दक्षिणावर्त: जिसकी जितनी लहान, उसकी वैसी ज़बान!

पत्रकारिता और चुनौती- ये दो शब्द एक साथ सुनते ही कुछ हुड़कहुल्लू फासीवाद, मोदी, भगवा आतंक, आपातकाल इत्यादि का जाप करने लगते हैं, जैसे उन्हें दौरा पड़ गया हो। जरूरत उन असली चुनौतियों पर बात करने की है जो न्यूजरूम के अंदर और बाहर, किसी मीडिया कंपनी के कारिंदे के तौर पर या स्वतंत्र पत्रकार होने के नाते, युवा तुर्क और अनुभवी धैर्यवान पत्रकारों को झेलना पड़ता है।

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