बारह बरस से भटकती रूहें और एक चुनाव सर्वे: प्‍यू रिसर्च सेंटर का ओपिनियन पोल

अभिषेक श्रीवास्‍तव  इतिहास गवाह है कि प्रतीकों को भुनाने के मामले में फासिस्‍टों का कोई तोड़ नहीं। वे तारीखें ज़रूर याद रखते हैं। खासकर वे तारीखें, जो उनके अतीत की …

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जाति का उन्मूलन: कल, आज और कल

आनंद तेलतुम्बड़े हमारे समय के सबसे महत्‍वपूर्ण चिंतकों में एक हैं। पिछले दिनों उनके कहे-लिखे पर काफी विवाद खड़ा किया गया है। प्रस्‍तुत लेख उन्‍होंने ”समयांतर” के लिए लिखा था …

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अखिलेन्द्र प्रताप सिंह से उपवास तोड़ने की अपील

11 फरवरी 2014 (फोटो: साभार भड़ास4मीडिया) प्रिय साथी, आप पिछले पांच दिनों से सामाजिक न्याय से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर नयी दिल्ली के जंतर-मंतर में अनशन पर बैठे …

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एक आंदोलन के अंतिम पलों की गवाही

मारुति प्रबंधन के सताए मज़दूरों के जले पर नमक छिड़क गए योगेंद्र यादव  न कहीं कोई कवरेज हुई, न किसी को कोई ख़बर। न टीवी के कैमरे आए, न अख़बारों …

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असहमति पर पांच विचार

अभिषेक श्रीवास्‍तव  1 असहमति- एक ख़तरनाक बात थी पिछले दौर में। उन्‍होंने   असहमति के पक्ष में और इसके दमन के विरुद्ध ही अब तक की है राजनीति। वे असहमत …

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शोला बनती है न बुझ के धुआं होती है!

प्रेम भारद्वाज  हमारे समय के तमाम लिक्‍खाड़ों के बीच प्रेम भारद्वाज चुपके से अपना काम कर रहे हैं। एक अदद साहित्‍य पत्रिका ‘पाखी’ का संपादन करते हुए यूं तो उन्‍होंने …

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