साधो, पूँजी, राजनीति और धर्म के त्रिगुट की ताकत हो, तो सच्चा ज्योतिषी बना जा सकता है। भविष्यवाणी कर उसे सच साबित करने वाली परिस्थितियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं। फिलहाल अमेरिका से बड़ा ज्योतिषी नजर आता है। रूस और चीन, अमेरिका से बड़ा ज्योतिषी बनने की कोशिश में लगे हुए हैं। इन देशों के बीच वाक् युद्ध होता है, तो दुनिया को लगता है कि अब युद्ध होगा। साधो, असल में वे अपनी-अपनी भविष्यवाणियों को सच साबित करने के लिए लड़ते हैं।
इधर एक ज्योतिषी हैं। दूसरों के भविष्य में खूब ताक-झाँक करते हैं, पर अपना भविष्य नहीं देख पाते। एक बार उनसे फिरौती मांगी गयी। फिरौती न देने पर बदमाशों ने उनके अपहरण की भविष्यवाणी कर दी। ज्योतिषी ने पुलिस को सूचना दी। कुछ दिन बाद उनका अपहरण भी हो गया। पुलिस ने कुछ नहीं किया? किया न। अपहरणकतार्ओं को रंगे हाथ या मुठभेड़ के दौरान पकड़ने के लिए अपहरण की तिथि और समय की गणना मिलने का इंतजार किया। ज्योतिषी अपने भविष्य की गणना नहीं दे पाये। अपहरण हो गया। अपहरण से पुलिस को भी सदमा लगा। ‘गुडवर्क’ नहीं हो पाया। नहीं तो प्रमोशन हो जाता।
साधो, 2008 में सबसे बड़ा ज्योतिषी अमेरिका भी अपने आप को बचा नहीं पाया था। कई बैंकों के डूबने की भविष्यवाणी की गयी थी। बैंक डूब भी गये। बैंक, पूँजीपतियों को दिये कर्ज से डूबे। बैंक डूब गये तो कर्ज की वसूली कौन करेगा? बैंक डूब गये, कर्जदार पार उतर गये।
साधो, ऐसा भी होता है, जब डूबकर पार उतरा जाता है- ‘खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वाकी धार,, जो उबरा सो तो डूब गया, जो डूबा सो पार।’ पूँजी प्रेमी आये दिन डूब कर पार हो जाने का करतब दिखाते हैं। हमारे यहां तो अरबों-खरबों के ऐसे-ऐसे कर्जदार हैं, जो हिंद महासागर में डुबकी मारते हैं, निकलते हैं अटलांटिक महासागर में। सात समुंदर पार। किसान, मजदूर हजार-दस हजार के कर्ज से उबरना चाहते हैं। सो डूबकर दम तोड़ देते हैं।
साधो, पिछले दिनों एक सूचना आयी- सात हजार करोड़पतियों ने देश छोड़ा। चीन के बाद देश छोड़ने वाले अति धनाढ्यों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या। इस सूचना ने विश्व स्तर पर हमारे देश का मान बढ़ा दिया। चीन थरथर काँप रहा है। उसे डर सता रहा है, कहीं देश छोड़ने के मामले में भारतीय करोड़पति उसे पीछे न छोड़ दें। दूसरे देश विज्ञान और तकनीकी भी एक्सपोर्ट करते हैं। हम सिर्फ करोड़पति एक्सपोर्ट करते हैं। उनमें बैंकों में जमा आम जनता का पैसा लूटने वाले करोड़पति भी हैं।
इतिहास गवाह है, विदेशी आक्रमणकारी लूट-पाट के लिए हमारे देश पर आक्रमण करते थे। जिनका खानदानी पेशा लूट था, वे लूट के माल के साथ वापस अपने देश चले जाते थे। अभी जो देश छोड़ रहे हैं, उन्हें इतिहास लुटेरों की संज्ञा न दे, इसके लिए उनके एक्सपोर्ट का ‘सिस्टम’ बनाया गया है। वैश्विक लुटेरों की रक्षा के लिए बना सिस्टम उन्हें नागरिकता की व्यवस्था देता है- उस देश से प्रत्यर्पण संधि नहीं है।
साधो, ज्योतिषी बनने की क्षमता हासिल नहीं कर पाये देशों की दशा बिगाड़े रहो, असुरक्षा का डर बरकरार रखो, हथियार बिकते रहेंगे। स्वास्थ्य, शिक्षा आदि नागरिकों की बुनियादी आवश्यकताओं से अधिक बजट हथियार खरीद का बनता रहेगा। साधो, उधर सबसे बड़ा ज्योतिषी बनने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा है। इधर सबसे बड़ा हथियार खरीदार बनकर बड़े ज्योतिषियों का खास बनने की प्रतिस्पर्धा है। मुनाफे के लिए बुने गये परजीवी स्टेट के जाल में फँसकर नागरिक को स्वीकार करना पड़ता है- जीवन ही नहीं बचेगा तो बुनियादी अधिकार लेकर क्या करेंगे? खरीदो हथियार।
साधो, सफलता त्याग मांगती है। आर्थिक सफलता की मांग बड़ी है; जान भी मांगती है। आर्थिक रूप से बड़ा आदमी बनने के लिए ह्रदय का त्याग करना पड़ता है। प्रेम, ममता, दया धारण करने वाले ह्रदय का त्याग कर छल, कपट, प्रपंच, ईर्ष्या, उन्माद धारण करने वाला पूँजीवादी हृदय ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है। आर्थिक रूप से बड़ा आदमी बिना हृदय के भी जिंदा रह लेता है। साधो, सबसे अधिक सुखी वे हैं, जो हृदय की बीमारियों से मुक्त हैं। प्रेम, ममता, दया हृदय की बीमारियां हैं, जो सुख और तरक्की में बाधक हैं। जो इन बीमारियों से मुक्त हैं, वे तरक्की कर रहे हैं। हथियारों के दम पर आर्थिक महाशक्ति बन चुके कई देश बिना हृदय के ही चल रहे हैं। लोकतंत्र की स्थापना के बाद से हमारी सरकारें भी हमें केवल आर्थिक रूप से बड़ा बनाने के कार्य में लगी हुई हैं।
साधो, आदमी की जेब में जब पैसे अधिक हो जाते हैं, तब वो प्रयोगधर्मी बन जाता है। वो एक सीट वाली मोटरसाइकिल खरीदता है। दो सीट वाली कार खरीदता है। अमीरों का मनोरंजन भी महंगा होता है। वे मनोरंजन के लिए स्नूकर, बिलियर्ड और गोल्फ खेलते हैं। अमीरों का महंगा मनोरंजन उनका शौक कहा जाता है। अमीरों की नकल करने के लिए कोई कर्ज लेकर महंगा शौक पाले, तो उसे गरीब गुंडा कहा जाता है।
साधो, आदमी की तरह आर्थिक रूप से शक्तिशाली और विकसित देश भी मनोरंजन के लिए नये प्रयोग करते रहते हैं। विकसित देश के वैज्ञानिक भी मनोरंजन के महंगे शौक पालते हैं। विकसित देशों के वैज्ञानिक एलियन की खोज कर अपना मनोरंजन कर रहे हैं। उनका मनोरंजन देख आर्थिक रूप से कमजोर देश दुखी हो जाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर देश गरीब गुंडा बनने के लिए विकसित देशों के आगे झोली फैलाये खड़े हो जाते हैं- मालिक! कर्ज दो तो हम भी आपकी तरह मनोरंजन का महंगा शौक पालें।
साधो, आर्थिक रूप से कमजोर एक देश रेल की पटरी बिछा रहा है। तभी आर्थिक रूप से सुदृढ़ विकसित देश चाँद पर पहुँच गया। ये देख आर्थिक रूप से कमजोर देश रेल की पटरी बिछाना छोड़ विकसित देश के आगे झोली फैलाकर खड़ा हो जाता है- मालिक! कर्ज दो तो मैं भी चाँद पर घूम आऊं।
आर्थिक रूप से कमजोर एक देश सभी नागरिकों के लिए घर बनवाने की योजना बना रहा है। तभी आर्थिक रूप से सुदृढ़ विकसित देश चाँद पर इंसानी बस्ती बसाने की योजना तैयार करने लगता है। ये जान आर्थिक रूप से कमजोर देश विकसित देश के आगे झोली फैलाकर खड़ा हो जाता है- मालिक! कर्ज दो तो मैं भी अपने देशवासियों के लिए चाँद पर घर बनवा दूं।
आर्थिक रूप से कमजोर देश प्राकृतिक आपदाओं के पूवार्नुमान के लिए सैटेलाइट छोड़ रहा है। तभी आर्थिक रूप से सुदृढ़ विकसित देश मंगल ग्रह पर उतर गया। ये देख आर्थिक रूप से कमजोर देश प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले जान-माल की चिंता छोड़ विकसित देश के आगे झोली फैलाकर खड़ा हो जाता है- मालिक! कर्ज दो तो मैं भी मंगल की यात्रा कर आऊं।
साधो, आर्थिक रूप से कमजोर देश के नागरिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अभी तक उनके देश में सभी नागरिकों को स्वास्थ्य, शिक्षा और पेयजल जैसे मूलभूत अधिकार भी उपलब्ध नहीं हो सके हैं। पर जैसे ही देश मंगल ग्रह पर अपना रोबोट उतारता है, नागरिक भी सभी चिंताओं से मुक्त हो तालियां बजाने लगते हैं। नागरिक कई महीनों तक इस कल्पना में खोये रहते हैं कि कब वहां इंसान उतरेगा? कब वहां मैं उतरूंगा? अंतरिक्ष यात्री के सूट में मेरी सेल्फी कैसी लगेगी?
साधो, विकसित बनाने के आंकड़े तैयार करने वाली एजेंसियां भी ज्योतिषी हैं। वे आर्थिक महाशक्तियों की शाखा हैं। उन्होंने ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में हमारी रैंकिंग बढ़ा दी है। अर्थात हमारे यहां व्यापार करना और आसान हो गया है। किसका व्यापार करना आसान हुआ है, ये नहीं बतातीं।
साधो, रैंकिंग में सुधार के माध्यम से वे बताती हैं कि लूट का व्यापार करना और आसान हो गया है। विकास के नाम पर जनता से लूट ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का भारतीय संस्करण है। लूट जितनी बढ़ेगी, रैंकिंग उसी अनुपात में सुधरेगी। लाखों करोड़ का कर्ज बट्टे खाते में डाल देने और कर्जदारों को दिवालिया घोषित करने से बिजनेस ‘ईजी’ हो जाता है। लाखों करोड़ के कर्ज की भरपाई जनता से कर लेने से ‘डिफिकल्टीज ऑफ बिजनेसमैन’ कम हो जाती हैं।
साधो, विकास आँकने वाली एजेंसियों ने कई देशों को तीसरी दुनिया का देश घोषित किया है। वे देश पहली दुनिया के देशों के अप्रत्यक्ष उपनिवेश हैं। उन्हें उपनिवेश बनाये रखने के लिए कर्ज के बोझ से उनकी रीढ़ की हड्डी दबाये रखते हैं। विकासशील-विकासशील कहकर उन्हें कर्ज लेने के लिए उकसाते रहते हैं। अपना पिछड़ापन दूर करने के लिए कई देश गरीब गुंडा बन गये हैं। साधो, विकासशील से विकसित बनने के लिए तीसरी दुनिया के देशों को गरीबी मिटानी होगी। ‘जो अच्छा लगे उसे खा जाने वाले’ एक दिन गरीबों को भी खा जाएंगे। गरीबी मिट जाएगी। देश आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा।
साधो, विकसित की श्रेणी में ‘अपग्रेड’ करने वाली बुलेट ट्रेन चलाने के लिए जापान हमें करोड़ों डॉलर का कर्ज दे रहा है। अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य पर नजर रखने वाले इस कर्ज को चिंता का विषय बता रहे हैं। साधो कर्ज चिंता का विषय नहीं है। कर्ज ‘रेपुटेशन’ का विषय है। कर्ज लेने के मामले में हमारी रेपुटेशन अच्छी है, इसलिए हमें आसानी से कर्ज मिल जाता है। जापान का कर्ज हम नहीं चुका पाये तो क्या होगा? ज्यादा से ज्यादा यही होगा कि जापान हमारे ऊपर दो-चार प्रतिबंध लगा देगा। तब हम किसी और देश से कर्ज ले लेंगे। क्योंकि कर्ज रेपुटेशन का विषय है।
साधो, बैंक भी उसी को कर्ज देता है, जिसकी रेपुटेशन अच्छी होती है। साथ ही ऐसे कर्जदार को बैंक सम्मानित ग्राहक भी कहता है। बड़ा कर्ज लेने वाला सम्मानित ग्राहक अगर कर्ज वापस नहीं भी करता है, तो बैंक के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर नहीं पड़ता है। वही बैंक हजार-दस-हजार का कर्ज बकाया रखने वालों के घर कानूनी नोटिस भेज देता है। नोटिस की अनदेखी की तो कुर्की की डुगडुगी भी बजवा देता है। हजार-दस-हजार का बकाया रखने वाले कर्ज ना चुकाएं तो बैंक की नींव दरकने लगती है। क्यों?
क्योंकि बड़ा कर्ज सम्पन्नता का सूचक है। छोटा कर्ज विपन्नता का। बड़ा कर्ज कद बढ़ाता है। व्यक्तित्व में चार चाँद लगाता है। छोटा कर्ज कद घटाता है। व्यक्तित्व में चार दाग लगाता है।
साधो, हजारों करोड़ का कर्ज लेने वालों की गिनती विश्व के अमीरों में होती है। एक बैंक दूसरे बैंक से कहता है- देखा, मेरा कर्जदार अमीरों की सूची में फलाँ नम्बर पर है। दूसरे बैंक को ये बात चुभ जाती है। वो भी एक सम्मानित ग्राहक को हजारों करोड़ का कर्ज दे देता है। फिर पहले वाले बैंक से कहता है- अब बोलो, मेरा कर्जदार अमीरों की सूची में फलाँ नम्बर पर पहुँच गया।
साधो, हजारों करोड़ का कर्ज लेने वाले सम्मानित ग्राहकों की देखा-देखी गाँव, मोहल्लों और कस्बों में भी कर्ज के सहारे सम्मानित बनने वालों की संख्या बढ़ रही है- हमें तो नम्बर वन बनना है भई! भले ही कर्ज लेने में नम्बर वन बन जाएँ! आफ्टर आल, बैंक सम्मानित ग्राहक का खिताब भी देता है!
साधो, ईएमआइ के सहारे फ्लैट, कार खरीदने के बाद रेपुटेशन में चार चाँद लगाने वाला मोबाइल भी ईएमआइ पर मिलने लगा है। ईएमआइ के सहारे अपनी जीवन गाड़ी में पेट्रोल भरवाने वाले से सौ दो सौ रुपये उधार माँगो, तो सिर से पाँव तक ईएमआइ के कर्ज में डूबा कर्जदार समझाते हुए कहता है- कब तक उधार के सहारे जीवन चलेगा?!!! पर साधो, चिंता की कोई बात नहीं। क्योंकि कर्ज चिंता का विषय नहीं है। कर्ज रेपुटेशन का विषय है।
साधो, पूँजी के ज्योतिषियों ने भारत को विश्व की सबसे तेजी से उभरती आर्थिक शक्ति बता-बता कर इसे विश्व का सबसे बड़ा गरीब गुंडा बना दिया है।