‘यथास्थितिवाद के विरोधी थे विलास, इसलिए नए संगठन बनाना उनकी जीवनशैली का हिस्सा बन गया’

कॉमरेड विलास के प्रश्न सीपीएम नेतृत्व के लिए असुविधाजनक बनते गए और सीपीएम नेता शरद पाटिल के विचार के प्रति उनका खिंचाव बढ़ता गया, किन्तु उनके इस विचार से कि देश में जनवादी क्रांति जाति इत्यादि सामाजिक प्रश्नों को भी हल कर देगी विलास को रास नहीं आता था इसलिए उनका सीपीएम के अंदर और बाहर साथ देने के बजाय प्रश्नाकुल बने रहे और सीपीआई(एमएल) के एक गुट सीआरसी में 1980 के दशक के आरंभिक दिनों में शामिल हो गए और उस दशक के ही 1987 तक महाराष्ट्र यूनिट के स्टेट सेक्रेटरी बने रहे।

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समता और स्वतंत्रता के प्रयोगधर्मी योद्धा विलास सोनवणे

कम्युनिस्ट लोग उन्हें कामरेड कहते थे और सर्वोदयी और समाजवादी लोग विलास भाई। भक्ति आंदोलन की विरासत को ढोने वाला वार्करी समाज उन्हें अपना साथी मानता था। इसी तरह महानुभाव और लिंगायत समाज से भी वे अपनापन रखते थे। मुस्लिम समाज उन्हें अपना दोस्त मानता था और गांधीवादी-समाजवादी लोग उन्हें अपना नया व्याख्याकार कहते थे। आंबेडकरवादी उन्हें अपने करीब मानते थे। स्त्रीवादी उन्हें अपना वकील समझती थीं।

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जलते हुए जलगांव के बीच विलास सोनवणे को दिल्‍ली में सुनना

सांप्रदायिकता से कैसे लड़ें, इस पर उन्‍होंने कहा कि ये लड़ाई लंबी है। वे बोले कि कम्‍युनिस्‍ट आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। उन्‍होंने हमें एजेंडा दे दिया है और हम धरने पर बैठे हैं। यह नहीं होना चाहिए।

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