज्यादा श्रमिकों ने अपनी बात रिकॉर्ड की है। ये बातें यहां इसलिए भी रिकॉर्ड हो रही हैं क्योंकि सरकार उनकी बातों को सुनना नहीं चाहती। श्रमिक एक सुर में बस यही कह रहे हैं कि उन्हें रोजगार चाहिए, समान वेतन चाहिए, रोजगार की गारंटी चाहिए बस. पर हो क्या रहा है…? उन्हीं से जानिए।
बिना राय के बना देते हैं कानून
हरियाणा उद्योग विहार में काम कर रहे मुकेश कहते हैं कि राज्य सरकार ने हरियाणा श्रम मसौदे 2021 को मजदूरों के हित में बताया है पर क्या कभी ये जानने की कोशिश की कि आखिर मजदूर चाहते क्या हैं? उद्योग विहार के सारे मजदूर इस नये कानून का विरोध कर रहे हैं। इसका कारण ये है कि उन्हें नये-नये कानून नहीं बल्कि इस बात की गारंटी चाहिए कि उनके अधिकार सुरक्षित रहेंगे। उन्हें समान वेतन, समान काम मिलेगा पर ये कानून केवल कंपनी मालिकों को फायदा पहुंचा रहे हैं। जो मजदूर इन कानूनों के बारे में नहीं जानते उनके साथ तो बस शोषण हो रहा है। मुकेश कहते हैं कि सरकार को कोई भी नया कानून बनाने से पहले कम से कम उन लोगों से तो राय लेना चाहिए जिनके लिए उसे बनाया जा रहा है।
बात 100 फीसदी यही है। अधिकांश मजदूर यही कह रहे हैं कि हमने काम और वेतन मांगा, अपने अधिकार मांगे, कानून तो मांगा ही नहीं, जो बना दिया गया। और कानून बना भी तो कैसा? हरियाणा श्रम मसौदे 2021 की जो प्रमुख खामियां हैं उनमें से एक है काम के घंटों में बढ़ोतरी। अगर काम के दौरान मशीन में खराबी आ जाए, टूट-फूट हो जाए तो इसके लिए मजदूर जवाबदार है। यानि मशीन खराब हुई मजदूर की गलती से इसलिए उसका वेतन काटा जा सकता है वह भी उसकी कुल आय का 50 प्रतिशत तक।
फिर जो तीसरी बात अखर रही है वो है रोजगार का अस्थायी कर दिया जाना। काम चाहे किसी भी प्रवृत्ति का हो, काम स्थायी है या अस्थायी है लेकिन रोजगार अस्थायी हो सकता है यानि कंपनी प्रबंधन कभी भी श्रमिकों को काम से बाहर कर सकता है। अब ऐसे में विरोध होना जायज है क्योंकि इनमें एक भी ऐसी बात नहीं जो मजदूरों के हितों की रक्षा करे।
मानेसर से एक श्रमिक बताते हैं कि श्रम कानून पहले से ही बना हुआ है पर वह आज तक सही से लागू नहीं हुआ। फैक्ट्री के अंदर मजदूरों की क्या स्थिति है, ये हमसे ज्यादा कौन जानेगा? ना तो ओवरटाइम मिलता है ना आराम का घंटा। कैंटीन बनायी है पर वहां ढंग का खाना तक नहीं है। वेतन से हर माह किसी ना किसी बहाने पैसे काट लिए जाते हैं। कोरोना का बहाना कर के दो साल से ना तो वेतन में इजाफा किया ना बोनस दिया। सरकार कानून पर कानून बनाए जा रही है पर उससे हमारी स्थितियों में कोई सुधार नहीं हो रहा है।
कोरोना के बाद से बदल गए हैं हालात
कोविड काल के दौरान मजदूरों के पलायन को हर किसी ने देखा। हरियाणा वही राज्य था जहां के औद्योगिक क्षेत्रों से सबसे ज्यादा मजदूरों ने पलायन किया। इसके बाद जब लॉकडाउन खुला तो इसी राज्य में सबसे ज्यादा मजदूरों की मांग उठी। कंपनी के प्रबंधकों और कांट्रेक्टरों ने ट्रेन, लक्जरी बसों से लेकर प्लेन तक के टिकट मजदूरों के घर भिजवाए और उन्हें वापिस बुला लिया। काम की जरूरत थी इसलिए मजदूर भी यहां चले गए पर उसके बाद से हालात बदले हुए हैं। मजदूरों का कहना है कि कोविड के बाद से कंपनी प्रबंधन लगातार उनसे अतिरिक्त काम करवा रहा है। साप्ताहिक अवकाश देना तक बंद कर दिया गया है। महिलाओं के साथ तो स्थितियां और भी खराब हैं। अगर उनके साथ बच्चे हैं तो वे उसे समय तक नहीं दे पा रही हैं। गर्भवती श्रमिक महिलाएं 15 मिनट आराम तक नहीं कर सकती।
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हरियाणा के बहादुरगढ़ के औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले विनोद कुमार कहते हैं कि सरकार नया कानून लागू करने वाली है, लेकिन इस कानून के बारे में हर मजदूर को खबर ही नहीं है। कुछ बातें सामने आयी हैं, जिससे तो यही लग रहा है कि जैसे किसानों के साथ छल हुआ है वैसे ही मजदूरों के साथ भी होगा। कंपनियों में पहले ही श्रमिकों की स्थिति बहुत खराब है। ना समय पर वेतन मिलता है ना बोनस। सरकार कहती है कि एक घंटे का आराम दिया जाए पर कंपनी वाले उसमें भी काम करवाते हैं। अगर कोई मजदूर घंटे भर आराम कर ले तो उससे दो घंटे ज्यादा काम करवा लिया जाता है और इसके बदले भी पैसे नहीं मिलते।
महिलाओं के साथ स्थितियां ज्यादा खराब है। बच्चों की तबियत खराब हो या खुद की, कंपनी में काम करना बंद नहीं कर सकते। सप्ताह में अवकाश तक नहीं दिया जाता। लोगों को बाहर लगता है कि कंपनी बंद है पर शटर बंद करके भी काम चलता रहता है। सरकार को अगर कानून बनाना ही था तो कम से कम इन दिक्कतों को सुलझाने वाला कानून बनाती पर मौजूदा मसौदा तो कंपनियों को ज्यादा मुनाफा कमाने की पैरवी करता मालूम पड़ता है।
दिल्ली सेन्ट्रल ट्रेड यूनियन के जनरल सेकेट्ररी अनुराग कुमार कहते हैं कि हरियाणा श्रम मसौदे का विरोध एनसीआर के सभी मजदूर कर रहे हैं पर सरकार इसे जबरन लागू करने की तैयारी कर रही है। सबसे मुख्य समस्या ये है कि इस कानून के अंतर्गत यदि काम के दौरान किसी मजदूर से मशीन खराब हो जाती है तो उसकी भरपाई खुद मजदूर को करनी होगी। असल में ये तो पहले से ही मजदूरों के साथ होता आया है। कंपनी प्रबंधन मशीन खराब होने का जवाबदार हमेशा मजदूरों को ठहराते हैं, अब इस पर कानून बन गया है तो ये चीज और ज्यादा होगी। इस तरह का कानून पहले भी लागू किया जा चुका है, जिसे मॉडल स्टैंडिंग ऑर्डर कहा जाता है। विरोध तब भी किया गया था, विरोध अब भी हो रहा है। अदालत ने श्रमिकों का न्यूनतम वेतन केवल 16 हजार रुपए रखा है जबकि संगठन मांग कर रहे हैं कि यह कम से कम 26 हजार रुपए प्रतिमाह होना चाहिए।
हाल ही में दिल्ली सरकार ने मजदूरों के न्यूनतम मजदूरी में महंगाई भत्ता में बढ़ोतरी करने से दिल्ली में श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी में इजाफा हुआ है। यह बढ़ोतरी बीते एक अक्तूबर से लागू होगी। अब अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी 15 हजार 908 रुपये से बढ़कर 16 हजार 64 रुपये हो जाएगी। वहीं अर्धकुशल श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी 17 हजार 537 रुपये से बढ़कर 17 हजार 693 रुपये हो जाएगी। आपको जानकर हैरानी होगी की यही दिल्ली सरकार ने अपने विधायकों के वेतन में महंगाई भत्ते के तौर पर 36000 रूपये का इजाफा किया है।
संगठनों का विरोध, मजदूरों की मांग
इस कानून से इतर मजूदर मांग कर रहे हैं कि उनका न्यूनतम वेतन वर्तमान के न्यूनतम वेतन से दोगुना किया जाए। इसके साथ ही पीएफ संबंधी दिक्कतों को दूर करने के लिए हेल्प डेक्स बनायी जाएं, जहां सरकारी पचड़े कम हों और मजदूरों की सीधी सुनवाई हो सके। जहां महिला मजदूर काम कर रही हैं वहां उनके खिलाफ हो रहे शोषण को रोकने के लिए विशाखा कमेटी का गठन हो। गर्भवती महिलाओं को आराम का समय दिया जाए। माहवारी के समय महिला श्रमिकों को दो दिन का वेतन अवकाश मिले। मजदूरों को आराम के लिए वक्त दिया जाए और उसके बदले अतिरिक्त काम ना करवाया जाए। ओवरटाइम सिंगल नहीं बल्कि डबल पेड होना चाहिए। त्यौहार पर मिलने वाले शासकीय अवकाश और साप्ताहिक अवकाश दिए जाने चाहिए।
अगर नये कानून में इनका जिक्र होता तो उम्मीद की जा सकती थी कि मजदूर स्वीकार करते पर अभी तो ऐसा होता नहीं दिख रहा। सेंट्रल ट्रेड यूनियन के महामंत्री जय भगवान कहते हैं कि जब से इस कानून के बनने की चर्चा हो रही है, तभी से संगठन विरोध जता रहे हैं। जब पहले से केन्द्र का श्रम कानून लागू है तो फिर राज्य सरकार को नये कानून की जरूरत ही नहीं थी पर फिर भी ऐसा हो रहा है। ये कानून बस इसलिए बनाया गया है ताकि और नये उद्योग स्थापित किये जा सके। इसमें मजदूरों का हित कहीं नहीं है। मजदूरों के नाम पर कानून का केवल प्रचार हो रहा है। कमाल की बात ये है कि ज्यादातर मजदूरों को ये पता ही नहीं है कि आखिर कानून में है क्या?
झज्जर ज़िला के बहादुरगढ़ की एक फैक्ट्री में बतौर सिक्योरिटी गार्ड काम करने वाले रविकांत गौतम बताते हैं कि काम नहीं कर पा रहा था इसलिए मैंने कंपनी में एक माह का नोटिस दिया और नोटिस समय सीमा पूरी होने पर रिजाइन कर दिया। अब कायदे से कंपनी को मेरा बकाया वेतन दे देना था पर ऐसा नहीं हुआ। मैं कई बार कंपनी के चक्कर लगा चुका हूं लेकिन कोई सुनवाई नहीं। अब सुन रहे हैं कि राज्य सरकार नया श्रम कानून ला रही है पर उसमें तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि हम जैसे लोगों की समस्या का हल हो सके।
बुरे हो सकते हैं असर
मसौदा नियमों में कहा गया है:
किसी भी श्रमिक को एक सप्ताह में 48 घंटे से अधिक समय तक किसी प्रतिष्ठान में काम करने की आवश्यकता नहीं होगी और न ही ऐसा करने की अनुमति दी जाएगी। काम के घंटे को इस तरीके से व्यवस्थित करना होगा कि बीच में आराम के लिए इंटरवल के समय समेत किसी भी दिन कार्य के घंटे 12 से अधिक नहीं होने चाहिए।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकतम कार्यदिवस को बढ़ाने से कामगारों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। एक्सएलआरआई (जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट) के प्रोफेसर केआर श्याम सुंदर ने कहा, ‘फैक्टरीज एक्ट, 1948 में अधिकतम कार्यदिवस को 10.5 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने से कामगारों पर कुछ विपरित प्रभाव पड़ सकता है। अधिकतम कार्यदिवस को 12 घंटे किए जाने से नियोक्ता पूरी अवधि के लिए श्रमिकों को काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित होंगे, हालांकि किसी को भी नहीं पता है कि कर्मचारी बाकी के अतिरिक्त 90 मिनट (डेढ़ घंटे: कार्यसमय बढ़ाए जाने की अवधि) में क्या करेंगे?’’
उन्होंने कहा, ‘अगर नियोक्ता कर्मचारियों को पूरे 12 घंटे काम पर रखते हैं और अगर उसमें यात्रा का भी समय जोड़ लिया जाए जो कि मेट्रो शहरों में आसानी से एक घंटा होता है तो कर्मचारियों के कार्य संतुलन पर विपरित प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ ही अगर यह नियोक्ताओं को तीन पालियों के स्थान पर दो पालियों में काम करने के लिए प्रोत्साहित करेगा तो फिर रोजगार की संख्या में भी गिरावट हो सकती है.’
वहीं दूसरी ओर मसौदा नियमों में अंतरराज्यीय प्रवासियों के लिए यात्रा भत्ता का भी प्रावधान किया गया है, हालांकि यह भत्ता कर्मचारी को तभी मिलेगा जब कोई कर्मचारी निर्धारित 12 महीने के दौरान 180 घंटे से कम अवधि तक संबंधित संस्थान में काम नहीं करेगा। इस नियम से बड़ी संख्या में ऐसे प्रवासी मजदूर बाहर हो सकते हैं जो लंबे समय तक ठेके (कॉन्ट्रैक्ट) पर काम नहीं करते हैं।
हरियाणा सीआईटीयू ट्रेड यूनियन की अध्यक्ष सुरेखा कहती हैं कि सरकार ने चार श्रम कोड प्रस्तुत किए हैं। इसके पहले सरकार ने ये कानून बनाया था कि किसी भी काम की प्रवृत्ति में यदि काम पक्का है तो रोजगार भी पक्का होना चाहिए पर ऐसा हुआ नहीं। अब नये कानून में कहा जा रहा है कि काम चाहे किसी भी प्रवृत्ति का हो, काम स्थायी है या अस्थायी है लेकिन रोजगार अस्थायी हो सकता है। यानि कंपनी प्रबंधन कभी भी श्रमिकों को काम से बाहर कर सकता है। रोजगार की पक्की गारंटी खत्म होने के बाद अब श्रम कानून को हायर एंड फायर के तौर पर देखा जाना चाहिए। कोरोना का बहाना करके पहले ही श्रमिकों से अतिरिक्त काम करवाया जा रहा था, अब ओवरटाइम देने का प्रावधान ही खत्म कर दिया। मजदूर एक साथ आवाज न उठा पाएं इसलिए हड़ताल करने से पहले एक माह का नोटिस देने का नियम बना दिया है। ये सब तो श्रमिकों के खिलाफ ही हुआ ना? सरकार इस कानून का ठीक से प्रचार तक नहीं कर पा रही है, वजह यही है कि कानून में ऐसा कुछ नहीं जिससे मजदूरों का हित हो सके।
बहादुरगढ़ से सीटू के उपाध्यक्ष मुकेश कुमार कहते हैं कि श्रम कानून को बदल कर जो चार कोड बनाए गए इसमें कई श्रमिकों को दायरे से बाहर कर दिया गया है। काम के घंटों को बदल कर 10 से 12 घंटे के कर दिया है और इसके लिए उन्हें अतिरिक्त पैसा तक नहीं मिलेगा यानि कंपनी मालिक जो पहले से ही श्रमिकों से अतिरिक्त काम करवा कर उन्हें पैसा नहीं दे रहे थे अब उसे कानूनी कर दिया गया है। मशीन खराब हो तो भी गलती मजदूर की होगी। सोचिए ऐसे में कहां उसके हितों की रक्षा हो रही है? मजदूर अपने लिए काम, वेतन और कुछ देर का आराम मांग रहा है पर सरकार ने दिया क्या? नया कानून तो श्रमिकों ने मांगा ही नहीं था। इस कानून में उन सभी चीजों को कानूनी कर दिया गया है जो मजदूरों के अधिकारों का हनन करती हैं।
कुल मिलाकर मजदूरों के हाल बुरे हैं। उनकी आवाज वहां तक पहुंच ही नहीं रही, जहां सुनवाई हो सके। झज्जर ज़िला के बहादुरगढ़ से सूरज कुमार बताते हैं कि जो कानून बनाए जा रहे हैं वो बस दिखावे के हैं क्योंकि हमें तो कंपनियों में काम भी ज्यादा करवाया जाता है और उसका पैसा तक पूरा नहीं देते। इतना ही नहीं, अगर काम करते समय मशीन में कोई खराबी हो आए तो उसका ठीकरा भी हम मजदूरों के सिर पर फोड़ दिया जाता है। फिर मैनेजर हमारी तनख्वाह में से मशीन खराब करने के नाम पर पैसे काट लेते हैं। अब बताओ, कहां किससे शिकायत करें? कैसे साबित करे कि हमारी गलती नहीं है। नये मजदूरी मसौदे में यह बात लिखी है कि जन नियोक्ता वेतन में कटौती करता है तो उसे पास के लेबर दफ्तर में लिखित जानकारी देनी होगी, लेकिन हमने न तो ऐसा कभी देखा और न आगे होने जी उम्मीद कर पा रहे हैं।
दिल्ली के कापसहेड़ा से फैक्ट्री श्रमिक सतेन्द्र कुमार बताते हैं कि हर जगह मजदूरों से ओवरटाइम काम करवाया जाता है पर कुछ ही जगहों पर अतिरिक्त वेतन मिलता है। ये अतिरिक्त वेतन भी सिंगल रेट पर मिलता है जबकि नियम ये है कि ओवरटाइम डबल रेट मिलना चाहिए। अब तो नये कानून में काम के घंटे ही 12 कर दिए गए हैं, तो ओवरटाइम देने का नियम ही खत्म हो गया। लोगों के पास काम नहीं है, पैसे नहीं हैं, इतनी ज्यादा महंगाई है। कैसे खाएं हम और क्या खिलाएं अपने बच्चों को। 12—12 घंटे काम करने के बाद हमारे पास तो परिवार को देने के लिए समय तक नहीं है और अब तो पैसे भी नहीं होंगे। ज्यादा देर काम करने पर दुर्घटना की संख्या भी बढ़ गयी है, ऐसे में अब तो लगता है केवल जिन्दा रहना ही विकास मान लिया गया है, हम जिन्दा रहना चाहते हैं इसलिए काम कर रहे हैं, हमारे पास अब कोई चारा भी तो नहीं?
इस समय जरूरी है कि जल्दबाजी में कानून बनाने और उसे लागू करने से पहले सरकार एक बार विचार करे। उसे ऐसा बनाए ताकि श्रमिकों के हित न मारे जाएं। कम से कम जिन लोगों के नाम पर कानून का प्रचार किया जा रहा है उन्हें कुछ तो फायदा मिले वरना अगर इस मसौदे को जैसे के तैसा लागू कर दिया गया तो राज्य में उद्योगों की बगिया भले फूले पर श्रमिक कुचल दिए जाएंगे।