मारिबू पाछे डरिबु नाहि, जनम माटि छाड़िबु नाहि! POSCO से JSW तक ओडिशा के किसानों का संघर्ष

ढिंकिया की घटनाएं इस क्षेत्र से बाहर रहने वालों से एक बार फिर पूछ रही हैं कि क्या उपजाऊ कृषि भूमि को इस्पात उत्पादन उद्यमों द्वारा निगलने दिया जा सकता है? पूर्वी तटरेखा इक्‍कीसवीं सदी की पारिस्थितिकीय बर्बादी की गवाह बन रही है। अधिक मुनाफ़ा कमाने की नीयत से इस इलाक़े में जिंदल स्टील वर्क्स का प्रवेश पूंजीवाद के बेलगाम अभियान में अंतर्निहित पारिस्थितिक संकट की एक जीती-जागती मिसाल है।

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ओडिशा के ढिंकिया में ग्रामीणों पर हुए ज़ुल्म के खिलाफ संयुक्त वक्तव्य

मुख्यमंत्री की चुप्पी से यह स्पष्ट होता है कि निगमों की ओर से आतंक, हिंसा और धमकियों का इस्तेमाल करने में राज्य सरकार की कितनी मिलीभगत है। ढिंकिया छारीदेश की स्थिति ने एक बार फिर निरंकुश सत्ता के मजबूत हथकंडों द्वारा लोगों के संघर्ष से अर्जित किये गए लाभ को पीछे धकेलने को उजागर किया है।

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ढिंकिया के ग्रामीणों पर हुए हमले के खिलाफ NAPM और अन्य संगठनों का प्रतिवाद

ग्रामीणों ने तब पोस्को परियोजना का विरोध किया था और अपने जीवन और आजीविका के लिए एक दशक से लंबी लड़ाई लड़ी थी और अब वे फिर से क्षेत्र में JSW स्टील की प्रस्तावित परियोजना का विरोध कर रहे हैं क्योंकि पान, सुपारी, धान, काजू की खेती और मछली पकड़ने जैसे आजीविका पर उनका जीवन निर्भर है।

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