बनारस: चैरिटी अभियान ‘ऑक्सीजन फॉर इंडिया’ ने सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों को बांटे कन्संट्रेटर

ऑक्‍सीजन का संकट आज भी सरकारी चिकित्‍सा केंद्रों में कम नहीं हुआ है, बरकरार है। इस संकट से स्‍वयंसेवी संस्‍थाएं जिस तरह निपट रही हैं, वह अपने आप में एक मिसाल है और ऑक्‍सीजन से हुई मौतों पर सरकारी जवाब की पोल खोलने वाला है।

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पंचतत्व: बांधो न नाव इस ठाँव बंधु…

सिर्फ नोएडा की बात करें तो यहां पर ऑक्सीजन शून्य है। एक छदाम ऑक्सीजन नहीं बचता वहां। यूपीपीसीबी के आंकड़े कहते हैं कि ‘यमुना बगैर घुली ऑक्सीजन के नोएडा में घुसती और उच्च स्तर के प्रदूषण के साथ शहर से बाहर निकल जाती है।‘

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अवसाद की महामारी: पहले बीमारी का डर, बाद में इलाज के खर्च का दोतरफा तनाव

लोग यह सोच-सोच कर परेशान और अवसादग्रस्त हो रहे हैं कि अगर लाख सावधानी के बावजूद भी उनको कोविड-19 हो गया तो क्या समय पर उनके इलाज के लिए साधन उपलब्ध हो पाएंगे और क्या वह इससे निजात पा सकेंगे।

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रोज़ी बनाम ज़िंदगी की लड़ाई जैसे गैस चैम्बर और यातना शिविर में से किसी एक को चुनना!

ऑक्सिजन और अन्य जीवन-रक्षक चिकित्सकीय संसाधनों की उपलब्धता और उनके न्यायपूर्ण उपयोग को लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व के द्वारा जिस तरह से चेताया जा रहा है उससे तो यही लगता है कि हालात ऐसे ही अनियंत्रित होकर ख़राब होते रहे तो नागरिक एक ऐसी स्थिति में पहुँच सकते हैं जब उनसे पूछा जाने लगे कि वे ही तय करें कि परिवार में पहले किसे बचाए जाने की ज़्यादा ज़रूरत है।

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