जुमलों के खात्मे की आहट…


शुक्रवार की शाम छह बजे देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने तीनों सेना प्रमुख की मौजूदगी में एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया.  उन्होंने अपनी संक्षिप्त प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि कोरोना योद्धाओं के सम्मान में 3 मई यानि रविवार को भारतीय वायुसेना फ्लाइपास्ट करेगी, थलसेना हर जिले में बैंड बजाएगी और नौसेना अपने जहाजों को रोशन करेगी.  फ्लाइपास्ट श्रीनगर से त्रिवेंद्रम और डिब्रूगढ़ से कच्छ के बीच होगा जिसमें ट्रांसपोर्ट और फाइटर एयरक्राफ्ट शामिल होंगे.

सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने बताया कि फ्लाइपास्ट के दौरान उन अस्पतालों पर हेलिकॉप्टर से फूल बरसाये जाएंगे, जो कोरोना वायरस के मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं. साथ ही, सशस्त्र बल उसी दिन पुलिस मेमोरियल पर जाकर फूल-माला भी चढ़ाएंगे. इसके साथ-साथ आर्मी लगभग हर जिले में कोविड अस्पतालों के पास माउंटेड बैंड बजाएगी. नौसेना भी कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में अपने जंगी जहाजों पर रोशनी करेगी.

जनरल रावत ने कहा कि “हम सभी कोरोना वॉरियर्स का शुक्रिया अदा करते हैं. डॉक्टर, नर्स, सफाईकर्मी, पुलिस, होमगार्ड, डिलिवरी बॉय और मीडिया, सरकार का यह संदेश जनता तक पहुंचा रहे हैं कि मुश्किल वक्त में भी जिंदगी को कैसे जारी रखना है”. जनरल रावत ने कहा कि “सशस्त्र बल इस वक्त देश के साथ मजबूती के साथ खड़ा है. हम यह लड़ाई जीतेंगे तो यह देश के हर नागरिक के अनुशासन और सब्र के चलते होगा. हमारी तरफ से कुछ विशेष गतिविधियां होंगी, जिसका पूरा राष्ट्र गवाह बनेगा”.

उपर्युक्त बातों पर अगर सरसरी तौर पर निगाह डालें तो लगता है कि सेना के तीनों विभागों का यह संयुक्त प्रयास है जिसमें वे सब मिलकर कोरोना से लड़ रहे योद्धाओं के लिए सचमुच आदर प्रकट करने के लिए देश की जनता के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं. लेकिन क्या यह सचमुच वही है जो कहा गया है या जिसका प्रचार किया जा रहा है?

अगर कोरोना से डेढ़ महीने से अधिक समय से भारत की ‘लड़ी जा रही जंग’ पर  गौर करें तो हमें पता चलता है कि इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने 18 मार्च को की थी जिसमें उन्होंने 22 मार्च को पूरे देश में “जनता कर्फ्यू” लगाने की बात कही. शायद वह पूरे देश की नब्ज़ टटोलना चाहते थे कि उनकी बातों का कितना असर हो सकता है.

“जनता कर्फ्यू” की अपार सफलता के बाद प्रधानमंत्री 24 मार्च को एक बार फिर रात के आठ बजे अवतरित हुए. इस बार उन्होंने देश की जनता से अपील की कि कोरोना से लड़ने के लिए आप अपना तीन हफ्ता हमें दें. उसी संबोधन में उन्होंने रात के 12 बजे से पूरे देश को तीन हफ्ते के लिए लॉकडाउन कर दिया. लॉकडाउन के दौरान दूसरी बार वह फिर टीवी पर अवतरित हुए और इस बार उन्होंने मजदूरों को हुई परेशानी के लिए ‘उनसे माफी मांगी’ और जनता से अपील की कि 5 अप्रैल को रात के नौ बजे पूरे घर की बिजली बंद कर दें और नौ मिनट के लिए बालकनी में आकर मोमबत्ती या रोशनी जलाएं.

यह प्रधानमंत्री  मोदी द्वारा देश की जनता की नब्ज़ टटोलने का दूसरा अवसर था. पूरा देश उस दिन मोमबत्ती के साथ-साथ पटाखे लेकर हुड़दंग मचाता रहा और ‘गो कोरोना गो’ के नारे लगाता रहा. तीसरी बार प्रधानमंत्री मोदी अप्रैल की 14 तारीख को अवतरित हुए. इस बार उन्होंने लॉकडाउन को सफल बनाने के लिए जनता को धन्यवाद दिया और अपील की कि ‘आपके हित के लिए’, ‘जनता की भलाई के लिए’ लॉकडाउन को दो हफ्ते फिर से बढ़ाया जा रहा है. इस बार उन्होंने एक नया जुमला- “जान भी जहान भी”- हवा में ज़ोर से उछाला!

देश की बहुसंख्य जनता बदहवास, भूखे-प्यासे डेढ़ महीने से किसी भी कीमत पर अपने घर पहुंचने को परेशान थी, लॉकडाउन के पहले चरण में ही लाखों मजदूर पैदल ही हजारों किलोमीटर दूर अपने घर के लिए पैदल निकल पड़े थे. इनमें बहुतों की तो भूख-प्यास से मौत हो गयी लेकिन सरकार की तरफ से उनके रहने, खाने-पीने और जीवनयापन का कोई सार्थक उपाय नहीं किया गया. पूरे देश में केरल को छोड़कर हर इंतजाम लॉकडाउन के डेढ़ महीने के बाद भी अधूरा और हास्यास्पद लग रहा है.  पूरे देश में लगातार कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. कोरोना से प्रभावित मरीजों की सेवा में लगे स्वास्थ्यकर्मियों के लिए अधिकतर जगह मूलभूत सुविधा भी मुहैया नहीं हो सकी है. डेढ़ महीने के बाद केन्द्र सरकार के खिलाफ विद्रोह अपने चरम पर पहुंच गया है. कई जगहों से ऐसी भी खबरें आ रही है कि मजदूरों ने खाने-पीने से यह कहते हुए मना कर दिया है कि अगर उन्हें घर नहीं भेजा जाता है तो वे बिना खाये जान गंवा देंगे. कुल मिलाकर देश के विभिन्न भागों में फंसे श्रमिक विद्रोह पर उतर आये हैं. कई जगहों से हिंसा की खबरें तो पहले से आ रही थीं. 

जब स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गयी हो, मजदूर विद्रोह पर उतर आया हो, सरकार के खिलाफ़ पूरे देश में अविश्वास का माहौल हो, सरकार की विफलता सबको दिखायी पड़ रहा हो और खुद प्रधानमंत्री के तीन बार कोरोना को हराने के लिए लॉकडाउन की अपील का पूरा पालन करने के बाद भी कोई सार्थक परिणाम न निकला हो तो सरकार यह समझ ही नहीं पा रही है कि अब करना क्या चाहिए. 

सरकार ने अपनी इसी विफलता को ढंकने के लिए इस बार सेना को अपने पक्ष में उतार दिया. प्रधानमंत्री मोदी के तीन बार अपील करने के बाद भी देश में कोरोना के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. उन्हें शायद यह अहसास हो गया था कि अगर वे जनता के बीच चौथी बार जाएंगे तो कहीं वे विद्रोह पर न उतर आएं. इसलिए तीनों सेना के प्रमुख जब प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद थे तो इसमें यह संदेश देना भी बहुत साफ था कि इस कार्रवाई में सेना के तीनों अंग साथ हैं. इस कांफ्रेंस का शायद यह भी मतलब है कि अगर जनता किसी तरह का विद्रोह करने की कोशिश करेगी तो 3 मई को पूरे देश में चक्कर काट रही भारतीय वायुसेना के जवान हर एक नागरिक पर नजर गड़ाये हुए रहेंगे और जरूरत पड़ेगी तो उस विद्रोह को तत्काल हर कीमत पर दबाने में सक्षम भी होंगे. 

प्रधानमंत्री मोदी सीधे तौर पर नहीं बल्कि परोक्ष रूप से देश की जनता को यह भी संदेश देने में सफल रहे हैं कि राष्ट्र संकट में है तो सेना की भूमिका सर्वोपरि हो जाती है. और अगर जरूरत पड़ी तो वह कठोरता से सबसे निपटने के लिए भी तैयार है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत चतुराई से एक काम यह भी कर दिया है कि वे या फिर उनकी पार्टी के किसी भी नेता ने जनता के सामने आये बगैर लॉकडाउन को दो हफ्ते के लिए उस वक्त बढ़ा दिया जब जनरल बिपिन रावत ‘राष्ट्र’ को संबोधित कर रहे थे.

हां, जनरल रावत की वह कांफ्रेंस देश के विरोधी दलों के नेताओं के लिए भी एक संदेश थी कि आप अपनी सीमा का अतिक्रमण न करें क्योंकि अब ‘सेना देश के बचाव में उतर आयी’ है, क्योंकि हम सेनावालों ने भी पुलिस के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया है. इसलिए 3 तारीख को पुलिस मेमोरियल पर फूल-माला भी चढ़ाने जा रहे हैं. अर्थात जो काम पुलिस नहीं कर पा  रही है, अगर जरूरत पड़ी तो हम उसे पूरा कर देंगे. 

वैसे आजकल हमारे देश में हर काम नकल से होता है. उदाहरण के लिए, मोदीजी ने “जनता कर्फ्यू” का आइडिया स्पेन से लिया था जिसमें बालकनी से शंख, थाली और लाइट जलाने की अपील की गयी थी. इस बार भारतीय सेना ने फूल बरसाने का आइडिया अमेरिका से लिया है. तीन दिन पहले अमेरिकी सेना ने भी कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में फ्लाइपास्ट किये थे. यह न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी और फिलाडेल्फिया में हुआ था. इसमें अमेरिकी आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के 12 फाइटर जेट शामिल थे. यह शो 40 मिनट का था जिसके लिए अमेरिकी सैनिकों ने एक महीने तक तैयारी की थी.

हमारी तैयारी कितने दिनों की है, इसकी जानकारी अब तक नहीं है. वैसे यह आइडिया नकल भले हो, लेकिन लोकतंत्र के लिए खतरनाक तो है ही.  


जितेन्द्र कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं


About जितेन्द्र कुमार

View all posts by जितेन्द्र कुमार →

5 Comments on “जुमलों के खात्मे की आहट…”

  1. Having read this I thought it was really enlightening.
    I appreciate you taking the time and effort to put this short article together.
    I once again find myself personally spending way too much time both reading and
    commenting. But so what, it was still worthwhile!

  2. May I simply say what a comfort to uncover someone who truly understands what they are
    discussing online. You definitely know how to bring a problem to light and make it important.
    More and more people ought to read this and understand this side of your story.
    It’s surprising you aren’t more popular because you certainly
    have the gift.

  3. Thanks for one’s marvelous posting! I genuinely enjoyed reading it, you might be a great
    author.I will ensure that I bookmark your blog and will often come
    back from now on. I want to encourage one to continue your great work, have a
    nice evening!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *