बाबासाहब के नाम पर स्मारक बना देने से दलितों की हालत सुधर जाएगी?


राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लखनऊ में 29 जून को भारत रत्न डॉ. अंबेडकर स्मारक एवं सांस्कृतिक केंद्र की आधारशिला रखी। यह स्मारक ऐशबाग ईदगाह के सामने 5493.52 वर्गमीटर नजूल भूमि पर बनेगा और इसमें डॉ. अंबेडकर की 25 फुट ऊंची प्रतिमा होगी। उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने 45.04 करोड़ की लागत वाले संस्कृतिक केंद्र के निर्माण के लिए राज्य के सांस्कृतिक विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया कि “भारत रत्न डॉ. भीमराव स्मारक एवं सांस्कृतिक केंद्र लखनऊ, युवाओं के बीच आदरणीय डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के आदर्शों को और लोकप्रिय बनाएगा”। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसे 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की तैयारी के रूप में देखा।

क्या यह स्मारक वाकई चुनाव से पहले दलितों को लुभाने का कोई चारा है या फिर भाजपा सरकार में दलितों की स्थिति सुधरी है? दलितों के खिलाफ होने वाले जुल्म तो कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।

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NCRB रिपोर्ट: सिर्फ साल बदला, दलितों की दयनीय स्थिति नहीं

राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2018 से 2019 के बीच दलितों (अनुसूचित जातियों) के खिलाफ अपराध में 7.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। देश भर में अनुसूचित जातियों के खिलाफ दर्ज मामलों में सबसे अधिक उत्‍तर प्रदेश में दर्ज किये गये थे। 2019 में यूपी में दलितों के खिलाफ 11,829 मामले दर्ज किये गये जो कि देश भर में दर्ज किये गये मामलों का 25.8 फीसदी हैं। दलित महिलाओं के साथ बलात्कार की संख्या के मामले में राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर आता है।

उत्तर प्रदेश में मायावती राज और दलित उत्पीड़न

सितंबर 2020 में हाथरस की दलित लड़की के साथ गैंगरेप की घटना ने यूपी तथा देश में दलित महिलाओं और लड़कियों पर होते जातिगत यौन उत्पीड़न की कठोर वास्तविकताओं को एक बार फिर से उजागर किया। यूपी में आये दिन दलित महिला या लड़की के साथ रेप की वारदात रिपोर्ट होती है।

हाथरस मामले में इतना ही वीभत्स रहा उत्तर प्रदेश पुलिस का पूरे मामले को हैंडल करने का तरीका। चाहे शुरुआत में कथित तौर पर एफआइआर दर्ज करने में देरी की बात हो, पीड़िता को पुलिस स्टेशन के बाहर इंतजार कराने की या बिना परिवार की सहमति के पीड़िता के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार करने की, जिसे कई लोगों ने सिर्फ ‘जलाने’ का नाम दिया।

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अभी हाल में आजमगढ़ के रौनापार थाना क्षेत्र के पलिया गांव में अनुसूचित जाति के लोगों के घर में तोड़फोड़ व महिलाओं से बदसलूकी का मामला प्रशासन की मानसिकता को उजागर करता है।

दलित परिवारों में मात्र 2.93% सरकारी नौकरी

2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति की कुल आबादी 4.13 करोड़ थी, जो उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 21 फीसदी है। दलितों की आर्थिक स्थिति का आकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में लगभग 42 फीसदी दलित परिवार भूमिहीन एवं शारीरिक श्रम करने वाले हैं। दलित परिवारों में से केवल 6 फीसदी ही नौकरीपेशा हैं, जिसमें 2.93 फीसदी सरकारी, 1.14 फीसदी गैर-सरकारी तथा 1.92 फीसदी निजी क्षेत्र में काम करते हैं। शेष 94 फीसदी मजदूरी या अन्य पेशों में हैं।

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सामाजिक-आर्थिक जनगणना 2011 के अनुसार उत्तर प्रदेश के 90 फीसदी दलित परिवारों की आय 3000 रुपये प्रतिमाह से कम है, परंतु लगातार शिक्षा के व्यावसायीकरण एवं निजीकरण तथा सरकारी शैक्षिक संस्थानों पर संगठित हमलों से गरीब दलित-पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए शिक्षित होना एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है।

डॉ. आंबेडकर हर समय आर्थिक सवालों पर मुखर रहे। उनका ज़ोर इस बात पर रहा कि दलितों का कल्याण आर्थिक रूप से कैसे किया जाय- चाहे वह सार्वजनिक शिक्षा का सवाल हो, सार्वजनिक उपक्रमों का सवाल और इनके निजीकरण का। दलित उत्पीड़न के रोज़मर्रा के सवाल, जिनसे आम दलित रोज ही परेशान रहता है, वह अब दलित आंदोलन के केंद्र में नहीं हैं।

2021 में भी दलितों को घोड़ी चढ़ने की इजाजत नहीं!

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यह हेडलाइन आज से 100 साल पहले की नहीं बल्कि जून 2021 की ही है। 18 जून को उत्तर प्रदेश के जिला महोबा के महोबकंठ थाना इलाके के माधोगंज गांव में एक दलित युवक की शादी होने वाली थी। घोड़ी चढ़ने की बात पर धमकी मिलने पर उसे पुलिस सुरक्षा की मांग करनी पड़ी।

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ऐसी खबरें सिर्फ उत्तर प्रदेश से नहीं बल्कि पूरे देश से आये दिन आती हैं। कभी एक आर्मी का जवान दलित होने के कारण घोड़ी नहीं चढ़ पाता है तो कभी किसी दलित को इसके लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा तक खटखटाना पड़ता है।

सवाल वही है- बाबा साहेब के नाम पर स्मारक बनाने के बजाय जिस दलित वर्ग के लिए उन्होंने संघर्ष किया, अगर उनकी भलाई हो, उनकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति सुधरे तो क्या बाबा साहेब का ज्यादा सम्मान नहीं होगा?


(उपरोक्त आलेख स्वतंत्र राजनैतिक विश्लेषक अभिमन्यु सिंह के इनपुट पर आधारित हैकवर तस्वीर आजमगढ़ के पलिया गाँव में ढहाए गए एक दलित के मकान की है।)


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