निजी अनुभव से सामूहिक मुक्ति तक: बनारस के दलितों पर लियोनार्डो वेर्जारो की एथनोग्राफी

लियोनार्डो का वाराणसी के दलितों पर काम एक चमकदार उदाहरण है कि मानवविज्ञान की जड़ें यदि निजी करुणा और सामूहिक कार्रवाई में हों तो वह कहीं ज्‍यादा न्‍यायपूर्ण और करुणामय जगत की राह रोशन कर सकता है। लियोनार्डो का बनारस में किया फील्डवर्क पूरी दुनिया के लिए निजी और सार्वजनिक के बीच संबंध को समझने का एक दस्‍तावेज है।

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सभी धर्मों का उद्देश्य विश्व मानवता का कल्याण एवं आशा का संदेश देना है: लियोपोस्दो जिरोली

प्रो. रमेशचंद्र नेगी (केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षण संस्थान सारनाथ), भाई धर्मवीर सिंह (ग्रंथी गुरुद्वारा), प्रो. सुमन जैन बी.एच.यू. , डॉक्टर सुनीता चंद्रा (कुलसचिव, तिब्बती संस्थान सारनाथ), स्वामी विश्वआत्मानंद (अद्वैत आश्रम ), मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी (मुफ्ती– ए –बनारस), प्रो. विशंभरनाथ मिश्र (महंत संकटमोचन), आदि ने अपने विचारों द्वारा इस कार्यक्रम की सार्थकता और उद्देश्य पर विस्तार से प्रकाश डाला।

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रूस के राष्ट्रपति पुतिन को युद्ध के खिलाफ बनारस से एक खुला पत्र

1987 में आयी एक पुस्‍तक ‘गांधी ऑन वॉर एंड पीस’ में लेखक कहते हैं कि ‘’गांधी की दृष्टि में जंग समकालीन जगत की सबसे महत्‍वपूर्ण समस्‍या है।‘’ गांधी ‘’सही’’ और ‘’गलत’’ युद्ध के बीच भेद नहीं करते थे- उनकी नजर में हर जंग खराब और अन्‍यायपूर्ण थी। उनका दृढ़ मत था कि ‘’कुछ भी स्‍थायी हासिल करने के लिए युद्ध नैतिक रूप से वैध साधन नहीं हो सकता।‘’

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बात बोलेगी: जेहि ‘विधि’ राखे राम ताहि ‘विधि’…

जब विधि का बल परास्त होता दिख रहा है तो वह करार भी टूटता नज़र आ रहा है जो सभी तरह के बलधारकों और निर्बलों को एक सफ़ में खड़ा करता था। विधि के बल के रीतने से हमारे बीच का नागरिक रीत रहा है; नागरिक समाज के बीच का करार रीत रहा है; और ये सब रीतने से हमारे बीच का मनुष्य रीत रहा है।

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7 मार्च, 2022: विकास के ‘काशी मॉडल’ के खिलाफ बनारसी अस्मिता और पहचान के इम्तिहान का दिन!

धरोहर बचाने की लड़ाई में शामिल कुछ रणनीतिकार शहीद हो गए। इसमें पक्काप्पा के योद्धा पंडित केदारनाथ व्यास, जर्मनी की साध्वी गीता व मुन्ना मारवाड़ी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। कुछ लोग विस्थापन के सदमे व दर्द को झेल नहीं सके और उनकी हृदयगति थम गई।

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अन्याय और असमानता के खिलाफ बहुलतावादी संस्कृति के 10 वैश्विक पहरेदारों में काशी के डॉ. लेनिन

ग्लोबल सेंटर फॉर प्लुरलिज़्म को 2021 ग्लोबल प्लुरलिज़्म अवार्ड के लिए 70 देशों से 500 नामांकन प्राप्त हुए थे। नामांकित व्यक्ति कठोर समीक्षा प्रक्रिया से गुजरते हैं और बहुलवाद से संबंधित अनुशासनों की स्वतंत्र विशेषज्ञों की अंतरराष्ट्रीय जूरी द्वारा चुने जाते हैं।

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काशी की सियासी तारीख के अहम किरदार और कम्युनिस्टों के गुरु कामरेड विशु दा

बनारस ही नहीं बल्कि वामपंथी दुनिया में उन्हें वैचारिकी का स्रोत समझा जाता था। एस.ए. डांगे, मोहित सेन, भूपेश गुप्त, इन्द्रजीत गुप्त, बी.डी.जोशी आदि के साथ पार्टी को मजबूत करने तथा जनांदोलनों की दशा और दिशा तय करने में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन अधिकारी तो कामरेड विश्वेश्वर मुखर्जी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

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विसर्ग के अनैतिक संसर्ग में फंसे बनारस के बहाने हिन्दी के कुछ सबक

किसी भी भाषा का मूल तो स्वर यानी ध्वनि ही है। हिंदी में यह अधिक है, तो यह उसकी शक्ति है, लेकिन इसे ही यह हटा रहे हैं। कई भाषाओं में कम ध्वनियां हैं तो उन्हें आयातित करना पड़ा है और यह बात अकादमिक स्तरों पर भी मानी गयी है। कामताप्रसाद गुरु ने भी अपनी किताब ‘हिंदी व्याकरण’ में इसी बात पर मुहर लगायी है कि हिंदी मूलत: ध्वनि का ही विज्ञान है।

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बनारस: PM मोदी के गोदी गाँव में भुखमरी के कगार पर खड़े बुनकरों का भड़का आक्रोश

कांग्रेस महासचिव प्रियांका गांधी वाड्रा ने यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को बुनकरों की समस्याओं को लेकर पत्र लिखा है. पत्र में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बुनकरों को फ्लैट रेट पर बिजली देने की योजना को पुनः बहाल करने की मांग को प्रमुखता के साथ उठाया है.

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स्मृतिशेष: मुन्ना मारवाड़ी चले गए, काशी अब ‘बाकी’ नहीं है

यह विस्‍थापन सामान्‍य नहीं था। मुन्‍ना मारवाड़ी का पूरा अस्तित्‍व ही विस्‍थापित हो चुका था। मुन्‍नाजी को अब अदालत से भी कोई उम्‍मीद नहीं रह गयी थी। वे बस बोल रहे थे, बिना कुछ खास महसूस किए। मैं उनकी आंखों में देख रहा था, बिना कुछ खास सुने।

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