राइट टू एजुकेशन फोरम (आरटीई फोरम) की बिहार इकाई ने गणमान्य एवं प्रमुख नागरिकों के साथ मिलकर एक पत्र के माध्यम से कोविड–19 महामारी से उपजी परिस्थितियों में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण की ओर राज्य के मुख्यमंत्री का ध्यान आकृष्ट किया है। इस पत्र में फोरम ने कुल 12 अहम मुद्दों को रेखांकित किया है। फोरम का कहना है कि देश के साथ-साथ बिहार भी इस वैश्विक महामारी के कारण विशेष संकट के दौर से गुजर रहा है और इस संकट का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है। लिहाज़ा बच्चों के हितों के लिए सुनियोजित रणनीति बनाए जाने की जरूरत है। फोरम ने बच्चों के अधिकारों के संरक्षण से संबंधित किसी विमर्श या सहयोग के लिए सदैव तत्पर रहने की बात भी कही है।
इस पत्र पर राइट टू एजुकेशन फोरम (आरटीई फोरम) की बिहार इकाई के संयोजक डॉ. अनिल कुमार राय; आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय; बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष एवं बिहार विधान परिषद के सदस्य केदारनाथ पांडेय; बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव एवं पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह; टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, पटना के निदेशक, पुष्पेंद्र कुमार सिंह; ए.एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट के भूतपूर्व निदेशक व अर्थशास्त्री प्रो. डी. एम. दिवाकर; पटना ट्रेनिंग कॉलेज के प्राचार्य प्रो. ललित कुमार; इंडियन एसोसिएशन ऑफ लॉयर्स की बिहार इकाई के महासचिव रामजीवन प्रसाद सिंह; बिहार बाल आवाज मंच के प्रांतीय संयोजक राजीव रंजन कुमार सिंह; बचपन बचाओ आंदोलन के बिहार राज्य के संयोजक मोख्तारुल हक, केयर इंडिया, बिहार के प्रोग्राम मैनेजर जैनेन्द्र कुमार; ऑक्स्फैम इंडिया, बिहार के कार्यक्रम समन्वयक, प्रत्यूष प्रकाश; गजाला शाहीन, शिक्षा परियोजना अधिकारी, सेव द चिल्ड्रेन, बिहार; सीमा राजपूत एवं एंजेला तनेजा, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, आरटीई फोरम; युमान हुसैन, सामाजिक कार्यकर्ता; डॉ. अपराजिता शर्मा, काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट, नई दिल्ली; विजय सिंह, संपादक, प्राच्य प्रभा समेत 70 से अधिक शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, नागरिक समाज संगठन व नेटवर्क के प्रतिनिधियों, आरटीई फोरम के प्रांतीय प्रतिनिधियों एवं गणमान्य लोगों ने हस्ताक्षर किये।
अपने पत्र में फोरम ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सूचना के अनुसार विद्यालय एवं आँगनबाड़ी केंद्रों के सभी बच्चे-बच्चियों को पोषाहार की राशि का मिलना सुनिश्चित नहीं हो सका है। कई लोगों से प्राप्त सूचना के मुताबिक़ पोषाहार और पुस्तक की खाते में प्राप्त राशि को निर्गत करने से बैंक मना कर रहे हैं। बच्चों के भोजन के अधिकार से संबंधित इस गंभीर मसले पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।
फोरम ने आगे कहा है कि राज्य के सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों का सुचारु रूप से संचालन सुनिश्चित करते हुए 0-6 वर्ष के बच्चों के स्वास्थ्य-पोषण, सुरक्षा एवं पूर्व-प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के ठोस उपाय किए जाएँ और जमीनी तौर पर इसका अमल सुनिश्चित करने हेतु एक सक्रिय निगरानी तंत्र की स्थापना की जाए।
कोरोना संकट के कारण स्कूल ठप्प हैं और सामाजिक हाशिये पर मौजूद दलित–वंचित समुदाय, कमजोर पृष्ठभूमि वाली तथा असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत व्यापक आबादी घोर आर्थिक असुरक्षा एवं आजीविका के स्रोतों की बंदी के चलते सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। ऐसे में, लॉक डाउन खुलने के बाद बड़ी संख्या में बच्चों के स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर होने की आशंका बलवती हो रही है। दूसरी तरफ, बिहार में बड़ी संख्या में आये प्रवासी मजदूरों के साथ उनके बच्चों का भी आगमन हुआ है और अब उन बच्चों के अभिभावक यहीं रहने का मन बना रहे हैं। इसलिए, शीघ्र ही उन बच्चों को स्कूल के साथ जोड़कर उनके भोजन और शिक्षा के अधिकार की रक्षा किये जाने की जरुरत है।
14-18 वर्ष के बच्चों के नामांकन पर भी विशेष ध्यान देते हुए उनका नामांकन सुनिश्चित करने की जरूरत है ताकि सतत विकास लक्ष्यों (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स) के तहत संकल्पित उच्च माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्यों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। इसके लिए बच्चों की व्यापक मैपिंग, निगरानी और समस्या निवारण के लिए अविलंब एक सक्रिय निकाय की स्थापना की जानी चाहिए।
बिहार में पहले से ही बाल मजदूरी की समस्या का हवाला देते हुए फोरम ने अपने पत्र में कहा है कि अभिभावकों की बेरोजगारी और आर्थिक मंदी के कारण बाल मजदूरी के बेतहाशा बढ़ने की आशंका है। लिहाज़ा इस दिशा में विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। फोरम का मानना है कि विद्यालय के साथ बच्चों को जोड़ना सुनिश्चित करके इस समस्या को कम किया जा सकता है।
विद्यालय बंद होने की अवस्था में टीवी या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के द्वारा ऑफलाइन शिक्षा की व्यवस्था शुरू करने के कदम को रेखांकित करते हुए फोरम ने कहा है कि पचास प्रतिशत से भी अधिक गरीब मजदूरों के घरों में टीवी या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में, उन वंचित समूह के बच्चों तक शिक्षा की पहुँच बनाने के लिए तत्काल आवश्यक एवं व्यावहारिक उपाय किये जाने की जरुरत है।
फोरम ने अपने पत्र में निजी विद्यालयों में शिक्षण शुल्क के अतिरिक्त अन्य शुल्क न लिए जाने, शिक्षण शुल्क के लिए भी अभिभावकों पर दबाव न बनाने एवं शिक्षकों को वेतन देना सुनिश्चित किए जाने के लिए यथाशीघ्र स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाने की मांग की है।
फोरम ने लगातार घर में रह रहे बच्चों और विशेषकर बच्चियों के साथ घरेलू या किसी अन्य प्रकार की हिंसा रोकने और विगत समय में बंद या विलय किए गए स्कूलों को खोलने के साथ-साथ शिक्षा अधिकार कानून में वर्णित प्रावधानों के अनुरूप नए प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों को खोलने की भी मांग की है.
मुख्यमंत्री को लिखे गये पत्र के बारे में पूछे जाने पर आरटीई फोरम की बिहार इकाई के संयोजक अनिल कुमार राय ने कहा, “एक तरफ तो हजारों लोग इस वायरस से संक्रमित होते जा रहे हैं, इसके साथ ही एक ही समय में लाखों प्रवासी मजदूरों के आगमन का दबाव बेरोजगारी की एक नई पटकथा तैयार कर रहा है। इस स्थिति में, बच्चों के भविष्य को लेकर बिहार सरकार को सजग और संवेदनशील रहना चाहिए। अगर शिक्षा को प्राथमिकता में रखते हुए सार्वजनिक शिक्षा की बुनियाद को मजबूत करने की तरफ ध्यान न दिया गया तो ग्रामीण इलाकों एवं कमजोर वर्ग का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा की मुख्य धारा से बाहर हो जाएगा। ”
अपनी प्रतिक्रिया में राइट टू एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय ने कहा, “बिहार जैसे मुख्यत: कृषि, नौकरी और छोटे व्यवसायों पर निर्भर अर्थव्यवस्था वाले राज्य के लिए इस संकट से निबटना चुनौतीपूर्ण है। आरटीई फोरम इस विशेष परिस्थिति में, राज्य और उसके नागरिकों, विशेषकर बच्चों के साथ खड़ा है। बच्चे समाज के नव-निर्माण की धुरी हैं। हमारी अपेक्षा है कि मुख्यमंत्री बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए तत्पर हों।”
श्री राय की बातों का समर्थन करते हुए बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष एवं बिहार विधान परिषद के सदस्य केदार नाथ पांडेय ने कहा, “ बच्चों की शिक्षा को मोबाइल एवं इंटरनेट के सहारे चलाने के दूरगामी असर पर चिंतन जरुरी है। बिहार सरकार द्वारा बच्चों की शिक्षा को बहुत ही हलके में लिया जाना वाकई चिंताजनक है। बच्चों की शिक्षा के भविष्य को अधर में लटकाकर हम देश के भविष्य को ही अंधकार में धकेलेंगे।”
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव एवं पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने कहा, “बुनियादी सामाजिक विषमताओं एवं हाशिये के समुदायों पर बढ़ते संकट के कारण उत्पन्न खतरों को दरकिनार करके शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए तैयार की जानेवाली कोई भी रणनीति गुणवत्तापूर्ण समावेशी शिक्षा और जीवन जीने के अधिकार की गारंटी में सफल नहीं हो सकती। इस संकटपूर्ण समय में बच्चों के अधिकारों को संरक्षित करना सरकार का प्राथमिक दायित्व होना चाहिए।”
गजाला शाहीन, शिक्षा परियोजना पदाधिकारी, सेव द चिल्ड्रेन, बिहार ने मौजूदा हालात पर टिप्पणी करते हुए कहा, “किसी भी संकट या आपदा के वक़्त लड़कियों पर दोहरी मार पड़ती है। कोविड -19 के कारण बच्चियों का स्कूलों से ड्रॉप आउट बढ़ने और नतीजतन अशिक्षा के दलदल में फँसने का खतरा उत्पन्न हो गया है। किशोरियों के बाल-विवाह, घरेलू एवं मजदूरी के दूसरे रूपों में धकेले जाने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकार को उनके लिए ठोस उपाय करने चाहिए।“
बात को आगे बढ़ाते हुए बिहार बाल आवाज मंच के प्रांतीय संयोजक राजीव रंजन कुमार सिंह ने कहा, “पहले से ही विद्यालय शिक्षक और कक्षाओं की कमियों से जूझ रहा है। विद्यालय का वर्तमान संसाधन प्रवासी मजदूरों के कई लाख अतिरिक्त बच्चों के नामांकन के बोझ को उठाने के लायक नहीं है। इसलिए समय रहते इसकी तैयारी कर ली जानी चाहिए। इस संदर्भ में हम विगत समय में बंद या विलय किए गए स्कूलों को खोलने के साथ-साथ शिक्षा अधिकार कानून में वर्णित प्रावधानों के अनुरूप नए प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों को खोलने की मांग करते हैं।”
गौरतलब है कि राइट टू एजुकेशन फोरम ने राष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के संरक्षण के संदर्भ में अहम बिन्दुओं को उठाते हुए मई महीने में ही प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया था। इसी कड़ी में प्रांतीय फोरम की तरफ से अलग-अलग राज्यों में मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजे जा रहे हैं।
1592305558118_RTE-Forum-Bihar-Memorandum-to-CM-Bihar_16-June-2020मित्ररंजन
प्रभारी, आरटीई फोरम, बिहार
मो. 9717965840 3 Attachments
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