सावित्री बाई फुले को सिर्फ अतीत में नहीं बल्कि वर्तमान में देखने की जरूरत है

सावित्री बाई फुले को सिर्फ इस लिहाज से न देखा जाए कि वह एक दलित महिला थीं और उन्होंने कुछ स्कूलों की स्थापना की। उनका योगदान सिर्फ कुछ जातियों के विकास तक नहीं सीमित है। सावित्री बाई फुले अपने आपको एक मनुष्य की दृष्टि से देखती थीं।

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला समाज सुधारकों के संघर्ष को याद करते हुए

8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सावित्री बाई और फातिमा शेख जैसी महान नारियों के योगदान को याद करना हम सब के लिये गर्व की बात है।

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कितना पूरा हुआ बालिका शिक्षा पर सावित्रीबाई फुले का सपना

सावित्रीबाई फुले का सपना था कि देश की हर बच्ची और महिला शिक्षित हो। इसके लिए परिवार और समाज में यह विश्वास लाना होगा कि बालिका शिक्षा का महत्व क्या है और अगर बच्चियों को मौका दिया जाए तो वे जीवन में आगे बढ़ सकती हैं।

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एक सत्यशोधक के रूप में जोतिबा फुले की तस्वीर: देस हरियाणा का भाषणों को समर्पित अंक

अब तक हिंदी पाठकों के दिमाग में बनी जोतिबा फुले की तस्वीर एक समाज सुधारक की तस्वीर या फिर एक जातिवाद विरोधी महात्मा की तस्वीर के रूप में बनी हुई है। ये भाषण जोतिबा फुले के दर्शन, विज्ञान और इतिहास के सत्यशोधक की तस्वीर बनाते हैं। यह भाषण पहली बार मराठी में 1856 में प्रकाशित हुए थे।

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सावित्रीबाई फुले की जयंती पर उनकी दूरदर्शिता और लचीलेपन को याद करते हुए

सावित्रीबाई, जो अपने समय से आगे थीं, एक ऐसी महिला की ब्राह्मणवादी कल्पना के सामने नहीं झुकीं, जिसका जीवन दृढ़ता से और पूरी तरह से अपनी मातृ प्रवृत्ति से प्रेरित था। इसके बजाय, उन्होंने महिलाओं के व्यक्तित्व को एजेंसी और स्वायत्तता सौंपी, महिलाओं को भारतीय समाज के भीतर हाशिए की पहचान के रूप में मान्यता दी।

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