क्या नये भारत में राज्य की इच्छा ही न्याय है?

अंतरराष्ट्रीय संधियों की बाध्यता को आधार बनाकर अपनी सुविधानुसार सत्ता नागरिक अधिकारों में कटौती कर रही है जबकि अंतरराष्ट्रीय कानून के उन उदार अंशों को रद्दी की टोकरी में डाला जा रहा है जो शरणार्थियों एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित हैं। ऐसे समय में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद लगाये आम आदमी की हताशा स्वाभाविक ही है।

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अशोक स्तम्भ विवाद: इन हिंसक शेरों का गुस्सा आखिर किस पर टूटेगा?

सेंट्रल विस्टा पर स्थापित प्रतिकृति के शेरों के पिचके हुए टेढ़े जबड़े, अधिक खुले हुए मुख, निकले हुए दांत, भयानक नेत्र, हिंसक चेहरा एवं पैरों और नाखूनों की बदली हुई बनावट तथा शेरों के शरीर एवं अयाल में केशों का विन्यास इन्हें एक रौद्र रूप प्रदान करते हैं। अशोक स्तंभ के शेरों की उपस्थिति आश्वासनदायी है जबकि सेंट्रल विस्टा के शेर भयोत्पादक हैं।

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फारवर्ड प्रेस के नाम को और कितना गंदा करोगे प्रधान संपादक?

जुन्हाई ने जो ईमेल मुझे भेजा है उसमें उन्होंने अपनी व्यथा को विस्तार से बताया है कि किस प्रकार से पिछले एक साल से आप लोगों ने उनका और उनके परिवार का जीवन नरक बना रखा है। उनके कुछ मित्रों ने भी इस सम्बन्ध में मुझसे सम्पर्क कर हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। पिछले एक सप्ताह में इस सम्बन्ध में जो बातें मेरे सामने आयी हैं, उनसे बहुत आश्चर्यचकित तो नहीं हूं, सिर्फ़ यह सोच रहा हूं कि आप लोग कितना नीचे गिरेंगे?

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स्वास्थ्य सेवाओं के राष्ट्रीयकरण की ज़रूरत और प्रासंगिक मांगें

आमतौर पर जो अनुभव कोविड काल का रहा, उसमें देखा गया कि न केवल ग़रीब लोगों के लिए निजी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं थीं बल्कि जो पैसे खर्च करने में सक्षम थे, उन्हें भी निजी स्वास्थ्य सेवाओं से वो सेवाएँ नहीं मिल सकीं जिनके लिए वो बरसों-बरस भारी रकम लुटाते रहे हैं। ज़्यादातर काम वही सरकारी अस्पताल और सरकारी डॉक्टर और स्टाफ आया जिसे निजीकरण के युग में हाशिये पर धकेला जा रहा था, जिनकी ज़मीनें बेचीं जा रहीं थी, जिनके स्टाफ को ठेके पर रखा जा रहा था, जहाँ से दवाइयाँ मुफ़्त देना बंद किया जा रहा था।

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जब सरकार खुद समस्या बन जाए तो समाधान क्या हो?

“सरकार हमारी समस्याओं का समाधान नहीं है, सरकार ही समस्या है”- अमेरिका के राष्ट्रपति रहे रॉनल्ड रीगन के इस प्रसिद्ध कथन से राजनीतिशास्त्र के छात्र भलीभाँति परिचित होंगे। रीगन से …

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UGC की CARE लिस्टेड पत्रिकाएं: अकादमिक जगत में भ्रष्टाचार की नर्सरी

यूजीसी CARE लिस्ट सिर्फ एक कोटापूर्ति बन कर रह गई है। आए दिन यह भी शिकायतें मिलती हैं कि फलां विश्वविद्यालय या महाविद्यालय में शोधार्थियों को बाध्य किया जा रहा है कि वे अपने शोध-पत्र का प्रकाशन यूजीसी लिस्ट में शामिल पत्रिकाओं में करवाएं। अब शोधार्थी के पास पैसे देने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है।

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जल संकट: खेत सूख रहे हैं और लोग आर्सेनिक का पानी पी रहे हैं!

राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और कुछ दक्षिण के राज्य तो पहले भी पानी की समस्या से जूझ रहे थे लेकिन अब बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश भी पानी के संकट से जूझने वाले राज्यों में शामिल हो चुके हैं। यूं तो कहने के लिए इन राज्यों में गंगा और नर्मदा जैसी नदियां बह रही हैं पर इनके किनारे पर ही संकट ज्यादा है।

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आजमगढ़ का सबसे मज़बूत किला कैसे हार गयी समाजवादी पार्टी?

विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद आजमगढ़ जनपद की 10 विधानसभा सीटें सपा को मिल जाने के बाद पार्टी खेमे में जश्न का माहौल था लिहाजा इस बात पर विवेचना करना भी शायद ज़रूरी नहीं समझा गया कि 2022 के विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ की इन दस सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत 10 से बढ़कर 29 प्रतिशत हो गया है।

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भ्रष्टाचार का इतिहास गवाह है कि राहुल गांधी भी अंततः पाक-साफ निकल आएंगे!

पांचवीं बार प्रवर्तन निदेशालय के पास पूछताछ के लिए तलब किए गए राहुल गांधी के साथ आज जो हो रहा है, वह भारतीय राजनीति में कुछ नया नहीं है। इंदिरा गांधी ने भी यही सब झेला था। हरियाणा के कद्दावर मुख्‍यमंत्री रहे बंसीलाल को तो जनता पार्टी सरकार हथकड़ी लगा कर सड़क पर घसीटती हुई ले गयी थी।

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आंदोलन, जन आंदोलन, हिंसा, अहिंसा: कुछ बातें

भारतीय राजनीति पर निहायत पिछड़ी चेतना की काली छाया बढ़ती चली गयी जो आज आरएसएस-भाजपा के भारतीय फासीवादी संस्करण के रूप में हमारे सामने मुंह बाये खड़ी है और इसका मुकाबला कैसे हो इस पर घोर असमंजस है।

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