बेंगलुरु में हाल ही में हुई भीषण वर्षा के बाद आई जलभराव की खबरों ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। तमाम लोगों को अपना घर छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा और इंटरनेट पर इस पूरे घटनाक्रम से जुड़े तमाम मीम्स और मज़ाक़ वायरल होते रहे। स्थिति वाकई कई मायनों में हास्यास्पद थी, मगर यह एक चिंता का भी विषय है। आखिर भारत के इस आइटी हब ने कथित तौर पर 225 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान दर्ज किया इस बाढ़ की वजह से!
दुनिया भर में हर साल जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, उसकी तीव्रता, और आवृत्ति बेहद तेज़ी से बढ़ रहे हैं। चाहे बांग्लादेश में अभूतपूर्व बाढ़ हो, फिर पाकिस्तान में आई भयानक बाढ़, उसके बाद भारत में असम में और फिर मध्य प्रदेश से सटे राजस्थान के कुछ हिस्सों में अत्यधिक बारिश, और हाल ही में बेंगलुरू में बारिश के बाद बाढ़ जैसी स्थिति। सभी घटनाओं ने दिखाया है कि कैसे दक्षिण एशिया में चरम मौसमी घटनाओं की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है।
यूएन के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) ने पिछले साल पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर उत्सर्जन अनियंत्रित रहा तो आने वाले वर्षों में पूरे दक्षिण एशिया में चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि होगी। एशियाई शहरी क्षेत्रों को अनुमानित जलवायु परिवर्तन, चरम घटनाओं, अनियोजित शहरीकरण और तेजी से भूमि-उपयोग परिवर्तन के चलते उच्च जोखिम वाले स्थान माना जाता है।
बढ़ते शहरीकरण के साथ हमारे शहर अधिक जोखिम में हैं क्योंकि मानव जीवन के नुकसान, संपत्ति की क्षति और आर्थिक नुकसान की मात्रा ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, दिल्ली और चेन्नई जैसे शहर लाखों लोगों के घर हैं और जलवायु जोखिम इतना अधिक है।
एशिया विश्व की 54 फीसदी शहरी आबादी का घर है और 2050 तक एशिया के 3.3 बिलियन लोगों में से 64 फीसदी लोग शहरों में रह रहे होंगे। एशिया दुनिया के सबसे बड़े शहरी समूहों का भी घर है: काहिरा, मुंबई, बीजिंग और ढाका में रहने वाले लगभग 20 मिलियन लोगों के साथ आबादी के मामले में टोक्यो (37 मिलियन निवासी), नई दिल्ली (29 मिलियन) और शंघाई (26 मिलियन) शीर्ष तीन शहर हैं। 2028 तक नई दिल्ली के दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला शहर बनने का अनुमान है।
गर्म वातावरण में शहरी बाढ़ हमारे शहरों और कस्बों के लिए एक बड़ा खतरा है। जलवायु परिवर्तनशीलता के साथ क्षेत्रीय पारिस्थितिक चुनौतियों ने बाढ़ के जोखिम को बढ़ा दिया है। शहरी बाढ़, जो मुख्य रूप से अब तक नगरपालिका और पर्यावरण शासन की चिंता थी, अब ‘आपदा’ की शक्ल ले चुकी है ।
शहरी बाढ़ क्या है?
शहरी बाढ़ को दो कारकों के संयोजन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है- शहरी नियोजन का कुप्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जो लगातार तीव्र हो रहे हैं। चरम मौसमी घटनाओं के मामलों में शहरी बाढ़ के परिणामस्वरूप आपदाएँ आ सकती हैं जो शहरी विकास को वर्षों या दशकों तक पीछे कर देती हैं।
आइपीसीसी के अनुसार 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने से पूरे एशिया में, विशेष रूप से पूर्वी और दक्षिण एशिया में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि होगी। अत्यधिक वर्षा का शहरी बाढ़ जोखिम पर प्रत्यक्ष और बढ़ता परिणाम होता है, जो कि शहरीकरण के रुझानों से और बढ़ जाता है जो भूमि की सोखने की क्षमता को कम करते हैं, जल प्रवाह को मोड़ते हैं और वाटरशेड को बाधित करते हैं।
मुंबई में 2005 में आई बाढ़ को शहरी बाढ़ का पहला उदाहरण कहा जा सकता है क्योंकि इसने विशेषज्ञों और सरकार का ध्यान खींचा। 2005 में मुंबई की बाढ़ के बाद ही शहरी बाढ़ को ‘आपदा’ के रूप में मान्यता दी गई। 2005 की बाढ़ वास्तव में एक आपदा थी क्योंकि यह केवल सात सप्ताह के बाद घटी और 20 मिलियन लोग प्रभावित हुए। 26 जुलाई, 2005 को शहर में 18 घंटे की अवधि में 944 मिमी बारिश दर्ज की गई, जिसमें से अधिकतम 647.5 मिमी वर्षा 14.30 से 20.30 बजे के बीच दर्ज की गई। बाढ़ ने 1200 लोगों और 26,000 मवेशियों की जान ले ली। इसने 14,000 से अधिक घरों को नष्ट कर दिया, और 350,000 से अधिक को क्षतिग्रस्त कर दिया; लगभग 200,000 लोगों को राहत शिविरों में रहना पड़ा। कृषि क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ क्योंकि 20,000 हेक्टेयर खेत की ऊपरी मिट्टी खो गई और 550,000 हेक्टेयर फसल क्षतिग्रस्त हो गई।
बेंगलुरु की बाढ़ 2022 इसका ताजा उदाहरण है, जहां भारत के आइटी हब ने कथित तौर पर 225 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान दर्ज किया है। शहर में 5 सितंबर को 24 घंटे की अवधि में 132 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो इस क्षेत्र की मौसमी वर्षा का 10 फीसदी है। 26 सितंबर, 2014 के बाद से यह सबसे गर्म दिन था जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून तंत्र में बदलाव के कारण शहर में मूसलाधार बारिश हुई, खराब शहरी नियोजन के कारण स्थिति और खराब हो गई, जिसने पानी को अपना रास्ता नहीं निकालने दिया। अंततः बारिश ने इसे जलमग्न कर दिया कई दिनों के लिए। चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के साथ यह भारतीय शहरों में बार-बार हो सकता है और साथ ही जीवन, आजीविका और जीडीपी को भी प्रभावित कर सकता है।
बेंगलुरु को झीलों के शहर के रूप में जाना जाता था, जो बाढ़ और सूखे से बचाव के रूप में काम करती थीं। तीव्र शहरीकरण की प्रक्रिया ने आर्द्रभूमि, बाढ़-मैदानों आदि पर अतिक्रमण कर लिया जिससे बाढ़ का मार्ग बाधित हो गया। बेंगलुरू में प्राकृतिक बाढ़ भंडारण के नुकसान के साथ झीलों के अनधिकृत विकास से बाढ़ की स्थिति खराब हुई। शहरीकरण के मद्देनजर जल निकायों के बीच का नेटवर्क पूरी तरह से टूट गया है जिससे वे स्वतंत्र इकाइयां बन कर रह गई हैं। नालियों के जाम होने से शहर के रिहायशी इलाके जलमग्न हो गए। यह दर्शाता है कि कैसे अनियोजित, तेजी से हुए शहरी विकास ने एक शहर में और उसके आसपास के प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को उसकी सीमा तक फैला दिया है, और प्राकृतिक बाढ़ के खतरों से आपदा को अपरिहार्य और अधिक विनाशकारी बना दिया है।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए भारती स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में अनुसंधान निदेशक और सहायक प्रोफेसर और आइपीसीसी लेखक डॉ. अंजल प्रकाश कहते हैं, “पूरे शहर में शहरीकरण अनियंत्रित हो रहा है और बेंगलुरु इस सब के प्रति अनुकूलन के लिए कुछ नहीं कर रहा। राजनीतिक व्यवस्था और इच्छाशक्ति जलवायु अनुकूल नीति के अनुरूप नहीं है। वास्तव में, जलवायु जोखिम से लड़ने के लिए कोई राजनीतिक स्थिरता नहीं रही है क्योंकि यहाँ पिछले 20 वर्षों में 15 मुख्यमंत्री बदल चुके हैं।”
डॉ. चांदनी सिंह, वरिष्ठ शोधकर्ता और संकाय सदस्य, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटल्मेंट्स, कहती हैं, “इससे निपटने के लिए मुख्य मुद्दा यह समझना है कि शहर के विभिन्न लोगों के पास मौसमी बाढ़ से निपटने और अनुकूल होने के लिए असल क्षमता है। यह एक गहरा पर्यावरणीय न्याय का मुद्दा है। कम आय वाले परिवारों को अपने घरों को बाढ़ से बचाने के लिए सुरक्षा जाल की आवश्यकता होती है। इसका मतलब अधिक समावेशी और टिकाऊ शहरी नियोजन है जो शहरी आर्द्रभूमि पर निर्माण और अतिक्रमण करने वालों के लिए दंड का प्रावधान करता है।‘’
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला कहती हैं, “ लोग तेजी से जलवायु परिवर्तन के निहितार्थों को समझ रहे हैं और जान रहे हैं कि ये घटनाएं वास्तविक समय में उन्हें कैसे प्रभावित कर रही हैं। जलवायु परिवर्तन न केवल इन घटनाओं को खराब करेगा बल्कि जटिल आपदाएं विकास और स्थानीय सरकारों को अस्थिर कर देंगी। यदि नीति निर्माता भारत के शहरी विकास के लिए एक एकीकृत, समावेशी योजना लाने में विफल रहते हैं, तो यह न केवल हमारे द्वारा लक्षित जीडीपी से जुड़े विकास के लिए प्रतिकूल होगा, बल्कि भविष्य के लिए जलवायु अनुकूल शहरों को विकसित करने के लिए निवेश के अवसरों से भी वंचित कर देगा, जिनके पास बढ़ती आबादी के सापेक्ष अनुकूलन क्षमता है।”
Climateकहानी के सौजन्य से