सोनभद्र में हालांकि बात विकास से काफी आगे जा चुकी है। याद करें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के बाद पिछले साल न्यूयॉर्क के मैडिसन चौक में एक बात कही थी कि उनकी इच्छा है कि ”विकास को जनांदोलन” बना दिया जाए। इस बात को न तो बहुत तवज्जो दी गयी और न ही इसका कोई फौरी मतलब निकाला गया, लेकिन ऐसा लगता है कि ”विकास को जनांदोलन” बनाने की सीख सबसे पहले लोहिया के शिष्यों ने उत्तर प्रदेश में ली और उसे आज सोनभद्र में लागू किया जा रहा हैा भरोसा न हो तो विंध्य मंडल के मुख्य अभियंता कुलभूषण द्विवेदी के इस बयान पर गौर करें जिनके क्षेत्राधिकार में कनहर परियोजना आती है। एक पत्रकार द्वारा नदियों की और पर्यावरण की खराब सेहत पर सवाल पूछे जाने के जवाब में उसे टोकते हुए अभियंता ने कहा, ”पहली बार देश को मर्द प्रधानमंत्री मिला है। पूरी दुनिया में उसने भारत का सिर ऊंचा किया है वरना हम कुत्ते की तरह पीछे दुम दबाए घूमते थे।” (बातचीत को सुनने के लिए ऊपर दिए प्लेयर को चलाएं)
सत्तर पार के जोगी साव घायलों की सरकारी सूची में नहीं हैं |
यह बात अपने आप में चौंकाने वाली है कि एक एसडीएम ने अपने इलाज पर अपनी जेब से दस लाख रुपये कैसे खर्च कर दिए। ज़ाहिर है, होगा तभी खर्च किए होंगे। सुन्दरी, भीसुर और कोरची के आदिवासियों के पास अपने ऊपर खर्च करने को सिर्फ आंसू हैं। समय के साथ वे भी अब कम पड़ते जा रहे हैं। दुद्धी के अस्पताल में भर्ती जोगी साव (जिनका नाम घायलों की सरकारी सूची में दर्ज नहीं है) हमें देखते ही फफक कर रो पड़ते हैं। गला भर्रा जाता है। इशारे से दिखाते हैं कि कहां-कहां पुलिस की मार पड़ी है। पैर के ज़ख्म दिखाने के लिए हलका सा झुकते हैं तो कमर पकड़कर ऐंठ जाते हैं। इनकी उम्र सत्तर बरस के पार है। 18 अप्रैल की सुबह धरनास्थल पर ये सो रहे थे। जब पुलिस बल आया, तो नौजवानों की फुर्ती से ये भाग नहीं पाए। वहीं गिर गए। वे रोते हुए बताते हैं, ”ओ दिन हमहन रह गइली ओही जगह… एके बेर में पहुंच गइलन सब… धर-धर के लगावे लगलन डंटा। मेहरारू के झोंटा धर के लेसाड़ के मारे लगलन… लइकनवो के नाहीं छोड़लन…।” जोगी साव के शरीर पर डंडों के निशान हैं। उनके आंसू नहीं रुकते जब वे हाथ दिखाते हुए कहते हैं, ”एक डंटा मरले हउवन… दू डंटा गोड़े में… तब जीप में ले आके इहां गिरउलन।” यह पूछे जाने पर कि क्या कोई मुकदमा भी दर्ज हुआ है उनके खिलाफ़, वे बोले, ”मुकदमा त दर्ज नाहीं कइलन, बाकी कहलन कि अस्पताल में चलिए, जेल नहीं जाना पड़ेगा।”
बूटन साव पूछते हैं- ”आप जनते के तरफ से हैं न?” |
जांच दल के सदस्यों कविता कृष्णन, प्रिया पिल्लई, पूर्णिमा गुप्ता, ओमप्रकाश सिंह, रजनीश और सिद्धांत मोहन समेत देबोदित्य सिन्हा के साथ जब यह लेखक 20 अप्रैल को दुद्धी अस्पताल के इस वार्ड में पहुंचा, तो कुल आठ पुरुष यहां भर्ती थे। महिला वार्ड में पांच महिलाएं थीं और अस्पताल के गलियारे में दो घायलों को अलग से लेटाया गया था। कुल दस पुरुषों में बस एक नौजवान था जिसका नाम था मोइन। बाकी नौ पुरुषों की औसत उम्र साठ के पार रही होगी। गलियारे में पहले बिस्तर पर जो बुजुर्ग लेटे थे, उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। नाम- बूटन साव, गांव कोरची। इन्हें भी डंडे की मार पड़ी थी। चोट दिखाते हुए बोले, ”आप जनते के तरफ से हैं न?” हां में जवाब देने पर बोले, ”हम लोगों को छोड़वा दीजिए घर तक”। और इतना कह कर वे अचानक रोने लगे। यह पूछने पर कि कब यहां से छोड़ने को कहा गया है, बूटन बोले, ”छोड़ेंगे नहीं… किसी को मिलने भी नहीं आने दे रहे हैं। बोले हैं यहीं रहना है, नहीं तो जेल जाओ।”
यह पूछे जाने पर कि हवा में फायर करने से अकलू की छाती के पास गोली कैसे लगी, यादव कहते हैं, ”थानेदार ”लेड डाउन” (पीछे की ओर झुका हुआ) था, ऐसी आपात स्थिति में ज्योमेट्री नहीं नापी जाती है। उसने खुद कहा कि उसे पता ही नहीं चला कि गोली कहां लगी है।” इस घटना के बारे में बीएचयू में भर्ती अकलू का कहना है, ” हमको मारकर के थानेदार (कपिलदेव यादव) अपने हाथे में गोली मार लिए हैं और कह दिए कि ये मारे हैं… बताइए…।” (अकलू का पूरा बयान पढ़ने के लिए यहां जाएं)