तिर्यक आसन: धर्म और राष्ट्रहित के उचक्के


धर्म और राष्ट्रवाद उन मालगाड़ियों के नाम हैं जो पूँजीवाद का माल ढोती हैं। इन मालगाड़ियों के लिए इंजन की आवश्यकता नहीं होती। इंजन वो ‘आवारा भीड़’ है, जिसके पास सिर्फ धड़ है। सिर को मालगाड़ियों का चक्का बना दिया गया है। लोहे की पटरी पर चक्के की रगड़ से चिंगारी निकलती है, तो सिर सोचता है- “उसके दिमाग को खराद पर चढ़ाकर दिमाग की धार और तेज बनाई जा रही है। सोने को आग में तपाकर कुंदन बनाया जा रहा है।” धर्म और राष्ट्रहित के उचक्कों ने मालगाड़ियों के इंजन और चक्के के रूप में आवारा भीड़ को जोत रखा है। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार रूस द्वारा यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई की शुरुआत से अब तक यूरोपीय संघ के सदस्य देश लगभग पचास हजार मिलियन का तेल, गैस और कोयला खरीद चुके हैं। अमेरिका रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है। अपने ग्राहक देशों को महँगा बेच रहा है। भारत भी अमेरिका से तेल खरीद रहा है। 

हमारा देश ऐसी सैन्य कार्रवाई से सुरक्षित रहेगा। अपनी लाल आँखें दिखाने के लिए छिटपुट झड़पें होती रहेंगी। लाल आँखों में धर्म और राष्ट्रवाद की ज्वाला प्रज्ज्वलित रखने के लिए पड़ोसी देश पर चिंगारी फेकता रहेगा। जब धर्म और राष्ट्रवाद की आँखों को मोतियाबिंद होगा, तब गोले बरसाएगा। साफ दिखने लगेगा- यही है हमारे धर्म और राष्ट्रवाद का नेत्र चिकित्सक। उस पड़ोसी देश पर चिंगारी नहीं फेकेगा, जिसका ड्रैगन आग उगलता है। ड्रैगन पूरा अरुणांचल अपने पंजे में कर ले, तो कर ले। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार चीन अरुणांचल प्रदेश में घुसपैठ कर घर बना रहा है। किसी ने बताया, उन घरों में शौचालय हम ही बनाएंगे। ठीक ही बताया। दोनों देशों की तनातनी से अगर उचक्कों को आर्थिक लाभ होता है, तो तनातनी चलने दो।

हमें चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और नाटो की सेना से डरने की जरूरत नहीं। हमारे देश में सवा अरब मानव श्रम है। गर्व का विषय है कि सवा अरब मानव श्रम का सामना नाटो-फाटो की सेनाएँ नहीं कर पाएंगी। सेनाएँ सवा अरब मानव श्रम से डरती हैं ? नहीं, सवा अरब ग्राहकों से डरती हैं। सवा अरब मानव श्रम नहीं, सवा अरब ग्राहक हैं। उपभोक्ता हैं। सवा अरब उपभोक्ताओं के दम पर देश सबसे बड़ा ग्राहक है। अपने सबसे बड़े ग्राहक को कोई देश नाराज नहीं करना चाहेगा।

सवा अरब मानव श्रम है, तो क्या सबसे बड़ा उत्पादक भी है? टॉप टेन में भी है? सबसे बड़े अनुत्पादक देशों में से एक जरूर होगा। प्रकृति, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों द्वारा दिए जाने वाले कच्चे माल को पक्के में नहीं बदल पाता तो एक्सपोर्ट क्या करेगा? एक्सपोर्ट के नाम पर बिलेनियर-मिलेनियर एक्सपोर्ट करता है- माई-बाप आपके ऊपर बैंकों का कर्ज इतना हो गया है कि कर्ज के शून्य की संख्या नहीं गिन पा रहे। आपको दूसरे देश एक्सपोर्ट किया जाता है। सफर के दौरान आपकी सुख-सुविधा की फाइव स्टार व्यवस्था रहेगी। 

बैंकों का मिलियन-बिलियन लेकर एक्सपोर्ट हुए कर्जदार इम्पोर्ट होना चाहते हैं। फाइव स्टार शौचालय के अभाव में इम्पोर्ट नहीं होते। आधुनिक दंत कथाओं के अनुसार बड़ा आदमी अक्सर पाखाने में रहता है। फोन पर किसी को टालना हो, तो नौकर से कहलवा देता है- साहब बाथरूम में हैं। मंत्री के बँगले पर फरियादी पहुँचे। मंत्री के पीए ने फरियादियों को बताया- मंत्री जी फ्रेश हो रहे हैं। मिल मालिक से मिलने मजदूर पहुँचे। मिल मालिक के सेक्रेटरी ने मजदूरों को बताया- सर अभी स्टीम बाथ ले रहे हैं। नेता से जनता और मिल मालिक से मजदूर मिलने पहुँचते हैं, तो पेट खराब होना स्वाभाविक है। पाखाने में व्यतीत होने वाले समय की गणना की जाय, तो बड़े लोगों के जीवन का आधा समय पाखाने में ही गुजरता है।

बड़ा आदमी जब किसी अपराध के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा जाता है, तो उसे जेल में मिलने वाली सुविधाओं से बड़ी असुविधा होती है। सूचना आती है- मच्छरों की वजह से रात भर नींद नहीं आई। गर्मी से हुए बेहाल। घर के खाने को कर रहे हैं याद। घर से खाना मँगाने की माँगी इजाजत। जेल में होने वाली एक असुविधा की सूचना नहीं आती- जेल में फाइव स्टार शौचालय के कमी की सूचना। बैंकों के जो कर्जदार एक्सपोर्ट हुए हैं, वे वापस आ जाते। उन्हें गिरफ्तारी का डर नहीं है। उन्हें डर है- जेल में घर जैसा पाखाना नहीं मिलेगा।

रूस द्वारा शुरू की गई सैन्य कार्रवाई से यूक्रेन भी लाभान्वित हो रहा है। सैन्य कार्रवाई के बीच यूरोपीय संघ के देशों को माल की ढुलाई यूक्रेन के रास्ते भी हो रही है। रूस ढुलाई के रास्ते पर लगने वाला टोल टैक्स यूक्रेन को दे रहा है। ऐसे में दोनों देशों को सैन्य कार्रवाई से कौन सा आर्थिक नुकसान हो रहा है? आर्थिक नुकसान हुआ भी, तो उसकी भरपाई देशहित में टैक्स बढ़ाकर जनता से कर ली जाएगी। देशहित के नाम पर पूँजीवाद की बलि का बकरा बनने वाले गले में माला डाले रिरिया रहे हैं- पहले मुझे झटका दो। पहले मुझे झटका दो।

युद्ध में जान-माल का नुकसान होता है। पूँजीवाद के युद्ध में सिर्फ जान का नुकसान होता है। माल का नहीं। पशु-पक्षी, नागरिक, सैनिकों की जान का नुकसान होता है। यूक्रेन के रास्ते रूस से जो माल यूरोपीय संघ के देशों को जा रहा है, उस काफिले पर एक गोली भी नहीं चलेगी। अगर गोली चल गई तो नाटो की फौज गोली चलाने वाले देश को तबाह कर देगी।

भारत पाकिस्तान के बीच आदम का आवागमन कराने वाली समझौता एक्सप्रेस चली। एक बार समझौता एक्सप्रेस में बम विस्फोट भी हुआ। इसका परिचालन बंद-चालू होता रहता है। मालगाड़ियों का परिचालन बंद नहीं होता। 

पाकिस्तान का एक नमक बहुत प्रसिद्ध है। आवारा भीड़ को कहीं पाकिस्तान का नमक तो नहीं खिलाया जा रहा? बिरयानी बिना नमक के खाई थी? जनता ने पाँच किलो राशन के पैकेट में मिले नमक का कर्ज चुकाया। क्या पाकिस्तान के नमक का कर्ज भी चुकाना होगा? आवारा भीड़ की ‘सर्विस बुक’ को देखते हुए माना जा सकता है कि भीड़ नमकहरामी नहीं करेगी। नमक का कर्ज चुकाने के लिए देश को पाकिस्तान जैसा नहीं बनाएगी। उससे भी बदतर बनाएगी। पाकिस्तान हमसे आगे कैसे रह सकता है?



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