तीन किसान कानूनों के खिलाफ़ दिल्ली की तीन सीमाओं पर और बुराड़ी के निरंकारी मैदान में आंदोलन कर रहे किसानों के दबाव में केंद्र सरकार ने आखिरकार वार्ता के लिए आज किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को समय दे दिया है। दिल्ली के विज्ञान भवन में यह बातचीत दिन में 3 बजे रखी गयी है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इसकी पुष्टि की है।
सरकार की ओर से रविवार को गृहमंत्री अमित शाह ने सशर्त बातचीत का प्रस्ताव रखा था जिसे किसानों ने ठुकरा दिया। उसके बाद यह वार्ता का फैसला आया है। अब सवाल उठता है कि केंद्र सरकार किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से बात क्या करेगी? किसानों की एकतरफ़ा मांग है कि किसान कानूनों को वापस लिया जाय।
दूसरी ओर अपनी नियमित ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान कानूनों की खुलकर सराहना की है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी वार्ता का फैसला देते हुए यही कहा है कि किसानों में कृषि कानूनों को लेकर कुछ गलत समझ है इसलिए सरकार उन किसान यूनियनों से बात करने को तैयार है जो पहले दौर की बातचीत में मौजूद थीं।
उन्होंने एएनआइ से कहा, ‘’जब किसान कानूनों में नये संशोधन किये गये तब किसानों के दिमाग में कुछ भ्रम थे।‘’ इससे पहले सरकार और किसान यूनियनों की दो बार वार्ता हो चुकी है- एक 14 अक्टूबर को और दूसरी 13 नवंबर को। तीसरी वार्ता की तारीख 3 दिसंबर तय थी।
चार दिनों के किसानों के जमावड़े के बाद अब जाकर अचानक सरकार को इलहाम हुआ है कि कोविड चल रहा है और ठंड भी बहुत है, इसलिए वार्ता 3 दिसंबर के बजाय दो दिन पहले ही कर ली जाय। तोमर ने कहा, ‘’कोविड की स्थिति और सर्दियों के मद्देनजर हमने तय किया कि हमें 3 दिसंबर से पहले बात कर के हल निकालने की ज़रूरत है।‘’
दूसरी ओर किसान कानून को लेकर कुछ भी समझने को तैयार नहीं दिखते। सिंघू बॉर्डर पर फतेहगढ़ जिले से आये 70 साल के हरनाम सिंह साफ़ कहते हैं कि जब तक कानून वापस नहीं होगा, वे लौट कर अपने गांव नहीं जाएंगे। यही बात सारे किसान कह रहे हैं।
ऐसे में 1 दिसंबर की वार्ता में कुछ खास निकलने की उम्मीद नहीं दिखती नज़र आ रही।