‘अमरत्व का स्थान प्राप्त करने में लता को कितनी ठोकरें खानी पड़ीं यह सब था इन अंखियन आगे…’
जैसे ही मैं कमरे में दाखिल हुआ वह पुनः खिलखिलाकर हंस पड़ी और नाखून होठ से लगाकर चुप हो गयी। मैं कुछ प्यार से, उपालंभ के स्वर में यह कहता हुआ बाहर आ गया कि ऊपर तो तुम लजाकर भाग गयी थी। कहने पर भी वह गीत नहीं तुमने सुनाया और यहां गा भी रही हो, नाच भी रही हो। वह लड़की वहां से भी खिलखिलाकर हंसती हुई दूसरी तरफ निकल गयी।
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