भारत समेत विश्व के अनेक देशों में परिवार नियोजन को मुख्य रूप से केवल महिलाओं का ही मुद्दा माना जाता है – जैसे पुरुषों का इससे कोई लेना-देना ही न हो. गर्भ निरोध के 14 तरीकों में केवल 2 – कॉन्डोम और पुरुष नसबंदी – में ही पुरुषों की प्रत्यक्ष भागीदारी की जरूरत होती है. शेष सभी गर्भनिरोधक विधियां केवल महिलाओं के उपयोग के लिए हैं. वैश्विक स्तर पर 70 प्रतिशत से अधिक गर्भनिरोधक उपयोगकर्ता महिलाएं ही हैं. इसमें महिला नसबंदी (24 प्रतिशत) सबसे ज़्यादा प्रचलित है जबकि पुरुष नसबंदी मात्र 2 प्रतिशत है. गर्भ निरोध का सारा भार महिलाओं के मत्थे ही मढ़ दिया गया है.
भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के मुताबिक, 40 प्रतिशत भारतीय पुरुषों का मानना है कि गर्भ निरोध का दायित्व महिलाओं पर है और पुरुषों को इसके बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए. शायद यही कारण है कि भारत में महिला नसबंदी सबसे ज्यादा लोकप्रिय गर्भनिरोधक विधि है और इसका उपयोग करने वालों की संख्या भी सबसे अधिक – 36 प्रतिशत – है जबकि पुरुष नसबंदी मात्र 0.3 प्रतिशत है.
चिकित्सीय संम्भाषण में पुरुष नसबंदी, महिला नसबंदी के मुकाबले कहीं ज़्यादा बेहतर विकल्प होना चाहिए क्योंकि यह महिला नसबंदी की तुलना में कम खर्चीला है और इसमें समय भी बहुत कम लगता है (लगभग 15 मिनट). यह लोकल एनेस्थीसिया (स्थानीय बेहोशी) के तहत की जाने वाली एक साधारण प्रक्रिया है जबकि महिला नसबंदी जेनरल एनेस्थीसिया (सामान्य बेहोशी) में की जाने वाली एक जटिल शल्य क्रिया है.
प्रख्यात स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमा दिवाकर, जो भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में तकनीकी सलाहकार तथा दिवाकर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल की चिकित्सा निदेशक हैं, का कहना है कि “पुरुषों को प्राप्त अनेकों विशेषाधिकारों में से एक है परिवार को सीमित करने के लिए गर्भनिरोधक का न्यूनतम उपयोग. गर्भावस्था से सम्बंधित हर मुद्दे को स्त्री की ज़िम्मेदारी माना जाता है. पुरुषों को इससे कोई मतलब ही नहीं होता है. और तो और, कभी-कभी महिलाएं भी यह सोचती हैं कि पुरुष नसबंदी कराने से उनके पति के स्वास्थ्य को हानि पहुंच सकती है, जबकि यह केवल भ्रान्ति मात्र है. हालांकि एचआईवी/ एड्स के डर ने कॉन्डोम के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है, फिर भी यह पुरूष ही तय करते हैं कि वे इसका इस्तेमाल करेंगे अथवा नहीं (जबकि कॉन्डोम दोनों को यौन संक्रमित रोगों से बचाता है). अत:अधिकतर महिलाएँ ही बच्चों के जन्म में अन्तर के लिए किसी न किसी साधन का इस्तेमाल करती हैं या फिर बार-बार गर्भपात करवा कर अपने स्वास्थ्य को दांव पर लगाती हैं.”
एशिया पेसिफिक के कई अन्य देशों में भी हालात ऐसे ही हैं या इससे भी बदतर. फिजी के रिप्रोडक्टिव एंड फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन की निदेशक मेटेलिटा सेवा बताती हैं: “पैसिफिक क्षेत्र में गर्भनिरोधक विकल्पों और साधनों की बहुत कमी है. यहां 25% महिलाएं आधुनिक गर्भनिरोधकों का उपयोग चाह कर भी नहीं कर पाती हैं. गर्भ निरोधक प्रचलन की दर न केवल पिछले एक दशक से स्थिर है, बल्कि कुछ देशों में इसमें काफी गिरावट भी आयी है. मातृ मृत्यु-दर भी कई देशों में काफी अधिक है.”
पैसिफिक द्वीप राष्ट्र तिमोर लेस्टे एक ऐसा ही उदाहरण है जहां पुरुष परिवार नियोजन के तरीकों का इस्तेमाल बहुत ही कम है – कॉन्डोम का उपयोग केवल 2 प्रतिशत है और पुरुष नसबंदी नहीं के बराबर है. पिछले वर्ष (2019) तिमोर लेस्टे में ‘पुरुष परिवार नियोजन की विधियों तक पहुंच’ विषय पर एक शोध किया गया ताकि पुरुष परिवार नियोजन के तरीकों पर नीतिगत तथा कार्यक्रम-सम्बन्धी निर्णय लेने हेतु नए साक्ष्य प्रस्तुत किये जा सकें. मेरी स्टॉप्स तिमोर लेस्टे मे हैल्थ सिस्टम मैनेजर, हेलेन हेंडरसन ने 10वीं एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ एंड राइट्स) के तीसरे वर्चुअल सत्र में इस शोध के कुछ रोचक तरीकों और शोध के परिणामों को साझा किया.
इस शोध के अंतर्गत स्वास्थ्य सेवा कर्मियों से गहन साक्षात्कार, तथा शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं और पुरुषों से समूह चर्चा करने के अलावा “बॉडी मैपिंग” विधि का अनूठा प्रयोग किया गया.
क्या है बॉडी मैपिंग?
बॉडी मैपिंग के अंतर्गत प्रत्येक प्रतिभागी को एक कागज़ दिया गया जिस पर एक पुरुष और एक महिला के शरीर का प्रारूप (आउटलाइन) चित्रित था. प्रतिभागी को नीले रंग की कलम से उस आउटलाइन के अंदर किसी भी यौन अंग या प्रणाली को, जिसे वे जानते हो, को चिन्हित करना था. इसके बाद हरे रंग की क़लम से किसी भी परिवार नियोजन विधि को (जिससे वे अवगत हों) चिन्हित करना या लिखना था. और अन्त में उन्हें लाल रंग की क़लम से किसी भी परिवार नियोजन विधि के प्रभाव या दुष्प्रभाव को चिन्हित करना या लिखना था.
शोध के परिणाम
सम्पूर्ण शरीर मानचित्रों (बॉडी मैप्स) के विश्लेषण से कुछ बहुत ही रोचक परिणाम सामने आये. अधिकांश प्रतिभागी परिवार नियोजन की किसी भी पुरुष पद्धति की पहचान नहीं कर पाए. हालांकि कॉन्डोम को यौन संक्रमित रोगों की रोकथाम के लिए प्रयुक्त होने वाली विधि के रूप में कई प्रतिभागियों ने पहचाना, परन्तु बहुत ही कम प्रतिभागी उसे गर्भावस्था को रोकने की विधि के रूप में पहचान पाए. कुछ प्रतिभागियों ने गर्भ निरोध के महिला तरीकों को पुरुष द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले गर्भ निरोधक के रूप में पहचाना.
इन निष्कर्षों से यह बात तो एकदम साफ़ हो गयी कि लोगों में पुरुष परिवार नियोजन के तरीकों के बारे में बहुत सीमित जागरूकता तथा ज्ञान है. प्रतिभागियों ने अनेकों अवरोधों – जैसे आयु, लिंग, वैवाहिक स्थिति, गर्भ निरोध के दुष्प्रभाव और खराब सेवा (विशेषकर कॉन्डोम उपयोग सम्बंधित) – आदि की पहचान की. परिवार नियोजन विधियों के बारे में ज्ञान और उनके वर्तमान उपयोग के बारे में जानकारी हासिल करने में बॉडी मैपिंग विधि बहुत ही कारगर साबित हुई.
हेलेन ने सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) को बताया कि उन्हें उम्मीद है कि इस अध्ययन के निष्कर्षों को परिवार नियोजन कार्यक्रम मे एकीकृत किया जाएगा तथा उपयुक्त स्वास्थ्य संवर्धन गतिविधियों के लिए शिक्षकों तथा और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को सूचित करने के लिए भी इनका उपयोग किया जायेगा।
वर्तमान में उपलब्ध पुरुष गर्भ निरोधक – पुरुष कॉन्डोम और पुरुष नसबंदी – का बहुत ही कम उपयोग परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी के निम्न स्तर को दर्शाता है. अतः हमें पुरुष उन्मुख परिवार नियोजन की विधियों के और विकल्प खोजने होंगे और साथ ही साथ कॉन्डोम तथा पुरुष नसबंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के ज़ोरदार प्रयत्न भी करने होंगे.
रिसुग (रिवर्सेबल इन्हिबिशन ऑफ़ स्पर्म अंडर गाइडेंस)
रिसुग (रिवर्सेबल इन्हिबिशन ऑफ़ स्पर्म अंडर गाइडेंस) नामक एक नया पुरुष गर्भ निरोधक शीघ्र ही परिवार नियोजन के विकल्पों की श्रृंखला में शामिल किये जाने की संम्भावना है. भारतीय बायोमेडिकल इंजीनियर डॉ सुजय कुमार गुहा द्वारा विकसित यह विश्व का पहला प्रतिवर्ती गैर हार्मोनल, गैर इनवेसिव इंजेक्टेबल पुरुष गर्भ निरोधक होगा. यह क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे चरण को सफतापूर्वक पूर्ण कर चुका है और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के विनियामक अनुमोदन की प्रतीक्षा कर रहा है. इसके उपलब्ध हो जाने पर जन्म नियंत्रण के क्षेत्र में पुरुषों की भागीदारी बढ़ना संभावित है, जो अभी तक लगभग पूर्ण रूप से महिलाओं का दायित्व है.
एशिया पेसिफिक क्षेत्र के देशों में परिवार नियोजन कार्यक्रमों की रणनीतियों को इस तरह से पुनर्गठित होना आवश्यक है जिससे परिवार नियोजन में पुरुषों की सार्थक भागीदारी और पुरुष गर्भ निरोधक विधियों को बढ़ावा दिया जा सके ताकि वे भी परिवार नियोजन सेवाओं के उपयोग में समान व जिम्मेदार भागीदार बन सकें.
माया जोशी सिटिज़न न्यूज सर्विस से सम्बद्ध हैं