राग दरबारी: संपादक से सभापति के बीच ठाकुर हरिवंश नारायण सिंह के करतब

क्या सचमुच वे सारे के सारे बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता इतने भोले थे/हैं कि उन्हें संपादक हरिवंश की कमी नजर नहीं आयी? और तो और, जब उन्हें नीतीश कुमार ने राज्यसभा में मनोनीत किया तब भी इन समझदार लोगों को समझ में नहीं आया कि हरिवंश कितने शातिर खिलाड़ी रहे हैं?

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20/9/20: “अख़बार नहीं, आंदोलन” करने वाले एक संपादक की मौत का दिन

आज जब कृषि विधेयक पर ध्वनि मत से मतदान हो रहा था तो हरिवंश जी की निगाहें बिल के पन्ने पर थींं। आज एक जो अजब सी बात हुई वह यह थी कि मतदान कराते वक्त उन्होंने सदन की ओर आँख उठाकर नहीं देखा कि किसने बिल के समर्थन में हाँ कहा और किसने नहीं?

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