अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला समाज सुधारकों के संघर्ष को याद करते हुए

8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सावित्री बाई और फातिमा शेख जैसी महान नारियों के योगदान को याद करना हम सब के लिये गर्व की बात है।

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पुरुषों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य-समृद्धि का जिम्मा महिलाओं के सिर पर क्यों?

यदि समाज में ऐसे पर्व का भी प्रचलन हो जिसमें भाई, बहन की पूजा करे और पति, पत्नी की पूजा करे तो सामाजिक स्तर पर एक सामूहिक जागरूकता आएगी जिससे महिलाओं के प्रति पुरुषों का नजरिया आदर्श हो पाएगा और महिलाएं अधिक स्वतन्त्रता, सम्मान और समानता से आगे बढ़ेंगी।

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अफगानी महिलाओं के दुख से बेखबर विश्व समुदाय

यूएनओ और सार्क जैसे संगठन हैं, नारी स्वतंत्रता एवं मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली ढेर सारी संस्थाएं हैं, उत्तरोत्तर उदार और प्रजातांत्रिक होते विश्व के लोकप्रिय और शक्तिशाली सत्ता प्रमुख हैं किंतु जो बात अपरिवर्तित है वह है अफगान महिलाओं की नारकीय स्थिति। क्या यह स्थिति अपरिवर्तनीय भी है?

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आलोचनात्मक नारीवाद: बदलाव के लिए एक औज़ार के रूप में शिक्षा का उपयोग

उन्होंने 1 लाख शिक्षकों और हाशिए पर पड़े समुदायों से जुड़े 50 लाख छात्रों को आलोचनात्‍मक नारीवाद पढ़ाया। फाउंडेशन ने शिक्षकों, छात्रों और माता-पिता-सभी हितधारकों को शामिल करके समाज की क्रूर पितृसत्तात्मक मानसिकता को बदलने की कोशिश में महत्वपूर्ण संवाद किए हैं।

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पितृसत्ता से मुक्ति, आज़ादी और बराबरी के लिए स्कूली शिक्षण के नवीनतम प्रयोग

इस अध्यापन के तरीके ने लड़कियों को अपनी जिंदगी से सबक लेते हुए खुद के लिए खड़े होने की रणनीतियां विकसित करना सिखाया। यह उनके परीक्षा परिणामों दिखायी देता है जहां 88 प्रतिशत लड़कियों ने अपनी शिक्षा पूरी की है। यह राष्‍ट्रीय औसत से दोगुना आंकड़ा है।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: तालिबान बनाम आठ सौ साल पुराने ‘अखंड भारत’ की इकलौती महिला सुल्तान

तालिबान द्वारा महिलाओं के खिलाफ घोर हिंसा को देखकर यकीन नहीं होता है कि 1192 में मोहम्‍मद गोरी के हिन्दुस्तान फ़तह का अभियान शुरू करने के दस वर्ष बाद ही गोरी के गुलाम इल्‍तुतमिश की सैन्य शासन व्यवस्था की कमान उसकी बेटी रजिया के हाथों में थी।

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ये दुनिया तालिबान के खूनी शासन की तरह कहीं अफगानी महिलाओं के संघर्ष को भी भुला न दे: RAWA

पेंटागन ने साबित कर दिया है कि आक्रमण अथवा हस्तक्षेप कभी भी सुरक्षित ढंग से समाप्त नहीं होता। सभी साम्राज्यवादी ताक़तें अपने सामरिक, राजनैतिक और वित्तीय स्वार्थों के लिए दूसरे देशों पर हमला करती हैं लेकिन अपने झूठ और कॉरपोरेट मीडिया की ताकत के बल पर अपने असली इरादों तथा एजेंडा पर पर्दा डालती रहती हैं।

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भारत की जेलों में कैद औरतों की अनकही कहानियां

आज़ादी का ख्वाब दिल में पाले देश की जेलों में कैद महिलाओं की अनगिनत कहानियां हैं। इनमें से कितनी गुनाहगार हैं और कितनी बेगुनाह हैं, यह आमतौर पर कानून नहीं, बल्कि पुलिस के गढ़े गये सबूतों के साथ-साथ समाज और अदालतों का पितृसत्तात्मक नज़रिया तय करता है।

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‘साइना’ और ‘जामुन’: पुरुष वर्चस्व को चुनौती देती आज़ाद स्त्रियों की कहानियां

आज लड़कियां विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़कर अपने देश का नाम रोशन कर रही हैं और अपने माता-पिता से भी उनके संबंध काफी मधुर हैं, जिससे उन्होंने यह साबित कर दिखाया है कि लड़कों की चाह रखना परिवार की आवश्यकता नहीं है बल्कि हमारे समाज के दकियानूसी विचारों का परिणाम हैl

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अफगानी महिलाओं के लिए क्या गुलामी का नया अध्याय साबित होगी अमेरिकी सेना की वापसी?

करीमी और अन्य युवा महिलाएं जो पार्लर में काम कर रही हैं, उन्होंने कभी तालिबान के शासन का अनुभव नहीं किया, लेकिन वे सभी यह चिंता करती हैं कि अगर तालिबान सत्ता हासिल कर लेता है, तो उनके सपने खत्म हो जाएंगे।

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