बदलाव के कगार पर बिहार: चुनाव के मुद्दे व संबंधित संदर्भ

आज के चुनावी परिदृश्य में एक तरफ जहां सुशासन बाबू अपने ही बनाये ताने-बाने में उलझे, अटके, फंसे पड़े दिख रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ एक 31 साल का नौजवान नये जोश और उमंग से लबरेज पूरे वातावरण में ताजगी और बदलाव का समां बांध रहा है। एक से एक चुनावी रणकौशल के उस्ताद से लेकर तथाकथित चुनावी चाणक्य तक इस नौजवान की हुंकार के सामने बौने नज़र आ रहे हैं।

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चुनावीबिहार-9: अफ़वाह पर टिकी उम्मीद और ज़मीन पर गायब चुनाव

पहली अफवाह यह है कि भाजपा और नीतीश कुमार में कट्टिस हो चुकी है और दोनों एक-दूसरे के साथ भितरघात कर रहे हैं। दूसरी अफवाह ये है कि तेजस्वी 10 लाख नौकरियां दे रहे हैं, बेरोजगारी मुद्दा है और इसी बात पर तेजस्वी बंपर बहुमत से जीत कर आ रहे हैं।

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क्या लालू और उनकी पार्टी का राजनीतिक शुद्धिकरण कर रहे हैं तेजस्वी?

ऐसा पहली बार है जब बिहार के चुनाव में बात नौकरी और रोजी-रोटी की हो रही है और ये सब उस पार्टी से हो रही है जिसके सरकार पर बिहार में जंगलराज लाने का आरोप लगाया जाता रहा है. अचानक से चुनावी पोस्टर-बैनर और पर्चे से लालू का गायब हो जाना क्या सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है या फिर राजद में लालू युग का ‘द एंड’ हो गया है?

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नीतीश जी! आपको क्या हुआ है? आप किससे लड़ रहे हैं?

आखिर वह कर क्या रहे हैं? बोल क्या रहे हैं? किस के खिलाफ वह लड़ रहे हैं? किस के पक्ष में वह लड़ रहे हैं? उन्हें आगे करके उनके चमचों को बिहार लूटना है. उन्हें गलत जानकारियां दी जा रही हैं. जिस चौकड़ी से नीतीश घिरे हैं, वह भ्रष्ट तो है लेकिन बहुत चालाक है. इनसे यदि वह बाहर नहीं आए तो यह उनका और बिहार का दुर्भाग्य होगा.

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उनके पेट में दांत है, लेकिन वे खुद चक्रव्यूह के भीतर हैं!

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जो कि पिछले 15 सालों से बिहार के सत्ता पर काबिज है और जिसका नेतृत्व सुशासन बाबू फेम “नीतीश कुमार” सफलतापूर्वक करते आए हैं, इस बार अपने भीतर ही एक चक्रव्यूह रचे हुए है। इसका मूल मक़सद नीतीश जी को निपटा देना है।

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ये जनसैलाब कुछ कहता है…

इस बार मीडिया संदेहास्पद स्थिति में है। भाजपा नेताओं की चुनावी रैलियों को तो मीडिया तवज्जो दे रहा है मगर तेजस्वी की रैलियों को ऐसे दरकिनार कर दे रहा है जैसे उसे कवर नहीं करना चाहता।

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एक शासक को काम करने के लिए आखिर कितने वर्ष चाहिए?

यह स्थिति केवल बिहार में नहीं है, लगभग पूरी दुनिया में है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को अभी और काम करना है। रूस में पुतिन दशकों से बने हैं और अभी हटना नहीं चाहते। चीन में शी जिनपिंग ने आजीवन गद्दी पर बने रहने का अधिकार एक ही बार में हासिल कर लिया है। ये सब थोड़े से उदाहरण हैं।

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आधे घंटे की प्रेस वार्ता में 14 बार नीतीश कुमार का नाम! ये ‘राष्ट्रऋषि’ का प्रेम है या…?

कहा जाता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका। यदि गठबंधन इतना ही फेविकोल के जोड़ टाइप अटूट था, तो उसे इतनी बार सफाई देने की क्या जरूरत थी?

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क्या साढ़े तीन महीने में बिहार के हर घर तक नल से पानी पहुंचा पाएंगे नीतीश कुमार?

अब भी बिहार के ऐसे 16 ज़िले हैं जहां पानी की उपलब्धता का आंकड़ा 50 प्रतिशत से नीचे है। इनमें 6 ज़िले ऐसे हैं जहां ये आंकड़ा 40 प्रतिशत से नीचे है। चार ज़िले ऐसे हैं जहां ये आंकड़ा 30 प्रतिशत से नीचे है।

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