तन मन जन: अपने अन्दर के इन्सान को जगाइए, आपकी इम्यूनिटी भी मजबूत हो जाएगी!


कोरोना वायरस संक्रमण की दहशत को अब दो वर्ष होने को है। वर्ष 2020 के अंत और 2021 के आरम्भ में स्थिति कुछ थमने लगी थी, लेकिन तभी संक्रमण की दूसरी बड़ी लहर ने हालात बेकाबू कर दिए। सन् 2021 के अंत तक उम्मीद की जा रही थी कि स्थिति सुधरने लगेगी, लेकिन तभी कोरोना वायरस संक्रमण की तीसरी लहर ”ओमिक्रॉन“ ने पूरी दुनिया में फिर से आतंक फैला दिया।

महीनों से घर में कैद लोगों ने दीपावली, ईद या अब क्रिसमस के बहाने उम्मीद की थी कि खुशियां लौट आएंगी लेकिन महामारी के संक्रमण फैलाने की आशंका ने लोगों को फिर से भय में ला दिया है। इस कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से आम लोगों को तो छोड़िए, चिकित्सकों और वैज्ञानिकों में भी आशंका और चिंता व्याप्त हो गयी है। देश के कई राज्यों में फिर से आंशिक कर्फ्यू या पाबन्दी लगा दी गयी है।

टीकाकरण की स्थिति

यह भारत में विकसित तीसरा टीका है जिसे हैदराबाद के बायोलाजिकल-ई ने बनाया है।

कोरोना वायरस संक्रमण के ओमिक्रॉन वेरियन्ट की चर्चा होते ही बिल गेट्स के ग्लोबल एलायन्स ऑन वैक्सीनेशन एन्ड इम्यूनाइजेशन (गावी) के द्वारा वित्तपोषित दो नयी कोविड-वैक्सीन (कोर्बेवैक्स तथा कोवैक्स) को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिल गयी। भारत के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने ट्वीट कर जानकारी दी कि यह भारत की पहली स्वदेशी आरबीडी प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन है। यह भारत में विकसित तीसरा टीका है जिसे हैदराबाद के बायोलाजिकल-ई ने बनाया है।

दरअसल भारत में दी जा रही लगभग हर वैक्सीन के साथ बिल ग्रेट्स की फंडिंग जुड़ी है। सनद रहे कि कोवैक्सीन की निर्माता कम्पनी भारत बायोटेक को नवम्बर 2019 में ही लगभग 19 मिलियन डॉलर दिये जा चुके थे। ऐसे ही सीरम इन्स्टीच्यूट सन् 2012 से ही बिल गेट्स फाउन्डेशन से अनुदान प्राप्त कर रहा है। बायोलाजिकल-ई लिमिटेड भी सन् 2013 से बिल ग्रेट्स फाउन्डेशन से अनुदान ले रहा है। अभी अप्रैल 2021 में इसे 37 मिलियन डॉलर की राशि मिली है। सवाल है कि वैक्सीन और वैक्सीन बनाने की कम्पनियों के पीछे कारर्पोरेट की इतनी दिलचस्पी क्यों है? यह रहस्य जानना और समझना इतना आसान नहीं है।

इधर एक सामाजिक कार्यकर्त्ता अमित कुमार ने एक आरटीआइ के माध्यम से पता किया है कि भारत सरकार ने 1 मई 2021 से 20 दिसंबर 2021 के दौरान मुफ्त टीकाकरण के नाम पर अब तक कोई 19675 करोड़ खर्च किये हैं। यानि अभी तक 20 हजार करोड़ रुपये भी खर्च नहीं हुए हैं जबकि वर्ष 2021-22 के बजट में कोविड-टीकारण के लिए 35 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। वह तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसकी डांट-फटकार के बाद ही सरकार यह रकम खर्च करने की स्थिति में आयी। अब आइए, यह समझ लें कि यदि देश में 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को टीका लगाया जाय तो कितना खर्च आएगा।

इन्डिया रेटिंग्स एण्ड रिसर्च के आकलन के अनुसार इस पर कुल 67193 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह भारत की जीडीपी का 0.36 फीसद है और इसमें राज्य सरकारों की भी बड़ी हिस्सेदारी होगी। क्या आप जानते हैं कि मुफ्त टीकाकरण के नाम पर सरकार ने जनता को कितना वसूला है? पेट्रोल-डीजल एवं गैस टैक्स बढ़ाकर केन्द्र सरकार ने जनता से एक वर्ष में 4 लाख करोड़ रुपये वसूले हैं। उल्लेखनीय है कि पेट्रौल-डीजल की टैक्स/मूल्य वृद्धि के पीछे मुफ्त टीकाकरण का जुमला फेंका गया था। आटीआइ से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2019-20 में पेट्रोलियम पदार्थों से प्राप्त आय 2,88,313.72 रुपये थी जबकि वर्ष 2020-21 में यही आमदनी बढ़कर 4,13,735.60 रुपये हो गई। यानि खर्च 50 हजार करोड़ तो वसूली 2 लाख करोड़। तो यह है वैक्सीन-तेल का खेल!

देश में लगभग 120 करोड़ लोगों में टीकाकरण के दावे किये जा रहे हैं। सरकारी विज्ञापनों की मानें तो 100 करोड़ से ज्यादा लोगों ने कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव की खुराक (वैक्सीन) लगवा ली है फिर भी कोई इस महामारी से बचाव के लिए आश्वस्त नहीं है। महानगरों को छोड़ दें तो गांवों, छोटे शहरों और आम लोगों में महामारी से बचाव के एहतियात को लेकर अब भी कोई खास जागरूकता नजर नहीं आ रही। शादी, त्योहार, चुनावी रैलियां, जलसे आदि में लोगों की भारी भीड़ इस बात की गवाह है, लेकिन सच तो यह है कि संकट पूर्ववत कायम है। मौत का तांडव कभी भी शुरू हो सकता है।

अभी नवम्बर में जब चिकित्सा वैज्ञानिकों ने दक्षिण अफ्रीका के बोत्सवाना में एक नये प्रकार के कोरोना वायरस का सैम्पल देखा तो दुनिया में इस संक्रमण के ‘‘तीसरी लहर’’ की आशंका तेज हो गयी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वेरिएन्ट को बी.1.1.529 यानि ओमिक्रॉन का नाम दिया है। चिंता की बात यह है कि दिसम्बर के अन्त तक कोरोना वायरस का यह वेरिएन्ट भारत सहित 70 से ज्यादा देशों में पहुंच चुका है।

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का निर्माण करने वाली वैज्ञानिक प्रो. डेम स्परा गिल्बर्ट ने चेतावनी दी है कि हमें कोरोना से भी ज्यादा खतरानाक महामारियों के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने इसके लिए बड़े फंड की जरूरत को भी बताया। प्रो. गिलबर्ट ने कोरोना वायरस के नये वेरिएन्ट ओमि‍क्रॉन के बारे में बताया कि, ”यह वेरिएन्ट थोड़ा अलग प्रकार का वेरिएन्ट है, अत: यह सम्भव है कि वैक्सीन से बनने वाली एन्टीबॉडी या दूसरे वेरिएन्ट के संक्रमण से बनने वाली एन्टीबॉडी ओमिक्रॉन के संक्रमण को प्रभावी तरीके से नहीं रोक पाए?  इसलिए जब तक कि हम इस वेरिएन्ट के बारे में अच्छी समझ नहीं बना लेते सभी को सावधान रहने की जरूरत है।

महामारी की रोकथाम के लिए टीका (वैक्सीनेशन) एक अहम चीज होती है लेकिन केवल टीके की अनिवार्यता से ही महामारी की रोकथाम हो सकती है यह समझ से परे है। एक वायरल संक्रमण को रोकने के लिए उसके संक्रमण की चेन को काटना जरूरी है। कोरोना वायरस संक्रमण में शुरू से ही देखा जा रहा है कि संक्रमण के फैलने के सभी रास्ते सहज रूप से खुले हुए हैं, केवल टीके की अनिवार्यता पर दवाब डाला जा रहा है। जाहिर है सरकार और कम्पनियां महामारी के रोकथाम के नाम पर धंधे और मुनाफे को ज्यादा तवज्‍जो दे रही हैं।

कोरोना वायरस संक्रमण की विडम्बना यह है कि हमारे शरीर का इम्यून तंत्र (प्रतिरक्षा प्रणाली) इस वायरस के सैकड़ों हिस्से को तो पहचान सकता है लेकिन दूसरे छह ऐसे हिस्से हैं जो संक्रमण रोकने में महत्त्वपूर्ण होते हैं और प्रोटीन में होते हैं। ये स्पाइक प्रोटीन कोशिका से वायरस को चिपकाने में मदद करते हैं। खतरा यह है कि यदि वायरस के इस नये वेरियेन्ट के स्पाइक में बदलाव आ गया तो हमारा इम्यून सिस्टम ‘वायरस’ को नहीं पहचान पाएगा और टीकाकरण के बावजूद संक्रमण का खतरा बना रहेगा। कोरोना वायरस संक्रमण के ओमिक्रॉन वेरियन्‍ट को लेकर जो दहशत है वह गैरवाजिब नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इससे चिंतित है। अभी तक इस वेरियन्ट के 30 से ज्यादा म्यूटेशन हो चुके हैं और यह म्यूटेशन स्पाइक प्रोटीन क्षेत्र में हुए हैं जो बेहद चिंताजनक हैं। यदि ओमिक्रॉन का बदलाव खतरनाक हुआ तो वैक्सीन के बावजूद संक्रमण की तबाही मच सकती है। ऐसे में कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के अब तक उपलब्ध सभी टीके (वैक्सीन) की समीक्षा करनी पड़ेगी। इस वेरियन्ट के साथ एक दिक्कत और हो सकती है कि इसका पता लगाने के लिए सामान्य आरटीपीसीआर जांच की जगह ‘‘जिनोम सिक्वेंसिंग’’ तक का सहारा लेना पड़ सकता है।

दो लहरों के अनुभव

कोरोना वायरस संक्रमण के लगभग 20 महीने के अनुभव के बावजूद हमारा सरकारी स्वास्थ्य तंत्र भरोसे के लायक नहीं बन पाया है। सरकारी दावे के अनुसार कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के नाम पर कोई 30 लाख करोड़ से भी ज्यादा रकम खर्च की जा चुकी है लेकिन फिर भी हम इस आशंका से उबर नहीं पा रहे कि स्वास्थ्य की आपात स्थिति में हमारे नागरिक समुचित स्वास्थ्य सेवा सहज प्राप्त कर पाएंगे। सन् 2020 और 2021 के आरम्भिक महीनों में जब देश कोरोना वायरस संक्रमण की पहली और दूसरी लहर का दंश झेल रहा था तब सरकारी स्वास्थ्य सेवा स्वयं वेंटिलेटर पर थी और निजी क्षेत्र के अस्पताल बेशर्म लूट के अड्डे बने हुए थे। बाजार और कारपोरेट अपना घाटा पूरा करने में लगे थे। गैरजरूरी दवाओं की कालाबाजारी और आम लोगों की दहशत की पूरी कीमत वसूली जा रही थी। हमारे राजनेता इसे ‘‘आपदा में अवसर’’ बता रहे थे। लाखों नागरिकों की मौत को देश की बेशर्म राजनीति ने बिना कफन नदियों के किनारे ही मिट्टी में दबा दिया।

इस महामारी के संक्रमण के अनुभवों में एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि इस 20 महीने के दौरान दूसरे कई रोगों की जबर्दस्त उपेक्षा हुई। बच्चों में टीकाकरण के कार्यक्रम बाधित हुए। स्कूलों में मध्याह्न भोजन, बच्चों व गर्भवती महिलाओं के पोषण, पहले से चली आ रही बीमारियों की रोकथाम और इसके उपचार आदि के कार्यक्रम, कैंसर, किडनी व मूत्र सम्बन्धी रोग, मानसिक रोग, दांत व आंख, नाक, कान-गला सम्बन्धी रोगों, मानसिक बीमारियों से ग्रस्त मरीजों की स्थिति और बदतर हो गयी है। कैंसर के विभिन्न रोगियों के कई सामान्य मामले पहले से ज्यादा जटिल हो गए हैं। सामान्य जीवाणु और फंगस से होने वाले रोगों की स्थिति इस कोरोना वायरस ने बिगाड़ दी है। ऊपर से ‘‘लांग कोविड’’ यानि उपचार के बावजूद र्कोरोना पूरी तरह ठीक नहीं हुए रोगियों के गुर्दे और फेफड़े खराब हो चुके हैं, उनके इलाज की दिक्कतों ने भी स्थिति को बिगाड़ दिया है। इस दौर के हालात ने लोगों के जीवन के प्रति अनिश्चितता व आशंका को और बढ़ा दिया है।

इस महामारी ने दुनिया को एक ऐसे समय में अपनी चपेट में लिया है जब विश्व की अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्ती से जूझ रही है। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कारमेन रेनहार्ट कहते हैं, ”कोरोना महामारी से उत्पन्न वैश्विक आर्थिक संकट से उबरने में पांच साल से भी ज्यादा लगेंगे।” कहा जा रहा है कि बीते 20 वर्षों में पहली बारी वैश्विक गरीबी की दर बढ़ेगी। महामारी के चलते दुनिया भर में करीब 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को भीषण गरीबी का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने अपील की है कि सम्पन्न देश गरीब देशों के नागरिकों के लिए खुलकर सामने आएं, लेकिन अन्देशा तो यह है कि मदद के नाम पर अमीर देश आदतन गरीब देशों का शोषण भी कर सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की कॉन्फ्रेस ऑन ट्रेड एन्ड डेवलपमेन्ट के अनुसार इस वायरस से प्रभावित दुनिया की 15 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत भी एक है। हम जानते हैं कि इस संक्रमण के कारण चीन की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा है। बीते 15 महीनों में चीन में उत्पादन में आयी कमी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था     भी प्रभावित हुई है। अनुमान है कि इससे भारत की अर्थव्यवस्था को करीब 34.8 करोड़ डॉलर तक नुकसान उठाना पड़ सकता है। दरअसल, भारत के अधिकांश उद्योग ज्यादातर चीन के बाजार पर निर्भर हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू सामान, कपड़े, कई उपकरण, खिलौने, दवा आदि के उद्योग, यहां तक कि वाहन आदि का उत्पादन चीन की जमीन से ज्यादा होता है। मोबाइल, एलईडी, फ्रिज, टीवी आदि क्षेत्र में तो वैसे ही चीन की बड़ी धाक है। पिछले कुछ वर्षों में भारत की चीन पर व्यावसायिक निर्भरता कुछ ज्यादा ही बढ़ी है। आत्मनिर्भर भारत, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी सरकारी पहलें महज जुमला साबित हुई हैं।

Trade Impact Corona Virus

इसका परिणाम रोजगार के आंकड़ों में साफ दिखता है। देश के आर्थिक हालात और बेरोजगारी पर नजर रखने वाली संस्था सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआइई) का आंकड़ा कह रहा है कि दूसरी लहर की वजह से अप्रैल 2021 में 73.5 लाख लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। मई 2021 में ही 1.53 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गयी थीं। कुल मिलाकर 2.26 करोड़ से ज्यादा लोगों को तो केवल दो महीने में ही अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ गया था। ज्यादातर कम्पनियां अपने कर्मचारियों की संख्‍या और उत्पादन को कम कर रही हैं। कर्मचारियों से कहा जा रहा है कि वे घर से काम करें और पगार भी कम लें।

संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी है कि दुनिया भर में कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से सालाना 2.5 करोड़ लोग अपने रोजगार से वंचित होंगे। यह पहले से जारी वैश्विक आर्थिक संकट में कोढ़ के खाज की तरह सिद्ध होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्थ को इस महामारी की वजह से 3.6 लाख करोड़ डॉलर का झटका लग चुका है।

देश की आधी आबादी की आय के बारे में जो अध्ययन सामने आए हैं वह खौफनाक हैं। विश्व असमानता रिपोर्ट के अनुसार भारत की 50 फीसद आबादी की सालाना औसत आय केवल 53,610 रुपये यानि पांच हजार रुपये प्रति माह से कम रह गयी है। तीस करोड़ से ज्यादा मजदूर और सामान्य श्रमजीवी रोजगार से वंचित हो गए हैं फिर भी सरकारी टैक्स वसूली की बदौलत महंगाई ने सामान्य जन के जले पर नमक छिड़कने का ही काम किया है।

नये साल का खौफ़

उपरोक्त हालात में हमारे सामने अब सन् 2022 खड़ा है। देश के लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि हम इसका स्वागत करें या अपनी फूटी तकदीर पर आंसू बहाएं? आम लोगों के ऊपर महंगाई की मार है, बीमारी/महामारी का आतंक है और सरकार की भेदभावपूर्ण नीति की वजह से सामाजिक अस्थिरता तथा असुरक्षा का माहौल है। चुनाव के बहाने देश जाति/धर्म की लामबन्दी में फंसा है। सब जानते हैं कि महामारी किसी भी जाति या उसका मजहब नहीं देखती फिर भी नेताओं और कथित धार्मिक गुन्डों के बिगड़े बोल नागरिकों के बीच की समरसता को बिगाड़ रहे हैं। इसे ही कहते हैं विनाशकाले विपरीत बुद्धि। नेताओं की अय्याशी में कोई कमी नहीं है। सरकारी आयोजनों को देखकर यह सहज समझा जा सकता है। सरकार की कई अनावश्यक व महंगी परियोजनाएं महज अहंकार या तुष्टिपूर्ति के उदाहरण बन गयी हैं, फिर भी देश के लोगों का जीवट है जो उम्मीद नहीं छोड़ता। हिन्दुस्तान के लोग भीषण त्रासदी से भी गुजर कर उम्मीद नहीं छोड़ते।

तन मन जन: कोरोना की तीसरी लहर के लिए कितना तैयार हैं हम?

नये वर्ष 2022 का स्वागत करिए और उम्मीद रखिए कि यदि हमने हमारी महान मानवीय परम्परा को ठीक से पहचान कर विश्व बन्धुत्व, प्रेम, करुणा, भाईचारा, त्याग, सहिष्णुता, आपसी सहयोग के मूल्यों को जीवन में अपना कर पूरी संजीदगी से मानवीय समाज की रचना का संकल्प ले लिया तो धार्मिक व जातीय विद्वेष फैलाने वाले वोटबटोरू लफंगों से मुक्ति मिल सकती है और एक सुदृढ़-बेहतर समाज के निर्माण का रास्ता खुल सकता है।

महामारी तो एक बहाना है। बीते दो वर्षों को याद कीजिए। महामारी की आड़ में हमारे राजनेताओं ने हमें जाहिल, गंवार, भिखारी, लुटेरा, लाचार बनाने की कितनी कोशिशें कीं। हम बने भी, लेकिन फिर भी अभी बहुत कुछ बाकी है। यदि हमने अपने विवेक और समझ से अब भी सबक ले लिया तो महामारी तो जाएगी ही, मूर्खता और लम्पटता की राजनीति का भी अन्त हो सकता है। ध्यान रहे, महामारी भी कमजोर इम्यूनिटी वाले को ही निशाना बनाती है और कट्टरता तथा जाहिलपना भी बुद्धि-विवेक हीन व्यक्तियों को ही प्रभावित करती है। अपने अन्दर के इन्सान को जगाइए, आपकी इम्यूनिटी भी मजबूत हो जाएगी। महामारी और जाहि‍लपने दोनों से मुक्ति चाहिए। इसी उम्मीद और उत्साह के साथ आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं।


लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं

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