आदरणीय भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू,
दिल्ली के सिविल लाइंस इलाके के नजदीक खैबर पास मेस चौरासी लाइन इलाके में हम वंचित, पिछड़े एवं दलित समाज के दो सौ परिवार बीते लगभग पचास वर्षों से अधिक समय से रहते आ रहे हैं। ये दो सौ परिवार अपनी तीन पीढ़ियों से सफ़ाईकर्मी, धोबी, माली, चौकीदार इत्यादि सेवाओं में कार्यरत हैं। हमारी पहली और दूसरी पीढ़ी के लोग भारतीय सेना के लिए उपरोक्त सेवाएं दिया करते थे। इन्हीं सेवाओं के चलते भारतीय सेना के सर्वेंट क्वार्टर्स में भारत सरकार द्वारा हमारी पहली पीढ़ी को बसाया गया था। तब से लेकर आज तक लगभग पचास वर्षों से अधिक समय से हम सब लोग सपरिवार अपनी इस छोटी सी दुनिया में जीते आ रहे हैं। हमारे ये घर आपके आवास से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
महामहिम, यूं तो हम लोगो के जीवन में मुश्किलों और गरीबी और पिछड़ेपन का सदियों पुराना इतिहास रहा है लेकिन भारत गणराज्य की स्थापना और बाबासाहब भीमराव अंबेडकर के संविधान के वजूद में आने के बाद न्याय और बराबरी के जीवन जीने का हम लोगो के पुरखों ने एक स्वप्न देखा था और बाबा साहब के इसी संविधान में अटूट विश्वास के साथ हम जीवन की हर मुश्किलों से जूझने के लिए कर्मबद्ध भी हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं लेतीं।
चौरासी लाइन मेस में रहते हमें इतने वर्ष हुए, लेकिन आज भी हम उन्हीं पुराने जर्जर मकानों में रहने के लिए मजबूर हैं। बीती लगभग सभी सरकारों ने हमें समय-समय पर पक्के, साफ-सुथरे मकानों के वादे और आश्वासन दिए, लेकिन अफसोस वे सिर्फ वादे और आश्वासन ही रहे, कभी हकीकत के धरातल पर नहीं उतरे।
महामहिम, इस पत्र के माध्यम से आज हम आपको अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की चुनौतियों और मुश्किलों के एक छोटे से हिस्से से अवगत करवाना चाहते हैं। हम चौरासी लाइन के दो सौ परिवार जहां रहते है वहां सीवर लगभग एक दशक से ओवरफ्लो बना हुआ है। हमारे पुराने घर सड़क से लगभग दो फुट नीचे आ चुके हैं। सीवर का गंदा पानी अक्सर घरों में जमा हो जाता है जिससे गंदगी और दुर्गंध के साथ हमें सुबह-शाम जूझना पड़ता है। बारिश में तो यह स्थिति और भयावह हो जाती है जब बारिश का पानी, सीवर का पानी, निकासी का कोई रास्ता न होने के चलते घरों के अंदर कई दिनों तक जमा रहता है और घर की औरतों, बच्चों, बूढ़ों द्वारा बाल्टियों और घर के अन्य बर्तनों से अपने हाथों से इस गंदे पानी को बाहर निकालना पड़ता है।
हमारी तीसरी पीढ़ी के लोग सरकारी नौकरी के अभाव में आज भी वही पुराना धोबी, सफाईकर्मी, चौकीदार, माली का काम सिविल लाइन के धनसंपन्न आवासों में बहुत कम मजदूरी पर करते हैं। इन बीते पचास सालों में हमारे परिवारों की आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति बिल्कुल नहीं बदली है बल्कि स्थाई सरकारी या निजी क्षेत्र की नौकरी के आभाव में बद से बदतर ही हुई है। आज भी हमारे यहां दो सौ परिवारों में ज्यादातर लोगों की मासिक आय दस हजार रुपये से कम है। इतनी कम मजदूरी, मूल आधारभूत सुविधाओं का अभाव होने पर भी किसी तरह हम लोग अपना जीवनयापन करते आ रहे हैं, लेकिन अब स्थिति जीवन और मरण के प्रश्न पर आ चुकी है।
बीते 1 मार्च 2024 को केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अधीन आने वाले भूमि एवं विकास विभाग ने हमारे घरों पर एक नोटिस चस्पा किया जिसमें हमें अपने मकान खाली करने का आदेश दिया गया था। साथ ही इस नोटिस में हमे अतिक्रमणकारी और अवैध कब्ज़ाधारी कह कर संबोधित किया गया था। उपरोक्त विभाग के अधिकारी एवं पुलिस अधिकारी रोज हम लोगों को घर से बेदखल करने की धमकी देते और नाना प्रकार से हमें डराते-धमकाते। इस उत्पीड़न से खुद को बचाने के लिए हम लोगों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां पर भी सरकारी पक्ष झूठे साक्ष्य रख कर न्यायालय को यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहा कि हम लोग कभी भी उपरोक्त जमीन पर लंबे वक्त से रहे ही नहीं। हम लोग समय-समय पर भूमि अतिक्रमण करते रहे और सरकार हमें वहां से हटाती रही- ऐसा कोरा झूठ सरकार ने न्यायालय में पेश किया।
अगर भूमि विकास अधिकारियों के साथ हुई अनधिकारिक बातों और मीडिया के कुछ स्रोतों की मानें, तो जहां हमारे मकान हैं उन्हें तोड़ कर वहां धनसंपन्न लोगों के लिए आलीशान अपार्टमेंट बनाने की योजना है। वर्ष 2001 के आसपास इसी प्रकार से हमारे घर से महज 600 मीटर की दूरी पर दुर्गा बस्ती के झोपड़ों को तोड़ा गया था। इस जमीन को दिल्ली मेट्रो के नाम पर अधिग्रहित किया गया था। बाद में उस भूमि पर मशहूर बिल्डर पार्श्वनाथ ने हाउसिंग सोसाइटी का निर्माण कर दिया जहां एक फ्लैट की कीमत पांच करोड़ रुपये से ज्यादा है।
महामहिम राष्ट्रपतिजी, महंगे वकीलों की फीस देने, कानून की समझ न होने और इसी अभाव में न्यायालय में मजबूती से अपना पक्ष न रखने जैसे कारणों से माननीय उच्च न्यायालय ने हमारे घरों की बेदखली पर लगी अंतरिम रोक को हटा लिया है। अब हमें हमारे घरों से किसी भी समय सरकार बेदखल कर सकती है। पहले ही आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के चलते जीवन चलाना कठिन था। अब अपने घरों से बेदखल होकर किराये के मकान में रहना हम लोगों के बूते से बाहर की बात है।
ऐसी स्थिति में हमारे पास दो ही रास्ते बचते हैं- या तो हम अपनी औरतों, बच्चों, बूढ़ों के साथ सड़क पर अपमानजनक स्थिति में सिसक-सिसक कर मरें या फिर अपने आत्मसम्मान के साथ स्वयं अपने जीवन को समाप्त कर लें। हमें बाबासाहब के संविधान में अटूट विश्वास और निष्ठा है। इसीलिए खुद से हम ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाना चाहते जो कानून और संविधान के विरुद्ध हो। ऐसी स्थिति में आपसे विनती है कि हमारे दो सौ परिवारों को इच्छामृत्यु की इजाजत दी जाए ताकि हम लोग जीएं भी बाबासाहब के संविधान के अनुसार और अगर जीवन देना पड़ा तो वह भी बाबा के संविधान से सम्मत हो। उम्मीद है आप हमारी पीड़ा और संवेदना को समझते हुए उचित निर्णय लेंगे।
जय हिंद, जय भीम, जय संविधान