शोपीस बन गए उज्‍ज्‍वला के सिलिंडर, लॉकडाउन में 31 लाख महिलाओं को नहीं मिला पैसा


केंद्र सरकार ने मार्च के आखिरी सप्ताह में 1.7 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी, जिसमें लॉकडाउन के कारण पैदा हुए आर्थिक संकट से गरीब लोगों को उबारने के उद्देश्य से किया गया था. इसके तहत अप्रैल से जून तक उज्ज्वला योजना की लाभार्थी महिलाओं को मुफ्त सिलेंडर देने की भी घोषणा की गयी थी. इस योजना के तहत लगभग 7.5 करोड़ महिलाओं के खाते में 9,670 करोड़ रुपये की राशि हस्तांतरित की गयी लेकिन 76.47 लाख महिलाओं के खाते में कोई राशि हस्तांतरित नहीं की जा सकी.

अब सरकार कह रही है कि इनमें से 31 लाख महिलाओं को खाते में समस्या के कारण सरकारी मदद नहीं मिल सकी. सवाल ये है कि खाते ​की दिक्कत कोरोना काल में ही सामने कैसे आयी? क्योंकि इसके पहले उनके खातों में सब्सिडी की राशि तो पहुंचायी गयी थी.

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के 31 लाख लाभार्थी खाते में धनराशि हस्‍तांतरित नहीं हो सकी क्योंकि खाता आधार से लिंक नहीं था या केवाईसी अपडेट नहीं होने के कारण खाता बंद या निष्क्रिय था.

जानकारी के अनुसार हिंदुस्तान पेट्रोलियम की तरफ से 72.96 लाख (अप्रैल से जून) के खाते में भेजी गयी राशि लाभार्थियों को मिली है. इसके अलावा, इंडियन ऑयल की ओर से 2,58,746 लेनदेन (1 अप्रैल से 29 जुलाई) विफल रहे हैं जबकि भारत पेट्रोलियम के 92,331 लेनदेन (1 अप्रैल से 8 अगस्त) विफल रहे हैं.

विषय की गंभीरता और जनधन खाताधारकों की परेशानियों के देखते हुए मोबाइलवाणी ने गरीब परिवारों के दर्द और योजनाओं के लाभ से वंचित परिवारों की मूल समस्याओं को समझने का प्रयास किया.

किसी जंग से कम नहीं सिलेंडर पाना

धनवती देवी जिनकी उम्र 80 के पार है, उन्‍हें वृद्धा पेंशन मिला लेकिन उसी खाते में आज तक उज्‍जवला की रकम नहीं आयी है

बिहार के जमुई जिले के मिर्चा गांव से मुन्ना पाठक बताते हैं कि कुछ साल पहले अपनी मां के नाम से उन्‍होंने उज्‍ज्‍वला योजना के लिए पंजीयन करवाया था. मुन्ना कहते हैं सारे जरूरी दस्तावेज जमा करवाये थे पर सिलेंडर नहीं मिला. अब मां भी गुजर गयीं, परिवार में कोई और महिला नहीं है इसलिए सिलेंडर मिलने की उम्मीद ही खत्म हो गयी.

वे कहते हैं, ‘’पहले मां चूल्हा फूंक रही थी, अब मैं फूंक रहा हूं’’.

गाजीपुर के जलालाबाद के बिशुनपुरा निवासी सत्यदेव राजभर कहते हैं कि योजना का लाभ पाने के लिए बहुत मुश्किल से सारे कागज उन्‍होंने जमा किये थे. बहुत कोशिशों के बाद पात्रता सूची में नाम आया पर सिलेंडर आज तक नहीं मिला. क्यों नहीं मिला इसका जवाब न तो एजेंसी वाले देते हैं न कहीं और से कुछ पता चलता है. सत्यदेव पूछते हैं कि अगर योजनाएं ऐसी ही हैं तो फिर उन्हें बनाने की जरूरत ही क्या है? गरीब आदमी तो चूल्हा ही फूंक रहा है.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की साल 2018 की रिपोर्ट की मानें तो इस योजना के लाभार्थियों तक सुविधा पहुंची ही नहीं है. सरकार ने 8 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को एक साथ नि:शुल्क गैस कनेक्शन बांटे थे. लेकिन रिपोर्ट में दावा किया गया है कि करीब 43 प्रतिशत लाभा​र्थी महिलाएं ऐसी रहीं जो केवल एक बार गैस सिलेंडर का इस्तेमाल कर सकीं और फिर चूल्हे पर लौट आयीं. डाटा बताता है कि पिछले चार साल में प्रधानमंत्री उज्‍ज्‍वला योजना कनेक्शन ने ग्रामीण भारत में कुल एलपीजी कनेक्शनों में 71 फीसदी की बढोतरी की है, हालांकि यह हकीकत सरकारी कागजों पर दर्ज हुई है. एनएसओ के सर्वे में बताया गया है कि योजना के 43 प्रतिशत लाभार्थी चूल्हे पर ही खाना बना रहे हैं. ऐसा क्यों हो रहा है, इसका जवाब मोबाइलवाणी पर आयीं प्रतिक्रियाओं से मिल जाएगा.

जमुई के चकाई प्रखंड के रहने वाले परमेश्वर कहते हैं, ‘’ मेरा नाम योजना की पात्रता सूची में है पर सिलेंडर नहीं मिला. जब पता करने गये तो एजेंसी वालों ने कहा कि मेरे नाम का सिलेंडर किसी और को दे दिया गया है. जब पूछा कि ऐसा क्यों किया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था. न तो हमारी शिकायत कोई दर्ज करता है न ही मदद. सरकार को लग रहा होगा कि गरीबों को सिलेंडर मिल रहा है, पर हकीकत में तो ऐसा नहीं है’’.

बिचौलियों का खेल भी है जारी

गाजीपुर जनपद के जखनियां ब्लॉक के रायपुर की मीरा बताती हैं कि दो साल पहले एक बिचौलिये को सारे कागज और फार्म भरकर उन्‍होंने दिये थे. वो बोला था कि कनेक्शन दिलवा देगा पर ऐसा हुआ नहीं. एजेंसी में पता किया तो बोलते हैं कि कनेक्शन तो मिल चुका है और सिलेंडर भी जा रहा है, पर कहां जा रहा है पता नहीं. रायपुर में मीरा जैसी और भी कई महिलाएं हैं जो इन्हीं बिचौलियों के चक्कर में योजना से वंचित रह गयीं.

गांव की ही अंजना कहती हैं, ‘’हम तो पढ़े-लिखे हैं नहीं, गांव का ही एक आदमी हमसे बोला था कि ​फ्री में गैस सिलेंडर दिलवाएगा. हमने उसे सब कागज दे दिये थे पर सिलेंडर नहीं मिला. अब तो दो साल हो गये. जिससे काम करवाया था वो आदमी भी मर गया. एजेंसी वाले कहते हैं उसी को साथ लाओ जिसने कनेक्शन दिलवाने का कहा था. अब कहां से लाएं उसे’’?

ज्यादातर गांवों में यही स्थिति है. गांव की महिलाएं योजना के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखती थीं. फार्म भरना उनके बस में नहीं था जिसका फायदा एजेंसी संचालकों और बिचौलियों ने खूब उठाया. एजेंसी के चक्कर लगाना, बिचौलियों से बहस करना गरीब परिवारों के बस की बात नहीं. इस पर से कंडे और लकड़ी सुलभता से मिल भी जाते हैं, इसलिए लोग वापिस पारंपरिक चूल्हों का रुख करने लगे हैं.

झारखंड के पेटरवार की गो पंचायत में गैस एजेंसी संचालक गैस सिलेंडर की आपूर्ति नहीं कर रहे हैं जिसके कारण उज्‍ज्‍वला योजना के लाभार्थियों को सिलेंडर नहीं मिल पा रहे हैं. एजेंसी जाने पर उन्हें बताया जाता है कि सिलेंडर पहले ही भिजवाया जा चुका है. कुलगो डुमरी गैस एजेंसी की तरफ से उज्‍ज्‍वला योजना के करीब 200 लाभार्थियों को सिलेंडर दिया जाना है पर ये सिर्फ कागजों पर चल रहा है. गैस सिलेंडर एक बार देने के बाद एजेंसी वाले महीनों तक शक्ल नहीं दिखाते, सिलेंडर रिफिल नहीं होते और मजबूर होकर घरों में फिर से चूल्हा जलने लगता है जबकि सरकारी दस्तावेजों में इन परिवारों को समय पर गैस आपूर्ति हो रही है.

झारखंड के हजारीबाग के टाटीझरिया से भी ग्रामीण यही शिकायत कर रहे हैं. गैस एजेंसी का नाम भी कुलगो गैस एजेंसी बताया जा रहा है. गांव की जासो देवी, जेमनी देवी, ललिता देवी, हेमंती देवी समेत दर्जनों परिवारों की महिलाएं एजेंसी के चक्कर काट-काट कर परेशान हैं.

इसी  क्रम में जब मोबाइलवाणी की टीम ने बिहार के नालंदा जिले के चंडी प्रखंड की कुछ महिलाओं से बात की तो एक अलग ही समस्‍या सामने आयी. इन महिलाओं का कहना था कि उन्होंने गैस का सिलेंडर जब लिया था तब पैसा नहीं लगा था लेकिन उसे भरवाने जाने और वापस आने के लिए टैम्पू लेना पड़ता है जिसका किराया दोनों तरफ का 200 रुपया लगता है. इसके अलावा 800 के करीब गैस का पैसा पहले जमा करना होता है यानी 1000 का गैस सिलेंडर. कहाँ से लाएं इतना पैसा? इसलिए गैस भरवाना ही छोड़ दिया है, अब लकड़ी ही भोजन बनाने का सहारा है.

कोरोनाकाल में टूट गयी कमर

मोबाइलवाणी पर अपनी शिकायत दर्ज कराती महिलाएं

इस योजना का दम पहले से ही घुट रहा था पर कोरोना काल में इसकी हालत बद से बदतर हो गयी. जिन कुछ लाभार्थियों को उम्मीद थी कि खाते में सिलेंडर की राशि पहुंच जाएगी वे अब तक इंतजार ही कर रहे हैं.

जमुई के चकाई से मुन्ना कहते हैं कि अप्रैल-मई की किस्त आ चुकी है पर जून से लेकर अब तक गैस सिलेंडर के बदले मिलने वाली राशि खाते में नहीं आयी है. आसपास के गांव में भी लोगों के खाते खाली हैं. अब ऐसे में उनके सामने सवाल है कि सिलेंडर रिफिल कैसे करें? गांव के लोग पहले ही लॉकडाउन के चक्कर में बेरोजगार हो गये हैं. मनरेगा में काम की तलाश करो, सरकारी राशन पाने के लिए डीलर के यहां चक्कर काटो और फिर अगर मुश्किल से कुछ मिल जाए तो उसे पकाने के लिए कंडों और लकडी का इंतजाम करो.

इसी क्षेत्र में गीता देवी हैं, जिनके पति बताते हैं कि सिलेंडर उनकी पत्नी के नाम पर है. वे बताते हैं, ‘’हमने पिछली राशि मिलने पर सिलेंडर रिफिल करवाया था. सब कुछ नियमानुसार हुआ, इसके बाद भी हमें अगले माह की सिलेंडर रिफिल राशि नहीं मिली’’.

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के ग्राम बहोरा से मीरा देवी बताती हैं कि सरकार ने नि:शुल्क राशन देने की बात कही थी पर बीपीएल कार्ड होने के बाद भी राशन दुकानदार ने हमें राशन नहीं दिया. कुछ दिन मजदूरी करके अनाज जमा किया था, सोचा था उज्‍ज्‍वला योजना के सिलेंडर की राशि खाते में आएगी तो गैस भर लेंगे पर वो पैसा भी नहीं आया.

भारत में तक़रीबन 50 करोड़ लोग आज भी पारंपरिक चूल्हों पर खाना बनाते हैं. जो शहरी लोग गैस पर खाना पकाकर खाने के आदी हैं उनके लिए तो चूल्हे पर पके खाने का स्वाद हमेशा ही पहली पसंद होती है, इसी‍लिए कई कंपनियों ने ग्रामीण टूरिज्म के अपने पैकेज में चूल्हे पर पके व्यंजन को भी डाल दिया है. सवाल यह है कि जो फेफड़े इन चूल्हों की आग में जल गये हैं उनका क्या? विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल तक़रीबन 15 लाख लोगों की मौत होने का अंदेशा जताया था.  घरेलू प्रदूषण और मौत के आंकड़े को देखते हुए ही केंद्र सरकार की अतिमहत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री उज्‍ज्‍वला योजना अस्तित्‍व में आयी.

केंद्र सरकार ने रसोई गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए 1 मई, 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले से इस योजना की शुरुआत की. जिसके तहत बीपीएल परिवार की महिला जिसके पास गैस कनेक्शन नहीं है वह नि:शुल्क गैस सिलेंडर पाने की हकदार बनी. आपको सभी पेट्रोल पंपों पर इस योजना की जानकारी देते बड़े-बड़े होर्डिंग्स दिख जाएंगे जिन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फोटो होती है. सरकार ने ज़्यादा से ज़्यादा कनेक्शन बांटने का दावा किया है, लेकिन इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि जिन महिलाओं को मुफ़्त गैस कनेक्शन दिये गये थे क्या वे दोबारा सिलेंडर में गैस भरवा पायीं या नहीं?

शिकायत किससे करें?

इस योजना का लाभ पाने के लिए आज भी कई गरीब परिवार काम-धंधा छोड़कर एजेंसी के बाहर लाइन लगाये अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. जिन्हें सूची में जगह मिल गयी है उनके नाम पर धोखाधड़ी हो रही है. कोरोनाकाल में तालाबंदी की वजह से जहां गरीबों ने अपनी आजीविका का साधन गंवाया, वहीं प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के नाम पर पहले 3 महीने यानी अप्रैल, मई और जून के लिए केंद्र सरकार की ओर से सभी उज्‍ज्‍वला योजना का लाभ उठा रहे परिवारों के खाते में गैस की रकम डालने का एलान हुआ और ऐसा माना गया कि सभी उज्‍ज्‍वलाधारकों ने तो अपना बैंक अकाउंट यानी जनधन खता पहले से ही दे रखा है इसलिए उनके खाते में आसानी से गैस की रकम पहुंचा दी जाएगी और इस पैसे का इस्तेमाल केवल गैस खरीदने के लिए ही परिवार इस्तेमाल करेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

मोबाइलवाणी की ओर से द्वारा संस्था के सहयोग से शोध अध्ययन के दौरान मुंगेर, जमुई और गाजीपुर की दर्जनों महिलाओं से उज्‍ज्‍वला योजना का लाभ न मिलने की समस्या पर जब बात की गयी तो पाया गया कि ग्रामीणों के पास सुलभ माध्यम से शिकायत दर्ज करने की व्यवस्था नहीं है. ऐसे मेंअगर गैस एजेंसी धांधली करती है तो इसकी शिकायत कहाँ करें? दूसरी और ज्‍यादातर गैस एजेंसियां स्थानीय बाहुबली, प्रखंड प्रमुख, विधायक और मुखिया जी के परिवार के सदस्य चलाते हैं जिनके खिलाफ शिकायत करना किसी जोखिम से कम नहीं.

वहीं  बैंकों में आधार कार्ड का जुड़ाव, खाते में मोबाइल को लिंक करना, अनगिनत बार अंगूठे का निशान न मिलना , किसी तरह ग्राहक सुविधा केंद्र चले जाओ तो उसकी अपनी मनमानी, पैसे आने पर भी सही जानकारी न देना, गुपचुप तरीके से खाते से पैसे का हस्तांतरण कर लेना और कह देना कि तुम्हारे खाते में तो पैसे आये ही नहीं, ये सब आम है.

जिन घरों में चूल्हे की राख ठंडी ही चुकी थी वहां फिर से अंगार जल रहे हैं. प्रधानमंत्री उज्‍ज्‍वला योजना के सिलेंडर घरों में शोपीस बनकर रह गये हैं.


ग्रामवाणी फीचर्स के सौजन्य से, कवर तस्वीर साभार हिंदुस्तान टाइम्स


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