परंपरागत शिक्षा पद्धति के लिए तकनीक से दोस्ती उसके अस्तित्व का सवाल बन चुकी है


ज्ञान और जानकारी हमारे अस्तित्व के परिवर्तनकारी आयाम बन गये हैं और सभी सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के कार्यान्वयन के पीछे महत्वपूर्ण चालक भी हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार विकसित देशों के 80 प्रतिशत लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं जबकि विकासशील देशों में यह संख्या 35 प्रतिशत ही है। भारत भी एक विकासशील देश है और इस समय सम्पूर्ण विश्व की तरह कोरोना महामारी से जूझ रहा है। सभी शिक्षण संस्थान पिछले 60 दिनों से बंद हैं। वर्तमान और आगामी दोनों शैक्षिक सत्रों के क्रमशः समापन और आरंभ की केवल संभावनाएं व्यक्त की गयी हैं। इस समय चूंकि परंपरागत शिक्षा प्रणाली अपनी सीमाओं के कारण छात्रों को पर्याप्त लाभ नहीं पहुंचा पा रही है ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली एक भरोसेमंद, सर्वसुलभ माध्यम के रूप मे उभरी है।

यह सच है कि इंटरनेट भारत मे अभी हर छात्र की पहुंच मे नहीं है। हर शिक्षक ऑनलाइन शिक्षण मंचों से परिचित भी नहीं है। पाठ्यक्रमों मे इस प्रणाली को अनिवार्य स्थान प्राप्त नहीं है, किन्तु इस से भी बड़ा सच यह है कि सरकार की मदद से इंटरनेट की उपलब्धता हर छात्र तक सुनिश्चित करायी जा सकती है। ऑनलाइन उपलब्ध कोर्सों के माध्यम से हर तकनीकी पहलू, सॉफ्टवेयर और एप्लिकेशन के उपयोग को सीखा जा सकता है। आवश्यकता केवल जागरूकता और रुचि की है।

WPDI के प्रयासों से यूएन ने दक्षिणी सूडान व युगांडा जैसे पिछड़े और संघर्षशील देशों मे भी शैक्षिक सुधार करने के प्रयास किये हैं और कईं कंप्यूटर कोर्स शुरू किये हैं जो भारत जैसे विकासशील और बड़ी संभावनाओं वाले राष्ट्र के लिए एक प्रेरणा की तरह है। सभी परियोजनाओं मे आइसीटी को केन्द्रीय महत्व प्रदान करने की जरूरत है ताकि शिक्षा के उद्देश्यों के साथ उद्यमिता के उद्देश्यों की भी प्राप्ति हो सके। शिक्षण प्रणाली मे अधिक से अधिक आइसीटी का समावेश होने से इंटरनेट के प्रचलित दुरूपयोगों जैसे फेक न्यूज़, अभद्र भाषा, जालसाजी, हैकिंग आदि का निराकरण संभव है और साथ ही संचार को संवाद का वास्तविक साधन मानने की शिक्षा की धारणा को भी प्रौद्योगिकी की मदद से सच साबित किया जा सकता है।

नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 मे शिक्षा क्रांति का दावा सम्मिलित है। इसमें पाठ्य-पुस्तकों का बोझ कम करके पढ़ाई को अधिक से अधिक प्रयोगात्मक बनाने की बात कही गयी है। यह सर्वविदित तथ्य है कि जिस शिक्षा पद्धति को यह नीति विकसित करना चाहती है उसमें सर्वाधिक सहायक ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली ही हो सकती है। सतत विकास के चौथे लक्ष्य “गुणवत्तापूर्ण शिक्षा”, जिसमें समावेशी व न्यायसंगत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सुनिश्चित करने का लक्ष्य है, की वास्तविक प्राप्ति सभी वर्गों को शिक्षण प्रक्रिया में शामिल किये बिना संभव नहीं हो सकती। चूंकि ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था में बिना किसी बाधा के हर आयु और वर्ग को सम्मिलित किये जा सकने की संभावना है, इसलिए यही एसडीजी-4 का सर्वोत्तम साधन परिलक्षित होती है।

सर्वसुलभ होने के साथ-साथ कुछ और बिन्दु ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली के महत्व को उजागर करते हैं, जैसे इसकी लागत कम होना, परंपरागत कक्षाओं से अधिक शिक्षार्थियों को एक साथ सम्मिलित कर सकना, अधिक दृश्य-श्रव्य सामग्री के उपयोग की सुविधा, कईं शिक्षकों द्वारा एक ही मंच पर एक साथ बहुपक्षीय संवाद की सुविधा, वस्तुनिष्ठ ऑनलाइन परीक्षाओं की सुविधा,  ई-लर्निंग के स्रोत जैसे स्वयं, स्वयंप्रभा, ज्ञानदर्शन आदि के विकास के साथ अनेक ऑनलाइन कोर्स, शोधपत्र, ईबुक्स की उपलब्धता आदि।

परंपरागत शिक्षा पद्धति कोई आलोचना का विषय नहीं है। यह पद्धति धीरे-धीरे तकनीकों का सहारा लेती रही है और अब तो यह इसके लिए अस्तित्व का प्रश्न बन गया है कि या तो तकनीकी से दोस्ती कर ले या धीरे-धीरे विलुप्त हो जाए।

परिवर्तन यदि समाज के लाभ के लिए हो रहा है तो उसे न स्वीकारना, समाज के विकास में बाधक बनना है। यही स्थिति ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली के आलोचकों की भी है, जो किन्हीं व्यक्तिगत कारणों या पूर्वधारणाओं के कारण इसके महत्व को अनदेखा करना चाहते हैं। शिक्षा के व्यापक उद्देश्यों- ज्ञान सृजन, ज्ञान का प्रसार तथा ज्ञान का सरक्षण- तीनों को ही प्राप्त करने मे ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली का विशेष महत्व है और इसका लचीलापन इसे और अधिक उपयोगी बना देता है।


लेखक समाजशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं


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