पिता पर कुछ और कविताएं

अभिषेक श्रीवास्‍तव  1 मेरी पत्‍नी जब सोती है चैन से बिलकुल बच्‍चे की तरह निर्दोष तब याद आते हैं पिता… क्‍योंकि तब, मेरी मां ले रही होती है करवटें अपने …

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दुख: एक कविता

एक पुराना दुख है मेरे भीतर कुछ पहचानें हैं उसकी कुछ निशान बिखरे हुए, स्‍मृतियों में धुंधले निराकार से- जिनके बारे में ठीक-ठीक नहीं बता सकता पूछे जाने पर। एक …

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Benares Grapevine-6: जीत के आगे डर है

अभिषेक श्रीवास्‍तव  जैसा हमेशा होता है, इस बार भी हुआ है। बनारस को छोड़ने के विदड्रॉल सिम्‍पटम से जूझ रहा हूं। किसी को शराब छोड़ने के बाद, किसी को सिगरेट …

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Benares Grapevine-4: रोडशो का झूठ और झाड़ू चलने का डर

माना जा रहा है कि नरेंद्रभाई मोदी बनारस से जीत रहे हैं, लेकिन उनकी जीत का जश्‍न मनाने वाले इस शहर में इतने भी नहीं कि बीएचयू गेट से रविदास …

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Benares Grapevine-2: परेशान चेहरे और लड़खड़ाते घुटने

अस्‍सी चौराहे स्थित पप्‍पू की दुकान पर एक लंबा सा आदमी चाय पीने आया। उसकी लंबाई औसत से कुछ ज्‍यादा थी। एक व्‍यक्ति ने उसे देखकर दूसरे से कहा, ”ई …

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