इस कहानी पर यकीन करना कठिन है, मगर यह सच्चाई ये है कि देश में कोरोना के गंभीर रोगियों को लेकर कथित तौर पर डीआरडीओ द्वारा निर्मित जिस दवा 2DG को भारत सरकार ने मंजूरी दी है वह दवा कोरोनिल के निर्माता और आयुर्वेद के नाम पर कई बार ठगी के आरोपों में घिरे बाबा रामदेव और उनके चेलों के रिसर्च की उपज है। रामदेव के चेले बालकृष्ण और पतंजलि के अन्य आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने मिलकर इस अंग्रेजी दवा का रिसर्च पेपर तैयार किया है, जिसका शीर्षक है: Glucose antimetabolite 2-Deoxy-D-Glucose and its derivative as promising candidates for tackling COVID-19: Insights derived from in silico docking and molecular simulations.
नीचे इस पर्चे को पढ़ा जा सकता है:
438392रिसर्च पेपर में इंसानी ट्रायल से इंकार
इस मामले में सर्वाधिक दुखद यह है कि डीआरडीओ से केवल राकेश शर्मा नाम के एक व्यक्ति ही इस रिसर्च प्रकिया का हिस्सा रहे, लेकिन किसी ट्रायल या स्टिम्युलेशन का काम उनकी निगरानी में नहीं हुआ। यह भी काबिलेगौर है कि राकेश शर्मा, जो डीआरडीओ छोड़ चुके हैं फिलहाल सविता इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस एन्ड टेक्निकल साइंसेज नामक निजी संस्थान में वाइस चांसलर हैं।
मार्च 2020 में प्रकाशित इस पेपर को पढ़ें तो साफ़ पता चलता है कि केवल सिलिको ट्रायल के आधार पर बिना उचित परीक्षणों के इस दवा को हरी झंडी दे दी गयी। रिसर्च पेपर बताता है कि उक्त दवा का केवल सिलिको ट्रायल किया गया है यानि कि केवल मशीनों से ट्रायल हुआ है। इसका अभी वीवो और विट्रो ट्रायल नहीं हुआ है यानि कि इस दवा का प्रयोग अब तक जानवरों और मनुष्यों पर नहीं किया गया है। दरअसल, किसी भी दवा का वीवो ट्रायल पियर रिव्यू होने के बाद ही किया जाता है, हालांकि राकेश शर्मा का दावा है कि उनके अपने संस्थान के अलावा अन्य जगहों ओर इस दवा का ट्रायल हुआ है।
DRDO के अधिकारी ने मानी पतंजलि के साथ रिसर्च की बात
इस दवा के सम्बन्ध में राकेश शर्मा ने 14 मई को स्टेट्समैन अखबार को दिये अपने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया है कि इस दवा का ट्रायल उनके अपने संस्थान में भी हुआ है। उन्होंने माना है कि ट्रायल से पहले पतंजलि आयुर्वेद, उनकी अपनी संस्था और जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट ने मार्च 2020 में इससे सम्बंधित पेपर सब्मिट किया था। राकेश शर्मा का दावा है कि इस दवा का आविष्कार करने वालों में से वो एक हैं।
पेपर में लेखकों के नाम इस प्रकार हैं: आचार्य बालकृष्ण, पल्लवी ठाकुर, शिवम सिंह, स्वामी देव, विनय जैन, अनुराग वार्ष्णेय और राकेश शर्मा। शुरू के चारों नाम पतंजलि आयुर्वेद से ताल्लुक रखते हैं। विनय जैन, जैन विश्व भारती इंस्टिट्यूट से हैं और राकेश शर्मा सविता इंस्टिट्यूट से हैं। इस परचे पर प्रकाशन तिथि 28 अप्रैल, 2020 है।
इस दवा की टेक्नोलॉजी 2004 में डॉ. रेड्डी लैब को ट्रांसफर कर दी गयी थी। उन्होंने यह भी कहा है कि इस दवा का पेटेंट भी 28 फरवरी 2003 को दर्ज करा लिया गया था। मतलब यह स्पष्ट है कि यह दवा कोई नयी दवा नहीं है, बल्कि कोरोना के इस्तेमाल में इसका उपयोग किये जाने का मंसूबा बाबा रामदेव और उनकी कंपनी कोरोना की पहली लहर आने के ठीक पहले बना चुके थे, हालांकि इसका इस्तेमाल अब किया जा रहा है।
डॉ. रेड्डी को करना है उत्पादन
जानकारों का कहना है कि बिना पियर रिव्यू किये किसी रिसर्च पेपर के आधार पर दवा का जनता के बीच उपयोग ठीक नहीं है। इस दवा का पर्याप्त परीक्षण हुआ है या नहीं, अभी तक तय नहीं है। इस पूरे प्रकरण में डॉ. रेड्डी लैब का नाम आना भी चौंकाता है। गौरतलब है कि भारत में स्पुतनिक वैक्सीन (स्पुतनिक लाइट) का निर्माण भी डॉ. रेड्डी के द्वारा किया जाना है। 2DG का उत्पादन भी डॉ. रेड्डी को करना है। डॉ. रेड्डी लैब के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट दीपक साप्रा के मुताबिक दवा का उत्पादन शुरू हो चुका है और जून से बाजार में यह उपलब्ध करवायी जा सकती है।
पहले भी बालकृष्ण कर चुके हैं अंग्रेजी दवा पर रिसर्च
जहां तक आचार्य बालकृष्ण का सवाल है, कोरोना को लेकर दुनिया भर में वे कई रिसर्च पेपर प्रकाशित करवा चुके हैं। कोरोना के इलाज को लेकर उनका एक रिसर्च पेपर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मेडिकल जनरल ‘वायरोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ था। इसके अलावा पतंजलि ने आयुष मंत्रालय को पिछले वर्ष 29 पेज का प्रस्ताव भेजा था। उसके बाद भाजपा शासित प्रदेशों में पतंजलि को कोरोना के रोगियों के इलाज की कवायद में शामिल किया गया।
इस पर भी खूब बवाल मचा था। मतलब साफ़ है कि इस दवा 2DG में पतंजलि के शामिल होने की जानकारी भी केंद्र सरकार को है लेकिन इस बात को छुपा लिया गया है जबकि यह वक़्त इतना ख़तरनाक है कि रोगियों पर किसी क़िस्म का प्रयोग करना ख़तरे से ख़ाली नही है।
आवेश तिवारी वरिष्ठ पत्रकार हैं