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इन महिलाओं के बिना पुरुषों तक ही सीमित रह जाती मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा
बिना महिलाओं के योगदान एवं हस्तक्षेप के मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा सर्वसमावेशी नहीं बन पाती बल्कि इसके एकांगी होकर पुरुषों के अधिकारों की सार्वभौम घोषणा बन जाने का खतरा था।
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