दिल्ली : ख़्वाजा अहमद अब्बास के एक ख़त के बहाने, जवाहर भवन में गूंजे आज़ादी के तराने

उल्लेखनीय है कि इप्टा की इंदौर इकाई की प्रस्तुति इसके पहले 1950 के दशक में दिल्ली में हुई थी जिसमें तब के युवा इप्टा कलाकार नरहरि पटेल, प्रोफ़ेसर मिश्रराज आदि शामिल हुए थे। इस बार नाटक का आकल्पन जया मेहता ने किया और इसकी पटकथा प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव, कवि, पत्रकार और रंगकर्मी विनीत तिवारी लिखी। सुप्रसिद्ध अभिनेत्री और निर्देशक फ्लोरा बोस के कुशल के निर्देशन में इंदौर इप्टा के रंगकर्मियों ने अपने सहज सजीव अभिनय से इस नाटक को यादगार बना दिया।

Read More

देशभक्ति का शासनादेश और एम्मा गोल्डमैन से निकलते कुछ सबक

जैसे पावस ऋतु में दादुर बोल रहे हैं और कोयल चुप्पी मारे किसी पेड़ पर इनके शोर से अपनी मिठास को बचाते हुए लुकी-छुपी बैठी हो। हमें दादुरों का शोर सुनने की आदत हो चुकी है। हम अब दादुरों के कोलाहल में संगीत की स्वर लहरियां खोज चुके हैं। हम राग-रागि‍नियों में मस्त हैं। इनकी धुन पर नाचते-झूमते हम एक-दूसरे को देशभक्ति का सर्टिफिकेट बाँट रहे हैं।

Read More

चंबल का भुला दिया गया क्रांतिकारी दादा शंभूनाथ आजाद

आजाद भारत का निजाम भी दादा शंभूनाथ को रास नहीं आया। ब्रिटिश सत्ता से लड़ते हुए जो शोषणविहीन समाज बनाने का सपना बुना था जनक्रांति के उस सपने को पूरा करने के लिए ताऊम्र शिद्दत से जुटे रहे। अविवाहित रहते हुए उन्होंने अपने जैसे क्रांतिधर्मी साथियों की याद में अपने कचौरा घाट स्थित घर को स्मारक बना दिया। बेहद गरीबी की हालत में 76 वर्ष की अवस्था में 12 अगस्त 1985 में यह महान क्रांतिकारी रात दस बजे गहरी नींद में सो गया।

Read More

उनकी तुरबत पर नहीं है एक भी दीया, जिनके खूँ से जलते हैं ये चिरागे वतन…

सम्भवतः देश को स्वतंत्रता यदि सशस्त्र क्रांति के द्वारा मिली होती तो भारत का विभाजन नहीं हुआ होता, क्योंकि सत्ता उन हाथों में न आई होती, जिनके कारण देश में अनेक भीषण समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। जिन शहीदों के प्रयत्नों व त्याग से हमें स्वतंत्रता मिली, उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। अनेक को स्वतंत्रता के बाद भी गुमनामी का अपमानजनक जीवन जीना पड़ा।

Read More

कोरोना के लड़ के जनता की इम्यूनिटी बढ़ चुकी है, PM लाल किले से क्या बात करेंगे?

सत्तारूढ़ दल के लिए विपक्षी दलों के साथ-साथ जनता की भूमिका को भी संदेह की नज़रों से देखने की ज़रूरत का आ पड़ना इस बात का संकेत है कि वह अब अपने मतदाताओं को भी अपना विपक्ष मानने लगा है।

Read More

अब जनता खुद खांड़ा खड़काए!

यह सही है कि हम दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं लेकिन यह मोर का नाच है क्योंकि 1 प्रतिशत सेठों के हाथ में देश की 60 प्रतिशत संपदा है।

Read More