दक्षिणावर्त: दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख…

टीवी सीरीज में या पूरे समाज में जो हो रहा है, वह एक-दूसरे का पूरक है या प्रतिबिंब? यदि प्रतिबिंब है तो जो बेचैनी, जो क्रांति न्यूज-चैनल्स को देख कर महसूस होती है, वह मोटे तौर पर समाज में अनुपस्थित क्यों है, जो समस्याएं या टकराव बहुमत वाले समाज में हैं, वह टीवी या सिनेमा से अनुपस्थित क्यों है?

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