COP-26: बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को कमज़ोर देशों के समर्थन में अपने पत्ते खेलने की ज़रूरत

? फिलहाल, सभी प्रमुख देश इस बात पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि बुरे नतीजों के लिए दोषारोपण किसी पर न हो, हालांकि उनकी ऊर्जा अच्छे परिणाम सुनिश्चित करने पर होनी चाहिए- एक ऐसा परिणाम जो किसी भी स्तर पर सभी के लिए स्वीकार्य हो।

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गरीब मुल्कों की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता हो कम, ये चाहते हैं हम: G7 देशों के नागरिक

सभी सात देशों की जनता चाहती है कि उनकी सरकार 2010 में संयुक्त राष्ट्र में किए गए वादों पर कायम रहे, जिसमें सालाना 100 अरब डॉलर का क्लाइमेट फाइनेंस मुहैया कराने का वादा किया गया था।

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G7 देशों की जलवायु वित्त प्रतिज्ञाओं के मामले में वादाखिलाफ़ी बदस्तूर जारी

CARE संस्था ने पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों द्वारा पेश की गयी नवीनतम आधिकारिक वित्त योजनाओं का विश्लेषण किया है और पाया है कि G7 और अन्य धनी देशों के कमज़ोर देशों के लिए समर्थन के ज़बानी वादों के बावजूद, सभी 24 मूल्यांकन किये गये डोनर्स द्वारा प्रस्तुत की गयी वास्तविक जानकारी मांगी गयी से बहुत कम है और कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि अमीर देश अपनी जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं को पूरा करेंगे।

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