गाहे-बगाहे: ‘लोग’ मुंह में ज़बान रखते हैं, काश पूछो कि…
मुझको यह देखकर हैरानी हुई कि अपने भीतर क्रूरता की हद तक देशभक्ति का जज्बा भरे जाने के बावजूद सिपाही अपने अफसरों के सामने एकदम दब्बू और कुंदज़ेहन बने रहते हैं। उन्हें डिसमिस और दण्डित होने का भीषण भय सताता रहता है। और इस प्रकार वे अपने लिए एक सतत झूठ का ताना-बाना बुनते रहते हैं।
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