पंचतत्व: मुंबई की मीठी नदी की कड़वी दास्तान


पिछले हफ्ते हमने देर आरे दुरुस्त आरे में आरे मिल्क कॉलोनी में संरक्षित वनक्षेत्र की महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की घोषणा की चर्चा की थी. तभी मैंने यह भी जिक्र किया था कि आरे जंगलों से निकलने वाली ओशिवारा और मीठी दो नदियों के बारे में भी कुछ लिखा जाए कि आखिर इनकी हालत क्या है.

सचाई यह है कि हर महानगर की तरह की मुंबई ने अपनी नदियों की मौत पर एक आंख चिंता भी नहीं जाहिर की है. शहर के लोगों ने एक मरती हुई नदी पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया है. मुंबई महानगर ने एक नदी को मौत की नींद सोने पर मजबूर कर दिया है.

मीठी नाम की इस नदी का बस नाम ही मीठी है, इसका भविष्य और वर्तमान दोनों कड़वा-कसैला है. खुद महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने माना है कि मीठी नदी में अवशिष्ट पदार्थ की मात्रा तयशुदा मानकों से 16 गुना अधिक है. करीब 17.8 किमी लंबी मीठी नदी मुंबई के दिल से होकर गुजरती है और माहीम क्रीक में जाकर मिल जाती है और बोर्ड के मुताबिक इसमें प्रदूषण उच्चतम स्तर का है.

झटके खाने वाली बात यह है कि आरे के जंगलों पर आरा चलने की खबर से एक्टिव मोड में आ गए मुंबईकर और सोशल मीडिया पर हैशटैग वाली जमात मीठी नदी की दुर्दशा पर अमूमन चुप हैं. जैसा कि सरकार हर योजना के साथ करती है, सरकार ने इस नदी के पुनरोद्धार पर भी सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए हैं और हर सरकारी योजना की तरह इस योजना का भी हश्र वही है, समस्या का निराकरण आपको कहीं नज़र तक नहीं आएगा.

इस नदी में अभी फीकल कॉलीफॉर्म- एक बैक्टिरिया जो इंसानों और जानवरों के मल में मौजूद होता है, की उच्चतम मात्रा मौजूद है. 2018 के जनवरी-मार्च महीनों में मीठी नदी में यह बैक्टिरिया 1,600 प्रति 100 मिली था, जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक यह तयशुदा मात्रा 100 प्रति 100 मिली ही होनी चाहिए.

पंचतत्व: देर आरे, दुरुस्त आरे

मुंबई में 2005 में आई बाढ़ के बाद राज्य सरकार ने मीठी रिवर डिवेलपमेंट ऐंड प्रोटेक्शन अथॉरिटी (एमआरडीपीए) का गठन किया था और इसने ताजा जानकारी मिलने तक (2018 तक) इसके मद में 1,156 करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं.
करीबन डेढ़ दशक के पुनरोत्थान कार्य के बाद भी नदी की सांस घुट रही है.

इंडिया टुडे में 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में लिखा गया कि इस रकम का अधिकतर हिस्सा नदी को गहरा और चौड़ा करने में खर्च हो गया. साथ में नदी के साथ की दीवारों की भी मरम्मत की गई. महाराष्ट्र सरकार के ताजा आंकड़े के मुताबिक मीठी नदी को पुनर्जीवित करने का पूरा मद करीबन 2136.89 करोड़ रुपए है. इनमें से करीबन 1156.75 करोड़ रु. को 12 पुल बनाने, नदी को चौड़ा करने, दीवारें खड़ी करने, अतिक्रमण हटाने, सर्विस रोड बनाने और गाद हटाने में खर्च किया जा चुका है. पर यह तो अगली बाढ़ से बचाव का रास्ता हुआ. यह तो महानगर का स्वार्थ है. नदी के लिए क्या काम हुआ?

इस रिपोर्ट में लिखा गया कि उस वक्त मद में बचे 600 करोड़ को नदी पर मौजूद पांच पुलों, माहीम कॉजवे, तान्सा, तुलसी, धारावी और माहीम रेलवे ब्रिज को चौड़ा करने में खर्च किया जाना है. इससे नदी का संकरा रास्ता चौड़ा हो जाएगा.

नदी की सेहत की बात करें तो मीठी नदी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) सुरक्षित स्तर से पांच गुना अधिक है. बीओडी पानी में जलीय जीवन के जीवित रहने के लिए जरूरी ऑक्सीजन की मात्रा होती है. हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित 2019 की एक रिपोर्ट में आइआइटी बॉम्बे और एनईईआरआइ को उद्धृत करते हुए कहा है कि औद्योगिक अपशिष्ट और ठोस कचरे ने मीठी नदी को एक खुले नाले में बदल दिया है.

वैसे इस नदी को साफ करना कोई खेल नहीं है. इसके दोनों किनारों पर करीब 15 लाख लोग झुग्गियों में रहते हैं.
द हिंदू में प्रकाशित जून, 2019 एक लेख में महाराष्ट्र के पर्यावरण मंत्री रामदास कदम को उद्धृत किया गया है जिन्होंने 2015 में कहा था कि मीठी नदी में 93 फीसद अपशिष्ट घरेलू है जबकि बाकी का 7 फीसद ही औद्योगिक कचरा है. सचाई यह है कि इस नदी के किनारे करीबन 1500 औद्योगिक इकाइयां हैं और उनमें से अधिकतर अपना अपशिष्ट सीधे इसी नदी में बहाते हैं.

असल में इस नदी के किनारे की झुग्गियों में कचरा निस्तारण व्यवस्था ठीक नहीं है. ऐसे में लोगों को सारा अपशिष्ट नदी में ही डालने पर मजबूर होना होता है.

Making the Sewer a River Again – Why Mumbai must reclaim its Mithi/ORF, Mumbai

2004 में मीठी नदी के प्रदूषण पर महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में एक रिपोर्ट दाखिल की गई जिसमें कहा गया कि यह नदी अपने उद्गम पर ही प्रदूषित हो जाती है. रिपोर्ट के मुताबिक, “नदी घनी आबादी से होकर बहती है और इस आबादी का सीवेज इस नदी को मुंबई के सबसे बड़े नाले में बदल देता है.”

सरकार ने उस वक्त इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया और जब 26 जुलाई, 2005 को शहर को एक ही दिन में 944 मिमी की बरसात झेलनी पड़ी और जिसमें करीबन 1000 लोग मारे गए तो लोगों की आंख खुली. इस सैलाब के पीछे बरसात के साथ-साथ नदी का बदला भी था. एक फैक्ट फाइंडिंग कमिटी ने पाया कि मीठी की कम चौड़ाई ही इस सैलाब की बड़ी वजहों में से एक थी. बाढ़ के बाद सरकार ने प्रस्ताव पास किया और जैसा कि ऊपर मैंने बताया, एमआरडीपीए की गठन किया गया. इस अथॉरिटी की भूमिका विकास योजनाएं बनाना और इसके किनारे रह रहे लोगों का पुनर्वास वगैरह था,
पर डेढ़ दशक के बाद और हजार करोड़ रुपए बहाने के बाद आज भी मीठी नदी की हालत जस की तस ही है.

महाराष्ट्र में पिछली फणनवीस सरकार ने मीठी को बचाने के लिए एक रिवर एंदेम बनाया था पर नदी को बचाने के लिए घाट, सड़क-पुल-दीवार बनाना झुंझला देने वाली बात है.

हमारी नदियों को आरती और चूनर चढ़ाए जाने की ज़रूरत नहीं है. उनमें सीवर का मल नहीं हो, साफ पानी बहे, तब उनकी जान बचेगी. मीठी नदी मर गई तो मुंबई के लिए सबक कड़वा होगा.



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