“…ताकि स्‍पार्टकस का सपना हमारे समय में सच हो सके”: हॉवर्ड फास्ट कृत महान उपन्यास के 70 साल

संघर्ष की असली पराजय आत्मा की पराजय है और सभी श्रेष्ठ मानवतावादी कलाकारों की भांति हावर्ड फास्ट के यहां भी आत्मा कभी पराजित नहीं होती, उसका अजेय स्वर कभी मन्द नहीं पड़ता। दास युग के बाद भी वह आदिविद्रोही, वह स्पार्टकस वह हमारा पुरखा लौटा है और बार-बार लौटा है, करोड़ों की संख्या में लौटा है जहां-जहां भी न्याय और स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिये संघर्ष हुए हैं और रक्त बहा है, स्पार्टकस वहां मौजूद रहा है।

Read More

नत ग्रीव, धैर्य धन: एक रिपोर्टर की नज़र से देखें सौ दिन का किसान आंदोलन

किसान नेताओं का किसानों पर दबाव होने के बजाय अब किसानों का दबाव किसान नेताओं पर कायम हो चुका है। किसानों के बीच अब यह आम सहमति बन चुकी है कि वे कानून बिना वापस कराए आंदोलन से उठने वाले नहीं हैं। सरकार के खिलाफ अविश्वास की लकीर भी मोटी होती जा रही है। यह खाई आने वाले दिनों में सरकार पाट पाएगी, इसकी उम्मीद न के बराबर है।

Read More

एक लड़ाई मुहब्बत की: यलगार परिषद 2021 में अरुंधति रॉय का भाषण

हमें उन फंदों से सावधान रहना होगा, जो हमें सीमित करती हैं, हमें बने-बनाए स्टीरियोटाइप सांचों में घेरती हैं. हममें से कोई भी महज अपनी पहचानों का कुल जोड़ भर नहीं है. हम वह हैं, लेकिन उससे कहीं-कहीं ज्यादा हैं. जहां हम अपने दुश्मनों के खिलाफ कमर कस रहे हैं, वहीं हमें अपने दोस्तों की पहचान करने के काबिल भी होना होगा. हमें अपने साथियों की तलाश करनी ही होगी, क्योंकि हममें से कोई भी इस लड़ाई को अकेले नहीं लड़ सकता.

Read More

मेरी यादों में मंगलेश: पांच दशक तक फैले स्मृतियों के कैनवास से कुछ प्रसंग

एक दिन पहले ही मैंने फोन पर किसी का इंटरव्यू किया था और फोन का रिकॉर्डर ऑन था। दो दिन बाद मैंने देखा कि मेरी और मंगलेश की बातचीत भी रिकॉर्ड हो गयी है। उसे मैंने कई बार सुना- ‘‘आनंद अभी मैं मरने वाला नहीं हूं’’ और सहेज कर रख लिया।

Read More

असाधारण, अप्रत्याशित, अभूतपूर्व: एक नज़र में 2020 का पूरा बहीखाता

एक ऐसा वर्ष जो चार जीवित पीढ़ियों ने अपने जीते जी नहीं देखा! एक ऐसा वर्ष जिसकी न हमने कल्पना की, न आगे करेंगे। 2020- असामान्य, अप्रत्याशित और अभूतपूर्व साल, जिसे हम भूलना चाहेंगे पर भुला नहीं पाएंगे। एक परिक्रमा पूरे वर्ष की घटनाओं के आईने में।

Read More

पूंजी-विस्तार और संसाधनों की लूट के बीच हाशिये की औरतों की जिंदगी, श्रम और प्रतिरोध

जाति, जातीयता, वर्ग के पदानुक्रम और राज्‍य के प्रभुत्‍व सहित कलंकीकरण के सभी औज़ारों के साथ मिलकर पितृसत्‍ता औरतों के श्रम का शोषण करती है, उनकी आवाजाही व मेहनत पर नियंत्रण कायम करती है। नतीजतन, साधनों-संसाधनों तक उनकी पहुंच को और कम कर देती है।

Read More

सड़क से सलाखों तक: CAA विरोधी आंदोलन की पहली बरसी पर मऊ में हुए दमन की रिपोर्ट

16 दिसंबर 2019 को मऊ शहर में भी व्यापक तौर पर विरोध दर्ज किया गया। यूपी में मऊ पहला जिला था जहां से आम जनता इस असंवैधानिक नागरिकता कानून के खिलाफ बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरी जिसके बाद देखते-देखते पूरा सूबा आंदोलन में शामिल हो गया। आन्दोलन की बढ़ती व्यापकता से डर कर योगी सरकार ने गैंगेस्टर, गुंडा एक्ट, जिलाबदर, रासुका जैसे हथियार इस्तेमाल किए।

Read More

नयी संसद का भूमिपूजन: आधुनिक लोकतंत्र और संगठित धर्म के बीच आवाजाही का सवाल

प्रधानमंत्री बारंबार संसद भवन को लोकतंत्र के मंदिर की संज्ञा देते रहे हैं किंतु मंदिर की भूमिका धर्म के विमर्श तक ही सीमित रहनी चाहिए। नए संसद भवन को तो स्वतंत्रता, समानता, न्याय और तर्क के केंद्र के रूप में प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए।

Read More

ये सात दिन: किसानों के राजनीतिक आंदोलन में रामलीला मैदान के निरंकारी प्रेत की वापसी

आंदोलन आगे भी ले जाते हैं, पीछे भी। ऊपर भी ले जाते हैं, नीचे भी। मौजूदा आंदोलन केवल किसानों का आंदोलन नहीं है, इस मुल्‍क के मुस्‍तकबिल को तय करने का आंदोलन है। अब खतरा इस बात का है कि इसे किसानों की एक अदद मांग तक लाकर न पटक दिया जाय।

Read More
A Rabari Woman

लोकतंत्र में हिस्सेदारी और आज़ादी के अनुभव: घुमंतू और विमुक्त जन का संदर्भ

पिछले 12 अक्टूबर 2020 को भारत भर के घुमंतू एवं विमुक्त समुदाय के बुद्धिजीवियों, नेताओं और शोधकर्ताओं ने 1871 के ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ की 150वीं वर्षगाँठ मनाने का निर्णय लिया है। यह भारतीय इतिहास का कोई गौरवशाली क्षण नहीं है बल्कि यह अन्याय और हिंसा की राज्य नियंत्रित परियोजनाओं का सामूहिक प्रत्याख्यान है।

Read More