जब देश संविधान दिवस मनाने में व्यस्त था, एक दलित की हत्या कर दी गई…

कल ही भारत में संविधान दिवस मनाया गया। लोग अखबारों में लेख लिख रहे थे- हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में। भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के प्रमुख संविधान की प्रति अपनी चुनावी रैलियों में लहराते हुए बताते हैं कि देश का संविधान खतरे में है! प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों में बड़े ही नाटकीय अंदाज में कहते हैं कि “मैं बाबा साहब के संविधान को आंच नहीं आने दूंगा।”

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जातिगत भेदभाव का शिकार जेलों में पिसते दलित और पिछड़े वर्ग के कैदी

जिन मामलों में गिरफ्तारी किये बिना छानबीन पूरी हो सकती हो वहां आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए। वर्ष 2000 में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों में भी यही हिदायत दी गयी थी।

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बाबासाहब के नाम पर स्मारक बना देने से दलितों की हालत सुधर जाएगी?

क्या यह स्मारक वाकई चुनाव से पहले दलितों को लुभाने का कोई चारा है या फिर भाजपा सरकार में दलितों की स्थिति सुधरी है? दलितों के खिलाफ होने वाले जुल्म तो कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।

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मऊ: डेढ़ साल पहले दलित प्रधान को मारा, अब भतीजे की हत्या, बहन ने लगाया सियासी संरक्षण का आरोप

राहुल सिंह ने करीब डेढ़ साल पहले अरविंद के चाचा व ग्राम प्रधान मुन्ना राम की हत्या कर दी थी, लेकिन राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने के कारण राहुल सिंह की गिरफ्तारी तक नहीं हुई थी।

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साइड के लिए गाड़ी का हॉर्न बजाने पर सामंतों ने दलित मजदूर की बेरहमी से की पिटाई

गांव वालों ने बताया कि दबंगों की दबंगई अभी भी जारी है. सुबह से लेकर शाम तक मोटरसाइकिल से राउंड कर रहे हैं. आते-जाते गालियां दे रहे हैं, जान से मारने की धमकी दे रहे हैं. पूरा गांव न्याय की मांग कर रहा है.

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हाथरस कांड के आगे और पीछे सिर्फ और सिर्फ जाति का खेल है, और कुछ नहीं!

हाथरस की घटना दलितों पर होने वाले अत्याचार का आईना मात्र है, लेकिन यह घटना सामूहिक बलात्कार की अन्य घटनाओं से भी आगे बढ़कर है जहां पीड़िता की जीभ को काट दिया गया, रीढ़ की हड्डी को तोड़ दिया गया तथा सामूहिक बलात्कार ने उस लड़की के आत्मसम्मान, स्वाभिमान और मानव गरिमा को धूमिल कर दिया। जहां तक सामाजिक न्याय, सम्मान, विश्वास का सवाल है वह प्रत्येक दिन दलितों के साथ उड़ जाता है।

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