अनुभव, कल्पना और न्याय: एक समतापूर्ण समाज के निर्माण पर औपनिवेशिक छायाएं

समाज की नेतृत्वकारी भूमिकाओं और शक्ति-संरचना को नियंत्रित करने वाले दायरों में जब नए समूह जैसे दस्तकार, अछूत, महिलाएँ, छोटे किसान और श्रमिक शामिल हुए तो उन्होंने उस दुनिया पर सवाल उठाए जिसके बारे में कहा जा रहा था, इसे बदला नहीं जा सकता। उन्होंने ईश्वर के द्वारा बनायी गयी दुनिया और उसकी व्याख्या में अपने अनुभवों के वृत्तांतों से धक्का मार दिया।

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कलंकित अतीत और धुँधला भविष्य: न्याय की तलाश में विमुक्त जन

इन समुदायों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानिए। वे सब आपके भाई-बहन हैं, उनसे प्यार कीजिए। उनकी सहायता कीजिए। उनको हर तरह का न्याय मिले, इसमें मदद दीजिए।

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पूंजी-विस्तार और संसाधनों की लूट के बीच हाशिये की औरतों की जिंदगी, श्रम और प्रतिरोध

जाति, जातीयता, वर्ग के पदानुक्रम और राज्‍य के प्रभुत्‍व सहित कलंकीकरण के सभी औज़ारों के साथ मिलकर पितृसत्‍ता औरतों के श्रम का शोषण करती है, उनकी आवाजाही व मेहनत पर नियंत्रण कायम करती है। नतीजतन, साधनों-संसाधनों तक उनकी पहुंच को और कम कर देती है।

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A Rabari Woman

लोकतंत्र में हिस्सेदारी और आज़ादी के अनुभव: घुमंतू और विमुक्त जन का संदर्भ

पिछले 12 अक्टूबर 2020 को भारत भर के घुमंतू एवं विमुक्त समुदाय के बुद्धिजीवियों, नेताओं और शोधकर्ताओं ने 1871 के ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ की 150वीं वर्षगाँठ मनाने का निर्णय लिया है। यह भारतीय इतिहास का कोई गौरवशाली क्षण नहीं है बल्कि यह अन्याय और हिंसा की राज्य नियंत्रित परियोजनाओं का सामूहिक प्रत्याख्यान है।

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