बी.पी. मण्‍डल: एक मुसहर को सांसद बनाने वाला ओबीसी समाज का मसीहा


वर्ष 1918 दुनिया में इस नजरिये से बहुत महत्वपूर्ण है कि इसी वर्ष समाज में हाशिये पर धकेली गई दुनिया की करोड़ों आबादी को सामाजिक न्याय और सामाजिक परिवर्तन की धारा में प्रवाहित करके समाज की मुख्यधारा में स्थान दिलाने वाले दो महानायकों का जन्म हुआ। अफ्रीका में अश्वेतोंं के मसीहा नेल्‍सन मंडेला और भारत में पिछड़े समाज के महानायक बी.पी. मण्डल साहब।

सामाजिक न्याय और सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई के तत्कालीन नेतृत्वकर्ता बी. पी. मण्डल का जन्म 25 अगस्त, 1918 को बनारस में हुआ था। बी. पी. मण्डल का जन्म जब हुआ तो उनका परिवार बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा था। उनके पिता बाबू रास बिहारी लाल मण्डल बहुत गम्भीर रूप से बीमार थे। बी. पी. मण्डल के जन्म के एक कुछ घंटे बाद ही उनके पिता की उसी गम्भीर बीमारी की वजह से मृत्यु हो जाती है। इस समय बाबू रास बिहारी लाल मण्डल मात्र 54 वर्ष के थे। कुछ घंटे पहले पैदा हुए अबोध बालक बी. पी. मण्डल के सर पर पिता का साया नहीं रहा। मण्डल साहब अपने तीन भाई और तीन बहनों में सबसे छोटे थे।

बी.पी. मण्डल के पिता बाबू रास बिहारी लाल मण्डल, रघुबर बाबू के इकलौते पुत्र थे। रासबिहारी लाल मण्डल का जन्म जमींदार परिवार में, सन 1866 में, मधेपुरा में हुआ था। जन्म के थोड़े दिन बाद ही माता की मृत्यु हो जाने के कारण इनका लालन पालन इनके ननिहाल में राजसी ठाट-बाट में हुआ था। इनके पिता बिहार के मधेपुरा जिले के मुरहो गाँव के बहुत ही मशहूर जमींदार थे। बी.पी. मण्डल साहब की माता सीतावती मंडल, बहुत ही शीलवान महिला थीं। बाबू रास बिहारी लाल मंडल ने समाज सुधार के अनेक आन्दोलन चलाये। जात-पात, ऊंच-नीच, कर्मकांड, विधवा विवाह, बाल विवाह, मद्य पान, फिजूल खर्ची, शिक्षा आदि में सुधार के लिए उन्होंने अभियान चलाया। इनका सर्वाधिक ध्यान युवाओं में शिक्षा के प्रति चेतन जगाने पर था। पिछड़े वर्ग के बच्चों को स्कूलों में जलील किया जाता था। इस बात की जानकारी के बाद उन्होंने पिछड़े वर्गों के बच्चों के लिए स्कूल खोलने के लिए पांच एकड़ और उसके रखरखाव के लिए पैंतीस एकड़ जमीन दान किया।

बी.पी. मण्डल अपने पिता की तरह ही तेज दिमाग और तीव्र स्मरण शक्ति वाले थे। उनके अध्यापक इस बात को लेकर उनकी प्रशंसा किया करते थे। कोई भी बात को वह एक बार में याद कर लेते थे। विद्यार्थी जीवन के प्रारम्भिक स्तर पर ही जात‌-पात के नाम पर निम्न कही जाने वाली जाति के छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना और पिछड़ी जाति के छात्रों को समानता का अधिकार दिलाना, यह उनके परिवार से सामाजिक न्याय के परिवेश में पालन-पोषण का ही परिणाम था।

आज हम जिस उम्र में क्रांति‍ के बारे में पढना शुरू करते हैं, उस उम्र में मण्डल साहब ने सामाजिक परिवर्तन की क्रांति‍ कर दी थी। ऐसी ही एक घटना है:

बी.पी. मण्डल साहब की शुरुआती पढ़ाई मुरहो और मधेपुरा में हुई। वह बचपन से ही पढ़ने मे बहुत होशियार थे। इनकी अच्छी पढाई के कारण ही मास्टर इन्हें सबसे आगे बैठाते थे।  हाई स्कूल की पढाई दरभंगा स्थित राज हाई स्कूल से की। यह वही स्कूल है जहां पर चल रही भेदभाव की व्यवस्था का बी. पी. मण्डल साहब ने विरोध किया था। स्कूल से ही उन्होंने दबे‌-पिछड़ों के हक में आवाज उठाना शुरू कर दिया था। राज हाई स्कूल में बी. पी. मण्डल हास्टल में रहते थे। वहां पहले तथाकथित अगड़ी कही जाने वाली जातियों के लड़कों को खाना मिलता था उसके बाद ही अन्य छात्रों को मिलता था। उस स्कूल में तथाकथित उच्च जातियों के बच्चों को बेंच पर बैठाया जाता था और पिछड़ी जातियों के बच्चों को जमीन पर बैठाया जाता था। बी.पी. मण्डल कसे जिस दिन स्कूल की यह व्यवस्था समझ में आयी, उसी दिन उन्होंने इन दोनो बातों के खिलाफ आवाज उठाते हुए मास्टर से बोले कि जब तक सभी बच्चों को एक समान रूप से बैठाने की व्यवस्था नहीं की जाएगी तब तक मैं खडा रहुंगा। जब तक क्लास चली बी. पी. मण्डल साहब खड़े रहे। व्यवस्थापक आये और मण्डल साहब से कहा वह बेंच पर बैठकर पढ़ सकते हैं। मण्डल साहब ने मना कर दिया। उन्होंने कहा सबको बेंच पर बैठने की व्यवस्था कीजिए। तब व्यवस्थापक ने कहा कि अच्छा केवल आज बेंच पर बैठकर पढ़ लीजिए अगले दिन से व्यवस्था कर दी जाएगी। मण्डल साहब ने इसे भी मना कर दिया। उन्होंने कहा कि सबको एक समान बैठने को मिलेगा तभी वह बैठेंगे तब चाहे बेंच पर बैठाया जाए या जमीन पर।

जब वह व्यस्थापक की बात नहीं माने तो व्यवस्थापक ने उनसे कहा कि अगले दिन उन्हीं के मुताबिक व्यवस्था हो जाएगी। जब वह अगले दिन विद्यालय पढ़ने के लिए अपने दोस्तों के साथ गए तो स्कूल में सबके लिए बेंच लगी थी और सब को साथ बैठने की व्यवस्था थी। इस तरह से उन्होंने पिछड़े वर्ग के बच्चों के अधिकारों के लिए लड़कर उन सबको समानता का अधिकार दिलवाया।

सन 1952 में देश के पहले आम चुनाव में वह कांग्रेस की तरफ से बिहार की मधेपुरा विधान सभा सीट के लिए नेतृत्ककर्ता के रूप में चुने गये और उन्हें इस विधानसभा का उम्मीदवार बनाया गया। उसी आम चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के तरफ से किराई मुसहर लोकसभा के उम्मीदवार थे। विपरीत दल से होने के बावजूद मण्डल साहब ने किराई मुसहर की चुनाव में धन और जन से काफी मदद की। किराई मुसहर भी जीते और मण्डल साहब भी विजयी हुए। 1952 में बहुत ही कम उम्र में मधेपुरा से विधानसभा के लिए वे सदस्य चुने गए। किराई मुसहर चुनाव जीतने के बाद व्यक्तिगत रूप से मिलने आए और मण्डल साहब ने उन्हें गले से लगकर बधाई दी। उस समय अछूत कही जाने वाली जातियों के लिए भी मण्डल साहब के मन में समान रूप से सम्मान था। मण्डल साहब वर्गीय दर्शन की मजबूती को शुरुआती दौर से ही खूब समझते थे।

सन 1962 में वे दूसरी बार विधायक बने। इस बीच 1965 में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गांव में तथाकथित सवर्णों का हमला हुआ। उस गाँव में मुख्यतः चमार (तत्कालीन हरिजन), कुर्मी और कुशवाहा रहते थे। इन पर तथाकथित सवर्णों एवं पुलिस द्वारा बर्बर अत्याचार किए गए थे। बी.पी. मण्डल उस समय कांग्रेस के विधायक थे। वह यह बात विधानसभा में उठाना चाहते थे, लेकिन जब उन्हें बोलने से रोका गया तो उन्होंने कांग्रेस की सत्ता को ठोकर मार दी और सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। वे 1967 में मधेपुरा से लोकसभा सदस्य चुने गए।

कुछ दिन पहले मेरे हाथ में लोकसभा में दिए गए बी. पी. मण्डल के भाषण का दस्तावेज लगा। उन भाषणों में उनकी पिछडे वर्गो के प्रति चिन्ता को देखकर यह बात समझ आई कि क्यों सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने उन्हें मण्डल आयोग का सदस्य बनाने की गुजारिश की।

बी.पी. मण्डल की बात तब तक पूरी नहीं हो सकती है जब तक उनके साथ मण्डल आयोग की भी चर्चा ना की जाए।

मण्डल आयोग और बी.पी. मण्डल

बी.पी. मण्डल 1979 में बने पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थे, जिसे सामान्यतः मण्डल आयोग कहा जाता है। मण्डल आयोग का गठन भारत के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक तीनों रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान के मानक बनाने, उन वर्गों की पहचान करने और उनके सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक उत्थान के लिए संस्तुति करने के लिए किया गया था। मण्डल आयोग ने बहुत सी कठिनाई के बावजूद अपना काम किया। मण्डल आयोग के काम के दौरान ही लोकसभा और विधानसभाओं के भंग होने से आयोग को और भी कठिनाई उठानी पडी। उसी समय भारत का उत्तर पूर्वी भाग बुरी तरह से हिंसा की चपेट में था। इन सब कठिनाइयों के बावजूद आयोग ने गाँव-गाँव जाकर लोहार, कुम्हार, कुर्मी, कोईरी, नाई, पाल, यादव, मल्लाह, बंजारा, लोधी, अग्री, कुंजरा, भट, फकीर, चंग, धोबी, बोंदिल, बोयर, बिलावा, अंसारी, कसाई, डोम्मारा, दर्जी, किरार, कपाली, तेली, जायसवाल, धनुक, बाजीगर, बाल्मिकी, बर्रा, नार, गोरखा, अगासा, चक्काला, पसमांदा आदि जातियों सहित और भी तमाम जातियों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति का आकलन किया। पूरे भारत की तमाम जातियों की स्थिति का आकलन करने के बाद यह बात सामने आई कि हजारों जातियों में बंटे ओबीसी वर्ग में मुख्यतः किसान, परम्परागत कामकाजी, छात्र, मजदूर, भूमिहीन ही हैं।

मण्डल आयोग की शुरुआती बातें पढ़ने से यह बात साफ होती है कि यह आयोग ओबीसी को केवल राजनीतिक लाभ दिलाने के लिए नहीं था बल्कि उनके बीच की समानता को खोजकर उनको एक साथ लाकर समाजिक रूप से संगठित करने का आधार भी था। मण्डल आयोग ने ओबीसी की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर इस वर्ग के उत्थान के लिए कई अनुशंसाएँ कीं। यहां एक बात स्पष्ट कर दूँ कि मण्डल साहब ओबीसी की जनसंख्या 52% के अनुपात में आरक्षण की अनुशंसा करना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आरक्षण की सीमा 50% तक सीमित कर दिए जाने के कारण ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की अनुशंसा की। कुछ प्रमुख अनुशंसाएँ निम्न प्रकार हैं:

1. सभी सरकारी शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के छात्रों के लिए 27% आरक्षण

2. निजी संस्थानों में भी ओबीसी को 27% आरक्षण दिया जाए

3. ओबीसी को राज्य एवं केंद्र सरकार की सभी नौकरियो में 27% आरक्षण दिया जाए

4. ओबीसी को प्रमोशन में भी आरक्षण दिया जाए

5. ओबीसी के लिए अलग मंत्रालय बनाया जाए

6. ओबीसी के परम्परागत व्यवसायी जातियों जैसे कुम्हार, लोहार, बरई, माली, निषाद, मल्लाह आदि के लिए अलग वित्तीय निगम बनाया जाए

7. ओबीसी के परम्परागत व्यवसायी के लिए अलग से वित्तीय समितियां बनायी जाएं और इसके सदस्य सिर्फ ओबीसी के परम्परागत व्यवसायी ही हों

8. सरकार भूमि सुधार कानून लागू करे और भूमिहीनों को सरकार जब भी भूमि का वितरण करे तो ओबीसी को भी भूमि का आवंटन किया जाए

9. ओबीसी के लिए सघन और व्यापक प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाएं

10. ओबीसी के लिए सभी तकनीकि संस्थानों में प्रवेश में 27% आरक्षण लागू हो तथा प्रवेश बाद आगे की पढाई के लिए अलग से कोचिंग की व्यवस्था की जाए

अपने पिता के समान ही मण्डल साहब ने जमींदार की रईसी से निकल कर, जात-पात, भेदभाव, छूआछूत को त्यागकर पूरे पिछडे वर्ग के लिए एक राजनीतिक और सामाजिक लडाई तैयार की। विरोधी दल से लड़ने के बावजूद किराई मुसहर की धन और जन दोनों से मदद की और उन्हें भारत की संसद में पहुंचाया। स्वाभिमानी तो इतना कि बिहार मुख्यमंत्री का पद भी उन्हें छोटा लगा। मण्डल चेतना से पनपी नब्बे के दशक की मण्डल क्रांति‍ ने इस बात को सिध्द कर दिया कि कमण्डल को एक मात्र मण्डल ही पराजित कर सकता है। मण्डल ने जो दस्तावेज तैयार किया वह एक राजनीतिक दस्तावेज तो है ही, साथ साथ सामाजिक भी है। इससे सामाजिक और राजनीतिक दोनों लडाई को जीता जा सकता है। पूरे भारत के 406 जिलों में एक साथ एक समान सामाजिक, शैक्षणिक, और आर्थिक स्थिति वाले लोगों के बारे ऐतिहासिक और वर्तमान रूप से जानना है तो मुझे लगता है मण्डल आयोग की संस्तुति ही एक मात्र दस्तावेज है जहां इतने व्यापक परिप्रेक्ष्य को समझा जा सकता है। मण्डल आयोग का अभी भी समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन करना बाकी है।

मण्डल की अनुशंसा के अंश मात्र के लागू होने से भारत की 90% आबादी की ना सिर्फ राजनीतिक हैसियत बल्कि सामाजिक हैसियत भी बढ गई है। मुझे लगता है कि यदि मण्डल की सम्पूर्ण अनुशंसा लागू कर दी जाए तो भारत का लोकतंत्र सम्पूर्णता को प्राप्त कर लेगा, ओबीसी वर्ग का मुख्यधारा के रूप में उभार होगा और भारत कुछ ही दिनों में विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा।


विनोद कुमार मुख्यतः सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ओबीसी साहित्य और संस्कृति के निर्माण में सतत प्रवृत्त हैं।


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