बजट ने साबित किया किसान-मजदूर सरकार की अंतिम प्राथमिकता: KSS


किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के संयोजक मंडल के सदस्य, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य एवं पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने केंद्र सरकार के बजट को निराशाजनक एवं पूंजीपतियों को छूट देने वाला बताते हुए कहा है कि किसान संगठन को उम्मीद थी कि सरकार द्वारा किसानों की संपूर्ण कर्जा मुक्ति तथा सभी कृषि उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद की कानूनी गारंटी देते हुए बजट में प्रावधान किया जाएगा परंतु सरकार ने दोनों ही योजनाओं के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं किया है।

बजट ने सरकार के किसानों की आय को दुगना करने के दावे की पोल भी खोल दी है। सरकार ने फिर से एक बार झूठ बोला है कि देश में लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद की जा रही है। जबकि गेहूं और धान भी पूरे देश मे समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा जा रहा है। 23 कृषि उत्पादों की समर्थन मूल्य पर खरीद की बात बहुत दूर है।

सरकार ने आत्महत्या पीड़ित किसान परिवारों के लिए तथा ऐसे क्षेत्रों के लिए जहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं उन किसानों के लिए भी कोई विशेष प्रावधान नहीं किया है। इसी तरह सरकार द्वारा खेतिहर मजदूर को रोजगार गारंटी देने के लिए मनरेगा में कृषि क्षेत्र के बजट में कोई प्रावधान नहीं किया है।

सरकार ने बीमा क्षेत्र में 74% विदेशी विनिवेश बढ़ाकर देश की बीमा कंपनियों को नष्ट करने की घोषणा कर दी है। विनिवेश के नाम पर सब कुछ बेच देने के विचार को सरकार ने अमली जामा पहना दिया है। सब कुछ बेच दूंगा ,मोदी सरकार का नया नारा आज के बजट ने स्थापित कर दिया है।

सरकार ने किसानों को पेंशन देने तथा आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों को लॉक डाउन के दौरान हुए नुकसान की भरपाई के लिए एक साल के लिए 10,000 रुपये प्रति माह सहायता राशि देने के लिए भी कोई प्रावधान नहीं किया है। सरकार ने किसानों के साथ बातचीत के दौरान बिजली बिल वापस लेने का आश्वासन दिया था लेकिन बिजली क्षेत्र में निजीकरण के लिए पूरी तरह से रास्ता खोल दिया है, जिसके चलते बिजली महंगी हो जाएगी जिससे किसानी में घाटा बढ़ेगा।

डॉ सुनीलम ने कहा है कि-

किसान संघर्ष समिति देश की 65% आबादी के अनुपात में कृषि बजट आबंटित करने की मांग करते रही है। सरकार द्वारा आबादी के अनुपात में 65 % बजट का आवंटन करने की बजाय 6.5 % का भी आबंटन नहीं किया है।वर्तमान बजट में यह केवल 5 .2 प्रतिशत अर्थात 30 लाख 42 हज़ार करोड़ में से केवल 1 .58 लाख करोड़ किया गया है। खाद्य सब्सिडी 1.84 लाख करोड़ से घटाकर 1.15 करोड़ कर दी गई है।

इकनोमिक सर्वे में दिए गए आंकड़ो से पता चलता है अभी तक जो आमदनी 6 .3% बढ़ रही थी वह घट कर 2.8 % रह गयी है। जबकि किसानों की दुगनी आय करने के लिए 14 % आय सालाना बढ़नी जरूरी थी। सरकार ने बजट में मनरेगा में 10 हज़ार करोड की कमी कर दी है।

इकनोमिक सर्वे से पता चलता है कि किसान सम्मान निधि भी 6.12 करोड़ किसानों तक नहीं पहुंची है जबकि पी एम किसान योजना के तहत 14.5 करोड़ किसान परिवारों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था। इस योजना में भूमिहीन किसानों ( खेतिहर मज़दूरों ) और बंटाई दारों को शामिल नहीं किया गया था।

ग्रामीण हाट के लिए 2018 -2019 में 22,000 करोड़ की घोषणा की गई थी जिसमें से केवल 2000 करोड़ खर्च किये गए। 2017 -2018 में 10 ,881 डेयरी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलोपमेन्ट फंड दिया गया था जिंसमे से केवल 440 करोड़ खर्च किया गया। आज के बजट में इसे घटाकर 60 करोड़ कर दिया गया है। इससे पता चलता है कि देश का किसान और खेतिहर मजदूर सरकार की प्राथमिकता में अंतिम सीढी पर है जबकि उंसको सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी।


भागवत परिहार
कार्यालय सचिव
किसान सँघर्ष समिति


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