ऐक्टू समेत देश की अन्य केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने देशभर में मजदूर विरोधी नीतियों और निजीकरण के खिलाफ ‘देश बचाओ’ आन्दोलन का आह्वान किया है. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन और बिस्मिल-अशफाक सरीखे क्रांतिकारियों द्वारा अंजाम दिए गए 1925 के काकोरी ट्रेन लूट के दिन यानि 9 अगस्त को देश के विभिन्न हिस्सों में ट्रेड यूनियनें ‘जेल भरो’ आन्दोलन के लिए सड़कों पर उतरेंगी.
इसी अभियान के अंतर्गत दिल्ली के विभिन्न इलाकों में आशा कर्मियों ने 7 और 8 अगस्त को ज़ोरदार प्रदर्शन किया और कहा कि केंद्र और राज्य की सरकारें आशा कर्मियों को मजदूर तक का दर्जा देने को नहीं तैयार हैं.
ऐक्टू व अन्य केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त प्लेटफार्म ने देशभर में स्कीम वर्कर्स की हड़ताल का फैसला लिया था जिसके तहत 7 और 8 को देशभर में स्कीम वर्कर्स की हड़ताल और 9 अगस्त को ‘जेल भरो’ आन्दोलन का आह्वान किया गया था.
दिल्ली में 7 और 8 अगस्त के इस कार्यक्रम के तहत ऐक्टू से सम्बद्ध दिल्ली आशा कामगार यूनियन ने विभिन्न डिस्पेंसरियों पर विरोध-प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में शामिल आशा कर्मियों ने एक सुर में सरकार के प्रति अपने गुस्से का इज़हार किया। उन्होंने बताया कि न उनको कोई पीपीई किट दिया जा रहा है, न ही उनके केंद्र या राज्य सरकार उनके सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेना चाहते हैं। स्कीम वर्कर्स को न तो कर्मचारी का दर्जा दिया जाता है और न ही वेतन, उन्हें काम के बदले में मानदेय या पारितोषिक का ही भुगतान किया जाता है. दिल्ली में कोविद-19 की ड्यूटी के बदले आशा को सिर्फ 1000 रुपये दिये गए गए हैं जोकि बहुत कम है.
प्रदर्शन के दौरान दक्षिणी दिल्ली की एक आशा कर्मी ने कहा कि इस कोरोना महामारी के दौरान वो अपनी जान पर खेलकर आम जनता की सेवा कर रहे हैं. कोरोना के खिलाफ लड़ाई में आशा कर्मी सबसे आगे हैं. जब सबको कहा जा रहा है कि घर से बाहर न निकले, तब आशाएं घर-घर जाकर स्वास्थ्य सुविधाओं को आम जनता तक पहुंचा रही हैं पर मोदी से लेकर केजरीवाल तक हमारे काम का उचित दाम और सम्मान देने को तैयार नहीं है.
स्वास्थ्य सेवाओं का पूरा दारोमदार अपने कन्धों पर उठाने वाली आशा कर्मियों ने सरकार से ये सवाल उठाया कि आखिर 2-3 हज़ार रूपए में कोई कैसे गुज़ारा कर सकता है, वो भी तब जब आशाएं अपनी जान का खतरा उठाकर कोरोना रोकथाम में लगी हुई हैं. पूर्वी दिल्ली की डिस्पेंसरी में कार्यरत एक आशा कर्मी ने कहा कि सरकार आशाओं से सर्वे इत्यादि सारे काम करवाती है, लेकिन सरकारी कर्मचारी का दर्जा नहीं देना चाहती.
दिल्ली आशा कामगार यूनियन (संबद्ध ऐक्टू) की अध्यक्ष श्वेता राज ने कहा कि आशा कर्मी कोरोना आपातकाल के दौरान लगातार तमाम खतरों के बीच भी अपने काम को अंजाम दे रही हैं. इस कार्य के दौरान कई आशाएं संक्रमित भी हुई और कई पर हमले भी हुए हैं. ये बहुत शर्मनाक है कि सरकार इन आशा कर्मियों के सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं लेना चाहती है – ज़्यादातर अशाओं को पीपीई किट तक नहीं दिया जा रहा. ऐसी स्थिति में तमाम सरकारी वादे झूठे जान पड़ते हैं. इसको लेकर हमने दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को लगातार चिट्ठियां लिखी हैं और सरकार की तरफ से अब कोई जवाब नहीं दिया गया है. ICDS व अन्य सरकारी योजनाओं का निजीकरण कर सरकार पहले से ही लचर जन-स्वास्थ्य व्यवस्था को और खराब कर देना चाहती है.
दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में स्कीम वर्कर्स इन समस्याओं से त्रस्त हैं. बिहार, झारखंड, यूपी, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा समेत अनेक राज्यों में स्कीम कर्मियों ने भारी संख्या में हड़ताल व प्रदर्शन में भागीदारी की. बिहार में ऐक्टू व अन्य ट्रेड यूनियन संगठनों ने 6 अगस्त से 9 अगस्त तक चार दिवसीय हड़ताल का आह्वान किया था, जिसका असर सभी जिलों में देखा जा सकता है. दिल्ली आशा कामगार यूनियन की तरफ से उठाई गई प्रमुख मांगें इस प्रकार से हैं:
- सरकार निजीकरण की नीति पर रोक लगाए व श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव वापस ले।
- सभी स्कीम वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए और पूरे वेतन की गारंटी हो।
- सभी स्कीम वर्कर्स को तुरन्त पीपीई किट मुहैय्या करवाया जाए।
- कोरोना रोक-थाम कार्य में संलग्न सभी स्कीम वर्करों के लिए 50 लाख के मुफ्त जीवन बीमा और 10 लाख के स्वास्थ्य बीमा की घोषणा की जाये।
- सभी स्कीम वर्कर्स की कार्यस्थल पर सुरक्षा की गारंटी की जाए।
श्वेता राज
अध्यक्ष, दिल्ली आशा कामगार यूनियन (संबद्ध ऐक्टू)
8587944167